Dev Shayani Ekadashi 2025 Kab haiGrah Gochar Surya Nakshatra Guru ka Uday Effect: हिन्दू पंचांग के अनुसार 6 जुलाई रविवार को देवशयनी एकादशी है।
ज्योतिष के अनुसार इस साल देवशयनी एकादशी पर ग्रहों में बड़ा फेरबदल होने जा रहा है। इस दिन गुरु, सूर्य का गोचर होगा। ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविंद शास्त्री से जानते हैं देवशयनी एकादशी पर ग्रहों का ये परिवर्तन (Grah Gochar) आप पर क्या असर डालेगा, साथ ही इसका बारिश पर क्या असर होगा।
6 जुलाई को देवशयनी एकादशी
ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविंद शास्त्री ने बताया हिन्दू पंचांग (Hindu Panchang) के अनुसार 6 जुलाई रविवार को देवशयनी एकादशी है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है।
6 जुलाई से चातुर्मास शुरू (Chaturmas 2025 Date)
हिन्दू पंचांग और ज्योतिष के अनुसार 6 जुलाई से चातुर्मास (चार पवित्र महीनों का काल) शुरु हो जाएगा। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक माह की प्रबोधिनी एकादशी यानी देव उठनी एकादशी पर जागते हैं। इसे बड़ी ग्यारस भी कहते हैं।
6 जुलाई को गुरु का उदय (Guru ka Uday)
जुलाई 2025 के ग्रह गोचर में सबसे पहले गुरु ग्रह उदित होने जा रहे हैं। बीते 11 जून को अस्त हुए गुरु रविवार को उदित हो जाएंगे। ज्योतिष में शुक्र और गुरु का उदय हमेशा मौसम पर असर डालता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार 6 जुलाई उदित हो रहे गुरु 8 महीने तक इसी स्थिति में रहेंगे। ऐसे में धार्मिक कार्य शुरू हो जाएंगे। लेकिन इसी बीच शुक्र के अस्त होने पर एक बार फिर शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगी। लेकिन इस दौरान मौसम में बदलाव आएगा। जिन क्षेत्रों में बारिश हो रही है वहां बारिश रुक जाएंगी, जहां बारिश रुकी हुई थी वहां होने लगेगी।
क्या है देवशयनी एकादशी? (What is Devshayani Ekadashi)
देवशयनी एकादशी को हरि शयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी या पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है और जगन्नाथ रथ यात्रा के तुरंत बाद आता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह जून या जुलाई में पड़ती है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करके आने वाले महीनों के लिए शांति, सुरक्षा और आशीर्वाद की कामना करते हैं।
देवशयनी एकादशी 2025 का महत्व
देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु के चार महीने के शयन (योगनिद्रा) की शुरुआत का प्रतीक है। इस दौरान भगवान शेषनाग पर क्षीर सागर में विश्राम करते हैं। चातुर्मास का यह समय विवाह, प्रॉपर्टी खरीदने या कोई नया कार्य शुरू करने के लिए अशुभ माना जाता है। यह आत्मअनुशासन, तप और भक्ति का काल होता है।