नई दिल्ली। 25 जून, 1975 यानी कि आज ही के दिन 46 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था। 25-26 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में पहला आपातकाल लागू हुआ था। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में आज भी 25 जून को एक काले दिन के रूप में जाना जाता है। क्योंकि आपातकाल लगने के बाद देश ने करीब दो सालों तक दमन का एक नया रूप देखा था। ऐसे में आज हम आपको इमरजेंसी से जुड़ा एक दिलचस्प फैक्ट बताएंगे।
सत्ता में बने रहने के लिए लगाया गया था आपातकाल
कहा जाता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस कदम पर अमेरिका की पैनी नजर थी। आपातकाल के समय उनके घर में एक अमेरिकी जासूस मौजूद था। जासूस, इंदिरा गांधी के हर पॉलिटिकल मूव की खबर अमेरिका को दे रहा था। विकिलीक्स ने इस बात का खुलासा कुछ साल अमेरिकी केबल्स के हवाले से किया था। दरअसल, 26 जून 1975 को इंदिरा गांधी के देश में इमरजेंसी घोषित करने के बाद अमेरिकी दूतावास के केबल में कहा गया था कि इस फैसले पर वह अपने बेटे संजय गांधी और सेक्रेटरी आरके धवन के प्रभाव में थीं। दोनों किसी भी तरह से इंदिरा गांधी को सत्ता में बनाए रखना चाहते थे। इसलिए देश में आपातकाल लगा दिया गया।
जनवरी में ही तैयार हो गई थी इमरजेंसी की स्क्रिप्ट
आपातकाल के बारे में बहुत से लोग जानते हैं कि संजय गांधी ने अपनी मां को देश में इमरजेंसी लगाने के लिए प्रेरित किया था। लेकिन ये कम ही लोग जानते हैं कि इमरजेंसी के पीछे बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री एसएस राय का हाथ था। दरअसल, इंदिरा गांधी के सेक्रेटरी आरके धवन ने बताया था कि आपातकाल लगाने की योजना काफी पहले ही बन गई थी। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सीएम एसएस राय ने जनवरी 1975 में ही इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद भी आपालकाल उद्घोषणा पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार थे।
धवन ने यह भी खुलासा किया था कि किसी तरह आपातकाल के दौरान मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर उन्हें निर्देश दिया गया था कि RRS के उन सदस्यों और विपक्ष के नेताओं की लिस्ट तैयार की जाए, जिन्हें अरेस्ट किया जाना है।
क्यों लगाया गया आपातकाल?
दरअसल, 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था। लेकिन चार साल बाद राज नारायण ने इस चुनाव परिणाम को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों को इस्तेमाल किया। अदालत ने भी इन आरोपों को सही ठहराया और इंदिरा गांधी को छह वर्षों तक किसी भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन इंदिरा गांधी ने हाई कार्ट के इस फैसले को मानने से इंकार कर दिया और सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की। इसके बाद विपक्ष ने विद्रोह शुरू कर दिया। विरोध होता देख इंदिरा गांधी ने देश में 25 जून को इमरजेंसी की घोषणा कर दी।
आपातकाल में जुल्म की इंतिहा
आपातकाल में सबसे ज्यादा शिकार राजनेता हुए। इस दौरान जयप्रकाश नारायण सहित दूसरे विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। आपातकाल के पहले हफ्ते में ही करीब 15 हजार लोगों को बंदी बना लिया गया था। उनकी डाक सेंसर होती थी और किसी से मुलाकात की अनुमति भी मिलती थी तो इस दौरान खुफिया अधिकारी वहां तैनात रहते थे। जेल में उन पर जुल्म की बात तो छोड़ ही दो। आपातकाल के दौरान संविधान और कानून को खूब तोड़ा-मरोड़ा गया। साथ ही मीडिया का उत्पीड़न किया गया। वकीलों और जजों को भी नहीं बख्शा गया। परिवार नियोजन के नाम पर लोगों की जबरन नसबंदी की गई।
आखिर में जनता ने सिखाया सबक
आपातकाल के दौरान दहशत का माहौल था। यही कारण है कि 1977 में जनता ने एकजुट होकर इंदिरा गांधी को हराया और जनता पार्टी की सरकार बनी।