इंदौर से अविनाश रावत की रिपोर्ट। Dussehra 2023: बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दहशरा हिंदू धर्म का महत्वपूण त्यौहार है। इस दिन देश–प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर रावण, मेघनाद और कुंभकरण का पुतला दहन किया जाता है।
वहीं इंदौर में रावण का एक ऐसा मंदिर है, जिसे लंकेश्वर महादेव मंदिर और टेंपल ऑफ रावण के नाम से जाना जाता है। यहां हर दिन रावण की विशेष पूजा की जाती है।
आज हम इसी लंकेश्वर महादेव मंदिर के बारे में चर्चा करेंगे कि आखिर ऐसा क्यों किया जाता है। साथ ही यह मंदिर इतना खास क्यों है।
मंदिर से जुड़ी कहानी
रावण का ये मंदिर जितना भव्य और विशाल है, इस मंदिर के निर्माण की कहनी भी उतनी ही खास और दिलचस्प है।
इस मंदिर काा निर्माण महेश गौर ने कराया था। महेश बताते है कि 1966 में वे मामा की बारात में मंदसौर गए थे। जहां विवाह की रस्मों के दौरान दूल्हा और दुल्हन ने रावण का पूजन किया था।
जिसके बाद उनके मन में रावण पर रिसर्च करने की जिज्ञासा आई और उन्होने रावण के बारे में अध्ययन करना शुरू कर दिया। जिसमें उन्होंने पाया कि रावण प्रकांड पंडित होने अलावा भगवान शिव का अवतार कहा जाता है।
इसलिए रावण का दहन करने की बजाए उसकी पूजा होनी चाहिए। इसी के बाद से महेश समेत उनका पूरा परिवार रावण की पूजा में ली है।
मंदिर में रखी है रावण संहिता
इस मंदिर में आपको एक और ऐसी चीज मिलेगी जिसके बारे में आपने शायद ही पहले कभी देखा और सुना हो। इसका नाम है रावण संहिता, जिसे रावण ने खुद अपने हाथों से लिखा था।
अक्सर ये सवाल लोगों के मन में उठता और पूछा जाता है कि आखिर रावण के 10 सिर क्यों थे? लोग अपने-अपने हिसाब से इसकी व्याख्या करते चले आ रहे हैं। इस मंदिर में भी इसकी एक अलग कहानी सामने आती है।
अहंकार से व्यक्ति का अंत निश्चित
इतिहास में रावण को हमेशा से बुराई का प्रतीक माना गया। लेकिन समय के साथ उसके ज्ञान को पहचान मिल रही है।
रावण का जिस तरह से अंत हुआ ये घटना मानव जाति के लिए एक सबक भी है। भले आप अकूत ज्ञान के स्वामी हो, लेकिन आपके अंदर घमंड, अहंकार, पराई स्त्री पर बुरी नजर जैसे दुर्गुण हैं, तो आपका अंत निश्चित है।
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