Dhanteras 2023: इस वर्ष धनतेरस यानि छोटी दीपावली का त्योहार 10 नवंबर यानि शुक्रवार को मनाया जाएगा। आपको बता दें भारतीय परंपरा का पावन त्यौहार धन्वंतरी जयंती या धन त्रयोदशी निकट है। चलिए पंडित अनिल पाण्डेय (8959594400)से जानते हैं कि धनतेरस का त्योहार क्यों मनाते हैं साथ ही इसके पीछे कौन सी कथाएं प्रचलित हैं। क्या सच में इस दिन दीपदान का उपाय करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
पांच दिनी होता है त्योहार
दीपावली पांच पर्वों का समूह है जो कि धनतेरस से प्रारंभ होता है। धनतेरस को धनत्रयोदशी धन्वंतरी जयंती या यम त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस को मनाने के लिए के बारे में दो अलग-अलग कथाएं हैं।
धनतेरस की पौराणिक कथाएं और मान्यताएं
पहली कथा
पहली कथा के अनुसार इसी दिन समुंद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरी अमृत लेकर प्रकट हुए थे। यानि इस दिन मानव जाति को अमृत रूपी औषधि प्राप्त हुई थी। इस औषधि की एक बूंद ही व्यक्ति के मुख में जाने से व्यक्ति की कभी भी मृत्यु नहीं होती है। अगर हम आज के संदर्भ में बात करें एक ऐसी वैक्सीन की खोज हुई थी जिसके एक बूंद में मात्र से व्यक्ति को कभी कोई रोग नहीं हो सकता है।
दूसरी कथा
दूसरी कथा के अनुसार यमदेव ने एक चर्चा के दौरान बताया है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को रात्रि के समय पूजन एवं दीपदान को विधि पूर्वक पूर्ण करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। इसमें दीपक और पूजन का महत्व बताया गया है।
क्या है धन तेरस का वैज्ञानिक कारण Dhanteras 2023 scientific resion
अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो पंडित अनिल पांडे के अनुसार यम देव ने संभवत एक ऐसे तेल का आविष्कार किया था। जिसका दीप बनाकर प्रयोग करने से उस दीप की लौ से निकलने वाले गैस को ग्रहण करने से अकाल मृत्यु से व्यक्ति को छुटकारा मिलता था। अगर हम ध्यान दें तो इन दोनों कथाओं का संबंध व्यक्ति के स्वास्थ्य से है।
क्या है धनतेरस का ऋतुओं से संबंध
अगर हम इस त्योहार को सामान्य दृष्टिकोण से देखें तो हम पाते हैं कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तक वर्षा ऋतु समापन पर आ जाती है और इस दिन भी प्रकार की पूजा पाठ करने से तथा दीपक जलाने से विभिन्न प्रकार के कीट पतंगों का जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं नष्ट करने में हमें मदद मिलती है।
जैन समाज में क्या है इसका महत्व
जैन आगम में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
अन्य कथाएं
धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चूँकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनियाँ के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं। धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी, गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं। आप सभी को यह जानकर प्रसन्नता होगी की धनतेरस को भारत सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मान्यता दी है।
नोट: इस लेख में दी गई सभी जानकारियां सामान्य सूचनाओं पर आधारित हैं। बंसल न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता। अमल में लाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लें।
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