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डॉ. खूबचंद बघेल: छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा, जानिए उनकी कहानी

डॉ. खूबचंद बघेल: छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा, जानिए उनकी कहानी Dr. Khubchand Baghel: Chhattisgarh's first dreamer, know his story nkp

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Bansal Digital Desk
डॉ. खूबचंद बघेल: छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा, जानिए उनकी कहानी

रायपुर। प्रदेश आज डॉ. खूबचंद बघेल की जयंती मना रहा है। डॉ. बघेल उन लोगों में से एक थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के गठन की नींव रखी। वे जाति, धर्म, भाषा, मूल निवासी की संकुचित अवधारणाओं से परे थे। उनका मानना था कि 'छत्तीसगढ़िया' वही है जो छत्तीसगढ़ के हित की बात करता है। अपने जाति के संगठन के मुखिया होने के बाद भी उन्होंने पृथक छत्तीसगढ़ आंदोलन के संचालन के लिए भ्रातत्व संगठन का गठन किया, जिसका एक व्यापक जाति निरपेक्ष और धर्म निरपेक्ष आधार था।

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कांग्रेस से मेडिकल कोर सदस्य के रूप में जुड़े

डॉ. खूबचंद बघेल का जन्म रायपुर जिले के पथरी गांव में 19 जुलाई, 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम जुड़ावन प्रसाद एवं माता का नाम केतकी बाई था। डॉ. खूबचंद बघेल ने वर्ष 1920 में नागपुर के राबर्ट्सन मेडिकल कालेज से शिक्षा ग्रहण किया। नागपुर में ही उन्होंने विजय राघवाचार्य की अध्यक्षता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में मेडिकल कोर के सदस्य के रूप में सम्मिलित हुए।

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा

डॉ. बघेल महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे। उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ गांधीजी से जुड़ने का फैसला किया और साल 1930 में गांधीजी के आंदोलन से जुड़ गए। 1942 में उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पहली बार गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। आजादी के बाद उन्होंने 1951 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और आचार्य कृपलानी के साथ 'किसान मजदुर प्रजा पार्टी' से जुड़ गए। डॉ. बघेल को छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वप्नदृष्टा भी कहा जाता है।

उनके द्वारा किए गए समाजिक कार्य

डॉ. बघेल खुले विचारों के थे। उन्होंने कुप्रथा का जमकर विरोध किया। होली के दौरान कराये जाने वाले 'किसबिन नाच' (kissbin dance) को बंद कराने के लिए उन्होंने सत्याग्रह किया और इसमें सफल भी रहे। इसके अलावा उन्होंने 'पंक्ति तोड़ो' आंदोलन चलाया। इस आंदोलन का उद्देश्य था 'कोई भी व्यक्ति किसी के भी साथ एक पंक्ति में बैठकर भोजन कर सकता है'। जाति के आधार पर अलग पंक्ति नहीं होनी चाहिए। इस आंदोलन में भी डॉ. बघेल सफल रहे।

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इनके मृत्यु के बाद ही नियमों में किया गया बदलाव

खूबचंद बघेल की मृत्यु 22 फरवरी 1969 को दिल्ली में हुयी थी। खूबचंद बघेल उस समय राज्यसभा सदस्य थे और दिल्ली में ही रहते थे। मौत के बाद उनके पार्थिव शरीर को मालगाड़ी से भिजवाया गया था। जिसका पूरे छत्तीसगढ़ में विरोध हुआ था और इसके बाद ही ये निर्णय लिया गया था कि किसी भी राजनेता के पार्थिव शरीर को हवाई जहाज से ही भेजा जाएगा।

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