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विशालकाय शिवलिंग को स्थापित करने में डिग्री धारी इंजीनियरों के छुट गए थे पसीने, तभी एक अनपढ़ मिस्त्री ने कर दिया कमाल

विशालकाय शिवलिंग को स्थापित करने में डिग्री धारी इंजीनियरों के छुट गए थे पसीने, तभी एक अनपढ़ मिस्त्री ने कर दिया कमाल Engineers with degrees had lost their sweat in setting up the giant Shivling, only then the idea of an illiterate mechanic did wonders nkp

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Bansal Digital Desk
विशालकाय शिवलिंग को स्थापित करने में डिग्री धारी इंजीनियरों के छुट गए थे पसीने, तभी एक अनपढ़ मिस्त्री ने कर दिया कमाल

भोपाल। कहते हैं जहां चाह वहां राह... इस कहावात को चरितार्थ कर दिखाया है। मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के एक मिस्त्री मकबूल हुसैन ने। जिसने अपने अनुभव के आधार पर अच्छे-अच्छे इंजीनियरों को भी मात दे दी। आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला...

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डिग्री धारक भी कई काम नहीं कर पाते

हम सब जानते है कि ज्ञान किसी उम्र, किसी जाति या किसी लिंग का मोहताज नहीं होता है। कई बार किसी काम को बड़े से बड़े डिग्री धारक नहीं कर पाते। उस काम को बड़ी आसानी से आम व्यक्ति कर जाता है। ऐसा ही कुछ देखने को मिला मंदसौर में । जहां विश्व प्रसिद्ध अष्ट मुखी भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर है। माना जाता है कि मंदरि की मूर्ति शिवना नदी से मिली थी। इसके साथ ही एक शिवलिंग और भी मिला था जिस पर 1007 शिवलिंग स्थापित थे।

विधवित रूप से स्थापित नहीं किया जा सका था

इस विशालकाय शिवलिंग को कई वर्षों से विधिवत रूप से मंदिर में स्थापित नहीं किया जा सका था। ऐसे में मंदिर प्रशासन ने इस शिवलिंग को स्थापित करने के लिए एक नया मंदिर बनाने के फैसला किया। जब शिव मंदिर का काम आधे से ज्यादा पूरा हुआ, तो प्रशासन ने शिवलिंग को स्थापित करने के लिए गुजरात से 'जलाधारी' बनवाया। जलाधारी का वजन लगभग साढे तीन टन है और इस पर जो शिवलिंग स्थापित करना है उसका वजन करीब डेढ़ टन है।

इंजीनियर स्थापित नहीं कर पा रहे थे

कई बार कोशिश करने के बावजूद प्रशासन और पढ़े लिखे इंजीनियर इस जलधारी में शिवलिंग को स्थापित नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में तब एक मामूली सा दिखने वाला साथानीय मिस्त्री मकबूल हुसैन ने एक आईडिया दिया और ये आईडिया काम कर गया। पहले तो वह हिचकिचा रहा था, लेकिन फिर सभी लोगों को परेशान देखे हिम्मत करके उसने अपना आईडिया अधिकारियों को दिया।

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मकबूल का आईडिया सबको जम गया

उसका आईडिया था कि अगर वर्फ को जलाधारी के ऊपर रखा जाए और इस वर्फ के ऊपर शिवलिंग को, तो बर्फ पिघलने के साथ-साथ शिवलिंग जलाधारी के अंदर चला जाएगा। मकबूल हुसैन का यह आईडिया सबको जम गया। बर्फ मंगवा कर इसके गोलादार टुकड़े किये गए औऱ उन पर शिवलिंग को रख दिया गया। जैसे-जैसे बर्फ पिघलती गई सचमुच शिवलिंग अपनी जगह लेता गया और अच्छे से स्थापित हो गया।

मकबूल की लोग तारीफ कर रहे हैं

अब आस-पास के सभी लोग मकबूल हुसैन के ज्ञान और अनुभव की तारीफ कर रहे हैं। बता दें कि मकबूल अपने जीवन में कई मंदिरों के निर्माण में काम कर चुके हैं। हालांकि, गरीब के कारण वे कभी स्कूल नहीं गए। जब वे बड़े हुए तो काम से सिलसिले में सऊदी चले गए। जहां उन्होंने 8 वर्ष तक मिस्त्री का काम किया और अब मंदसौर में ही काम करते हैं।

1500 साल पुराना है शिवलिंग

वहीं बात शिवलिंग की करें, तो इसका इतिहास करीब 1500 साल पुराना है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस शिवलिंग का निर्माण दशपुर के होलिकर सम्राट के काल में हुआ था। इस शिवलिंग को लाइम सेंड स्टोन से बनाया गया है। इस विशालकाय शिवलिंग में 1007 शिवलिंग बना है। मुख्य शिवलिंग को जोड़कर कुल 1008 शिवलिंग हो जाते हैं। जानकार इसे सहस्त्र शिवलिंग कहते हैं।

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स्थापना में क्यों आ रही थी दिक्कत?

शिवलिंग को जलाधारी में स्थापित करने में सबसे बड़ी समस्या जो आ रही थी, वो थे मंदिर के खंभे। चारों ओर से खंभे होने के कारण क्रेन अंदर नहीं जा रहा था। ऐसे में रोलर पाइप के जरिए जलाधारी को रखा गया, जब शिवलिंग रखने की बारी आई तो इसके बेलनाकार होने के कारण काफी परेशानी आ रही थी। इसके लिए ननीचे से बेल्ट लगाकर शिवलिंग को बीच में लाने का प्रयास किया गया। लेकिन इससे काम नहीं बना। ऐसे में मिस्त्री मकबूल अंसानी का आईडिया काम आया।

मकबूल का कहना है कि उन्होंने कई मंदिरों में काम किया है और उनके मन में धर्म को लेकर कोई फर्क नहीं है। मंदिर के निर्माण का काम भी उन्हें इबादत ही लगता है।

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