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मंदसौर का धर्मराजेश्वर मंदिर: आधुनिक इंजीनियरिंग को चुनौती, जहां सूर्य देवता करते हैं भगवान शिव का अभिषेक

Dharmarajeshwar Mandir Mandsaur: मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में महादेव का एक ऐसा मंदिर है जो पत्थर की एक ही चट्टान को काटकर ऊपर से नीचे की ओर बनाया गया है। मंदिर को देखकर लगता ही नहीं कि यह सदियों पुराना है।

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BP Shrivastava
Dharmarajeshwar Mandir Mandsaur

हाइलाइट्स

  • धर्मराजेश्वर मंदिर अद्भुत कला का नमूना
  • शिव और विष्णु एक ही गर्भगृह में विराजित
  • एक किवदंती जुड़ी है इस मंदिर से
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रिपोर्ट- राहुल धनगर

Dharmarajeshwar Mandir Mandsaur: आज महाशिवरात्रि का पर्व है और इस मौके पर हम आपको एक अनोखे शिव स्थल के दर्शन करवाते हैं। मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में महादेव का एक ऐसा मंदिर है जो पत्थर की एक ही चट्टान को काटकर ऊपर से नीचे की ओर बनाया गया है। आधुनिक इंजीनियरिंग को चुनौती देते हुए इस मंदिर को देखकर लगता ही नहीं कि यह मंदिर सदियों पुराना है। इस मंदिर में शिव और विष्णु दोनों एक ही गर्भगृह में विराजित हैं। शैव और वैष्णव संप्रदाय के अलावा यहां पर बौद्ध गुफाएं भी मौजूद हैं। यह है मंदसौर का धर्मराजेश्वर मंदिर (Dharmarajeshwar Temple) और बौद्ध गुफाएं जो अपनी स्थापत्य कला को लेकर प्रसिद्ध है। यहां शिवरात्रि की अपनी एक अलग ही कहानी है। यहां महाशिवरात्रि के दिन-रात रुकने पर मनुष्य जीवन की एक यौनी कम हो जाती है।

'अद्भुत इंजीनियरिंग का प्रतीक'

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आज के इस आधुनिक इंजीनियरिंग युग को चुनौती देते हुए ऊपर से नीचे की ओर निर्माण होने वाला यह मंदिर अद्भुत इंजीनियरिंग का प्रतीक है। जब सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह में जाती है, तब ऐसा लगता है कि सूर्य भगवान स्वयं अपने 7 घोड़ों के रथ पर सवार होकर भगवान शिव और विष्णु के दर्शन करने के लिए मंदिर आए हों।

दर्शन से होती है आनंद की अनुभूति

मंदसौर जिला मुख्यालय से धर्मराजेश्वर मंदिर की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है। यहां आने वाला हर श्रद्धालु इस स्थान को देखकर एक अलग ही आनंद की अनुभूति करता है। विशाल मंदिर और यह देवालय ना सिर्फ भगवान शिव और विष्णु के मंदिर का प्रतीक है, बल्कि यह संसार का अकेला ऐसा मंदिर है, जो जमीन के भीतर होते हुए भी सूर्य की किरणों से सराबोर हैं।

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यह है किवदंती...

किवदंती है कि द्वापर युग में पांडव जब अपने अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर आए थे, तो भीम ने गंगा के सामने इसी जगह पर शादी का प्रस्ताव रखा था, जबकि गंगा भीम से शादी नहीं करना चाहती थी। इसीलिए गंगा ने भीम के सामने शादी की एक शर्त रखी थी, जिसके मुताबिक भीम को एक ही रात में चट्टान को काटकर इस मंदिर का निर्माण करना था। उसके बाद भीम की शर्त के मुताबिक 6 माह की एक रात बना दी, 6 माह की इस रात्रि में मंदिर का निर्माण किया गया था। इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर मूल रूप से विष्णु भगवान का मंदिर था, लेकिन बाद में यहां पर सेव मत के अनुयायियों ने भगवान शिव की भी स्थापना कर दी थी। मंदिर चौथी से पांचवीं शताब्दी का माना जाता है। यहां पर वैष्णव और शैव मठ के अलावा बौद्ध गुफाएं भी हैं।

केवल चार राज्यों में हैं ऐसे मंदिर

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धर्मराजेश्वर मंदिर (Dharmarajeshwar Temple) एक रॉक कट टेंपल है। यह चट्टानों को काटकर बनाया गया मंदिर Dharmarajeshwar Temple है और इस प्रकार के मंदिर भारत में अंदर केवल चार राज्यों में मिले हैं। हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा एक स्थान है वहां पर है, दूसरा तमिलनाडु में महाबलीपुरम का मंदिर समूह है, तीसरा महाराष्ट्र में एलोरा की गुफाएं हैं और चौथा मध्यप्रदेश में चंदवासा के समीप धर्मराजेश्वर नाम का स्थान है। बौद्ध काल के समय में मंदिर के अंदर के स्थान का नाम चंदन गिरी महाविहार होगा। ऐसा अनुमान 1962 में डॉक्टर वाकणकर को यहां जो एक मिट्टी की सील मिली थी उसका नाम चंदन गिरी महाविहार मिलता है। यह अभियंत्रिकी कला का अद्भुत नमूना इन अर्थों में है कि एलोरा के कैलाश मंदिर में जो चट्टान है वह चिकने बलवा पाषाण की है और वहां उनके सामने पहाड़ था जिसको काट कर के उन्होंने मंदिर बनाया। लेकिन यहां पहाड़ के अंदर जो 54 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी और 9 मीटर गहरी चट्टान को काट कर के और उसके अंदर 14.52 मीटर लंबा और 10 मीटर चौड़ा जो भगवान का मंदिर बनाया गया यह अभियांत्रिकी कला का अद्भुत नमूना है। इसके दाएं-बाएं सोपान मार्ग है।

मंदिर पुरातात्विक धरोहर

शैव वैष्णव और बौद्ध गुफाओं के सम्मिश्रण का अद्भुत यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है और यहां पर मंदिर के मूल स्वरूप को छोड़कर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए शासन कई तरह के यहां पर संसाधन विकसित कर रहा है। ताकि दूर-दूर से लोग जहां पर पर्यटक आएं और मंदिर के दर्शन भी कर सकें और भारत की प्राचीन संस्कृति और कला से रूबरू हो सकें।

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ज्यादा से ज्यादा पर्यटक लाने की कोशिश

मंदसौर जिले के गरोठ में स्थित धर्मराजेश्वर का यह मंदिर एक शिला को तराश कर बनाया गया है। जिसमें छोटे-बड़े मंदिर, गुफाएं हैं। यहां पर 7 छोटे और एक बड़ा मंदिर और 200 के लगभग गुफाएं मौजूद हैं। बताया जाता है कि यहां पर एक विशाल गुफा भी है, जो इस मंदिर से उज्जैन निकलती है। फिलहाल, इसे पुरातत्व विभाग द्वारा बंद कर रखा है। चट्टानों से तराशे गए इस भव्य धर्मराजेशवर मंदिर में आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। सरकार प्रयास कर रही है कि यहां पर पर्यटकों के लिए और सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए ताकि आने वाले समय में यहां पर दूर-दूर से पर्यटक आएं और धार्मिक पर्यटन सहित भारत की प्राचीन कला और अभियांत्रिकी से भी परिचित हों।

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महाशिवरात्रि के मौके पर यहां हजारों की संख्या में दूर-दराज से भक्तगण विष्णु और शिव की इस अद्भुत प्रतिमा के दर्शन करने पहुंचेंगे। वहीं हर साल की तरह यहां मेले का आयोजन भी होगा। पंडितों का मानना यह भी है कि आज शिवरात्रि के मौके पर यहां जो भी भक्त रात रुकता है तो उसकी मनुष्य जीवन की एक यौनी कम हो जाती है। अपनी इन्हीं खास मान्यताओं और बेहतरीन कलाकृति के साथ एक ही पत्थर में इतिहास को संजोए हुए धर्मराजेश्वर मंदिर और यह गुफाएं बेहद खास है।

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