Devraha Baba Story: भारत को ऋषि-मुनियों का देश कहा जाता है। यहां सैंकड़ो ऐसे योगियों और संन्यासियों ने जन्म लिया, जिन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है। उत्तर प्रदेश के देवरिया में भी एक ऐसे ही सिद्ध योगी थे। जिन्हें देवरहा बाबा के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि उन्हें कई तरह की सिद्धियां प्राप्त थीं। वह लोगों की मन की बात जान लेते थे और पानी पर भी चलने में माहिर थे।
कई बड़े राजनेता उनसे आशीर्वाद लेने आते थे
देश-विदेश के कई बड़े राजनेता, उनके पास आशीर्वाद लेते के लिए आते थे। उनके चमत्कारों की अनेक कहानियां हैं। सरयू नदी के किनारे बने अपने आश्रम में वे एक मचान पर हमेशा बैठे रहते थे और यहीं से अपने भक्तों को दर्शन देते थे। कहा जाता है कि सरयू के दियारा क्षेत्र में रहने के कारण उनका नाम देवरहा बाबा पड़ा था। दुबली पतली शरीर, लंबी जटा, कंधे पर यज्ञोपवीत और कमर में मृग छाला यही उनकी वेशभूषा थी।
कितने वर्ष तक जिंदा रहे ये कोई नहीं कह सकता
वह कितने वर्ष तक जिंदा रहे इसका अनुमान किसी ने भी सही-सही नहीं लगाया है। कोई कहता है कि वे 900 वर्ष तक जिंदा रहे, तो कई 250 साल की बात करता है। वहीं एक इंटरव्यू में जब उनसे उम्र के बारे में पूछा गया था, तो उन्होंने कहा था कि वे ईश्वरलीन हैं। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, चंद्रशेखर, वीपी सिंह, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कई कद्दावर नेता उनसे मिलने जाते थे। इसके अलावा देश विदेश से भी लोग बाबा के दर्शन करने आते थे।
इंदिरा गांधी भी पहंची थी आशीर्वाद लेने
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आपातकाल के बाद 1977 के आम चुनाव में जब कांग्रेस पार्टी की बुरी तरह हार हुई थी, तब इंदिरा गांधी देवराहा बाबा से आशीर्वाद लेने के लिए उनके आश्रम पहुंची थीं। कहा जाता है कि बाबा ने तब उन्हें हाथ उठाकर पंजे से आशिर्वाद दिया था। आमतौर पर वो अपने भक्तों को पैरों से आशिर्वाद देते थे। वहां से लौटने के बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के चुनाव चिह्न को हाथ के पंजे में बदल दिया और 1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को पंजा के निशान पर प्रचंड बहुमत मिला।
जनसेवा और गोसेवा को सर्वोपरि मानते थे
बाबा जनसेवा और गोसेवा को सर्वोपरि मानते थे। यही नहीं अपने भक्तों को गरीबों और जरूरतमदों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा ईश्वर की भक्ति में लीन रहने को प्रेरित करते थे। बता दें कि उन्होंने कई वर्षों तक हिमालय में तपस्या की थी उसके बाद देवरिया जिले के सलेमपुर शहर से कुछ दूरी पर सरयू नदी के किनारे रहकर राम नाम जपते थे। हालांकि, अंतिम समय में वे वृंदावन चले गए थे। बाबा के बारे में कहा जाता है उन्हें किसी ने कहीं आते-जाते नहीं देखा था। खेचरी सिद्धि के चलते वह जहां चाहते थे, वहां मन की गति से पहुंच जाते थे।
19 जून को नश्वर शरीर को त्याग दिया
उन्होंने अपने जीवन में कभी भी अन्न नहीं खाया। केवल दूध और शहद को फलाहार के रूप में लेते थे। देवरहा बाबा साल के 8 महीने अपने आश्रम में रहते थे, जबकि बाकी समय उनका काशी, प्रयाग, मथुरा और हिमालय में एकांतवास के रूप में गुजरता था। अपने अंतिम समय में वे वृंदावन में थे, यहां उन्होंने यमुना तट पर चार वर्षों तक साधना की। यहां वे प्रतिदिन लोगों से मिलते थे और उन्हें दर्शन देते थे। लेकिन 11 जून 1990 से उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया और 19 जून 1990 को उन्होंने अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया।