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50 साल की शहादत के बाद भी बॉर्डर पर ड्यूटी दे रहा है ये जवान! चीनी सैनिक भी झुकाते हैं सिर

50 साल की शहादत के बाद भी बॉर्डर पर ड्यूटी दे रहा है ये जवान! चीनी सैनिक भी झुकाते हैं सिर Even after 50 years of martyrdom, this jawan is giving duty on the border! Chinese soldiers also bow their heads nkp

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Bansal Digital Desk
50 साल की शहादत के बाद भी बॉर्डर पर ड्यूटी दे रहा है ये जवान! चीनी सैनिक भी झुकाते हैं सिर

नई दिल्ली। भारत में एक ऐसा मंदिर है जहां चीनी सेना भी सिर झुकाती है। आप कहेंगे ऐसा कैसे हो सकता है। हां सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन ये सच है। सिक्किम के नाथुला दर्दे में पड़ने वाला ये विशेष मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर के प्रति सैनिकों की अटूट आस्था है। यह मंदिर भारतीय जवान के प्रेरणाश्रोत बाबा हरभजन सिंह को समर्पित है।

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शहीद हुए 50 वर्ष से अधिक हो चुके हैं

बतादें कि बाबा हरभजन सिंह को शहीद हुए 50 वर्ष से अधिक हो चुके हैं। लेकिन स्थानीय लोग मानते हैं कि हरभजन सिंह आज भी मरणोपरांत भारतीय चीन की सीमा पर तैनात हैं। उन्हे आज भी छुट्टी से लेकर सैलरी तक दी जाती है। यह मंदिर सिक्किम की राजधानी गंगटोक से तकरीबन 50 किमी दूर नाथुला पास से 9 किमी नीचे की तरफ स्थित है।

बाबा चीन की हर गतिविधि पर नजर रखते हैं

सैनिकों का मानना है कि बाबा हरभजन सिंह आज भी मां भारती के वीर सपूत होने के कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए देश की रक्षा कर रहे हैं। सिक्किम के लोग मानते हैं कि बाबा हरभजन चीन की गतिविधियों पर आज भी नजर रखते हैं और जब भी चीन घुसपैठ करने की कोशिश करता है, वो किसी भारतीय जवान साथी के सपनें में आकर इस बात की जानकारी दे जाते हैं।

चीनी सैनिक भी उनकी कहानी बताते हैं

बाबा की वीरता की कहानी न केवल भारतीय जवानों के ज़ुबान पर है बल्कि चीनी सैनिक भी उनसे जुड़ी कहानी बताते हैं। बाबा हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त, 1946 को पंजाब के सरदाना गांव में सिख परिवार में हुआ। विभाजन के बाद यह गांव पाकिस्तान में शामिल हो गया। बाबा हरभजन सिंह 9 फरवरी, 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट के 24वें बटालियन में नियुक्त हुए। अब बाबा हरभजन को भारतीय ‘नाथुला के नायक’ के रूप में जानते हैं।

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बाबा ने समाधि की इच्छा जाहिर की थी

जानकार बताते हैं कि बाबा की मृत्यु 1968 में नाथुला दर्रे की तरफ खच्चरों का काफिला ले जाने के दौरान पैर फिसलने के कारण नदी में गिरने से हुई। नदी की तेज धार में उनका शरीर 2 किमी तक बह गया। इस कारण उनका पार्थिव शरीर काफी खोजबीन करने के 2 दिन बाद मिला। बाबा हरभजन ने मरणोपरांत किसी जवान के सपने में आकर उनके समाधि की स्थापना की इच्छा जाहिर की। बाबा हरभजन सिंह की वीरता और शौर्यता का सम्मान करते हुए 1982 के आसपास नाथुला दर्रे पर समाधि निर्मित की गई, जिसे लोग अब बाबा हरभजन सिंह मंदिर के नाम से जानते हैं।

जाने से पहले इन बातों का रखें ध्यान

अगर आप भी बाबा हरभजन सिंह मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं। तो इसलिए आपको सबसे पहले परमिट लेना होगा। क्योंकि यह संरक्षित क्षेत्र है। परमिट लेने के लिए आपको दो पासपोर्ट और आईडी प्रूफ देने की आवश्यकता होती है। मंदिर की यात्रा के लिए परमिट पास एक दिन पूर्व लागू होता है। बाबा हरभजन मंदिर ऊंचे स्थान पर स्तिथ होने की वजह से आने-जाने वाले यात्रियों व पर्यटकों को सलाह दी जाती है कि यहां आप ऑक्सिजन की कमी महसूस कर सकते हैं इसलिए आने के पूर्व डॉक्टरों से परामर्श आवश्य लें।

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