हाइलाइट्स
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अपने खास गुणों के कारण नर्मदा में ही पाई जाती है महाशीर मछली
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नर्मदा की धार टूटने और पानी प्रदूषित होने से विलुप्त हुई महाशीर मछली
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महाशीर मछली मध्य प्रदेश की स्टेट फिश भी है
Narmada Mahseer Fish Crisis: मध्य प्रदेश 16 फरवरी 2024 को नर्मदा जयंती मनाएगा। मां जैसी पूजनीय नर्मदा नदी में दीपदान किया जा रहा है, चुनरी चढ़ाई जा रही है, परिक्रमा हो रही है।
ये आस्था का विषय हो सकते हैं, लेकिन क्या इससे नर्मदा नदी का संरक्षण होगा। आप मानें या ना मानें, इस पवित्र, जीवनदायिनी नर्मदा नदी का अस्तित्व खतरे में है।
इसका संकेत किसी और ने नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश की स्टेट फिश महाशीर ने ही दिया है। महाशीर (Narmada Mahseer Fish Crisis) टाइगर ऑफ वॉटर के नाम से मशहूर है।
हमारी लापरवाही से महाशीर मछली नर्मदा से खत्म हो गई है। अब भी यदि हम नहीं रुके तो वो दिन दूर नहीं जब नर्मदा नदी सिर्फ इतिहास का हिस्सा बनकर रह जाएगी।
महाशीर का खत्म होना यानी नर्मदा पर संकट
महाशीर मछली की खासियत ये है कि यह फ्रेश वॉटर यानी ताजे पानी में ही रहती है। यह विपरीत धारा में 20.25 नॉटिकल मील (1 नॉटिकल मील=1.85 किमी) की रफ्तार से तैर सकती है। मतलब यह बहते पानी में ही रहती है। अब सवाल यह उठता है कि इससे नर्मदा के खत्म होने का कैसे पता चलता है।
दरअसल, महाशीर मछली (Narmada Mahseer Fish Crisis) अपने खास गुणों के कारण ही मध्य प्रदेश में सिर्फ नर्मदा नदी में ही पाई जाती है। पर अब ये विलुप्त होने की कगार पर है।
वजह ये कि प्रदूषण बढ़ने से नर्मदा का पानी फ्रेश वॉटर नहीं रहा, जिसके कारण महाशीर सर्वाइव नहीं कर पा रही। पानी का बहाव तेज नहीं होने से महाशीर अपने स्वभाव के विपरीत जीवनशैली नहीं अपना पाई। नतीजा ये कि नर्मदा में महाशीर मछली खत्म होने की कगार पर है।
नर्मदा में 2% भी नहीं बची महाशीर
मत्स्योद्योग से जुड़े अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि महाशीर (Narmada Mahseer Fish Crisis) फ्रेश वॉटर की मछली है और बांधों के निर्माण से यह कम हुई है।
इधर, केंद्रीय अंतरस्थलीय मात्स्यिकीय अनुसंधान कोलकाता की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, नर्मदा नदी में 1966 में महाशीर मछली 28% थी, जो 2011 में घटकर 10% हो गई।
जानकार बताते हैं कि नर्मदा में महाशीर अब महज 2% भी नहीं बची है। विलुप्त होती यह प्रजाति इस बात का संकेत है कि नर्मदा भी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है।
महाशीर को 22 नवंबर 2011 को मध्य प्रदेश की स्टेट फिश घोषित किया गया था।
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इन कारणों से नदी और मछली पर पड़ा असर
अवैध उत्खनन : नर्मदा के घाटों से ही नहीं बल्कि नर्मदा नदी के अंदर से ही रेत निकालने का खेल चल रहा है। नसरूल्लागंज के आसपास के इलाकों में नर्मदा में अवैध खनन का खुलेआम खेल चलता है।
इस अवैध उत्खनन से नर्मदा की धार टूटी है। जिसका असर महाशीर मछली (Narmada Mahseer Fish Crisis) के प्रजनन पर भी पड़ा है।
नदी में सीवेज : नर्मदा नदी में 16 शहरों से 30 नाले आकर सीधे मिलते हैं। हर रोज 113MLD अनट्रीटेड सीवेज सीधे नर्मदा नदी में मिल रहा है। इससे नदी प्रदूषित हुई है।
साफ पानी में रहने की अपनी ताशीर के कारण महाशीर मछली (Narmada Mahseer Fish Crisis) अब नर्मदा में सर्वाइव नहीं कर पा रही है।
नदी के पानी की उपलब्धता आधी
वर्ष 1975 की कैलकुलेशन के अनुसार, नर्मदा नदी में बहने वाली पानी की उपलब्धता 28 मिलियन एकड़ फीट (MAF) थी। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने 1980-81 से हर साल नर्मदा कछार में उपलब्ध जल की मात्रा का जो रिकॉर्ड किया गया, उससे यह पता चलता है कि नर्मदा कछार (Narmada Mahseer Fish Crisis) में उपलब्ध जल की मात्रा घट रही है।
2010-2011 में नर्मदा कछार में 22.11 MAF जल उपलब्ध था। अप्रैल 2018 में आई मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में नर्मदा नदी की जल उपलब्धता 14.66 MAF पाई गई। साफ है कि 45 सालों में नदी में बहने वाले पानी की उपलब्धता घटकर आधी रह गई है।
दुनिया की 6 विलुप्त होने वाली नदी की सूची में शामिल
नदी के अंदर ही चल रहे अवैध उत्खनन (Illegal Mining) से नर्मदा का सीना छलनी हो रहा है। बांधों के लालच ने लाखों एकड़ के जंगल तबाह कर दिए।
यही कारण है कि मध्य प्रदेश की जीवनरेखा कही जाने वाली भारत की 5वीं सबसे बड़ी नर्मदा नदी (Narmada Mahseer Fish Crisis) को 2019 में वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट ने एक रिपोर्ट में दुनिया की उन 6 नदियों की सूची में रखा, जिनके अस्तित्व पर खतरा है, पर हम अब भी नहीं चेते तो यकीं मानिये हमारे बच्चे शायद इस नदी को देख ही न पाएं।