MP News: मध्यप्रदेश की जनता ने पिछले चुनाव में 14 पूर्व रियासतों के सदस्य विधायक चुने गए थे। 2023 के चुनाव में ये संख्या घटकर 9 रह गई है। 9 में से 6 दोबारा विधायक बने हैं। 3 में से दो पिछला चुनाव हार गए थे, इस बार फिर जीते हैं। एक विधायक ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया है।
इस बार चुनाव जीतने वाले राजपरिवार के सदस्यों में से 6 भाजपा और 3 कांग्रेस से हैं। 2018 के चुनाव में जो 14 सदस्य चुनाव जीते थे, उनमें से 7 हार गए और एक को टिकट नहीं मिला।
रीवा रियासत के दिव्यराज सिंह सिरमौर से तीसरी बार चुनाव जीते। रीवा एमपी की सबसे पुरानी रियासतों में से एक है। 11वीं शताब्दी में महाराजा व्याघ्रदेव इसके राजा थे। उनके वंशज पुष्पराज सिंह और उनके बेटे युवराज दिव्यराज सिंह राजनीति में सक्रिय हैं।
पुष्पराज सिंह रीवा से 1990 से 2003 तक लगातार तीन बार विधायक रहे। अब दिव्यराज रीवा जिले की सिरमौर सीट से तीसरी बार विधायक का चुनाव जीते हैं।
देवास रियासत की राजमाता गायत्री राजे संभालेगी राज
तुकोजीराव पवार के निधन के बाद गायत्री राजे पवार ने 2015 में पहला उपचुनाव लड़ा था। इसमें उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश शास्त्री को हराया। इससे पहले तुकोजीराव पवार 1993 से 2015 तक देवास से विधायक रहे। दो बार कैबिनेट मंत्री भी रहे थे। गायत्री राजे तीसरी बार विधायक बनी हैं। गायत्री राजे ग्वालियर के महाडिक परिवार की बेटी हैं, जो सदियों से सिंधिया परिवार का खास रहा है।
मकड़ाई रियासत के विजय शाह ने हरसूद से जीता चुनाव
खंडवा जिले की इस रियासत का इतिहास 700 साल से भी ज्यादा पुराना है। यहां के आखिरी राजा देवी शाह थे। देवी शाह के मंझले बेटे विजय शाह ने 1990 में हरसूद से पहला चुनाव लड़ा था। इसके बाद वे लगातार इस सीट से चुनाव जीत रहे हैं। शिवराज कैबिनेट में मंत्री भी रहे। 8वीं बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं।
बाघेला रियासत के विक्रम सिंह दूसरी बार विधायक
सतना जिले की रामपुर बघेलान सीट बाघेला राजवंश की रियासत में आती है। इस रियासत के महाराज गोविंद नारायण सिंह 1967 से 1969 तक एमपी के सातवें मुख्यमंत्री रहे। गोविंद सिंह के पांच बेटों में से एक हर्ष सिंह रामपुर बघेलान से 2018 तक विधायक रहे। 2018 में हर्ष सिंह के बेटे विक्रम सिंह को भाजपा ने टिकट दिया। 2023 में विक्रम सिंह दूसरी बार यहां से विधायक बने हैं।
नागौद रियासत के नागेंद्र सिंह भाजपा के सबसे उम्रदराज विधायक
नागौद के आखिरी महाराज महेंद्र सिंह थे। महेंद्र सिंह के बेटे नागेंद्र सिंह 1977 में पहली बार विधायक चुने गए। कैबिनेट मंत्री रहे नागेंद्र सिंह खजुराहो से सांसद भी रहे हैं। 2018 के बाद 2023 का चुनाव भी जीते। पहले नागेंद्र सिंह ने उम्र का हवाला देते हुए चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था लेकिन बयान देने के 24 घंटे बाद उनके सुर बदल गए। कहा- मेरे चुनाव लड़ने, न लड़ने का फैसला पार्टी करेगी।
राघोगढ़ रियासत के जयवर्धन ने संभाली पिता की विरासत
जयवर्धन सिंह उस राघोगढ़ रियासत से आते हैं, जो एमपी की राजनीति में लंबे समय से सक्रिय है। 1673 में राघोगढ़ रियासत के राजा खिची वंश के राजपूत लाल सिंह थे। रियासत के 11वें राजा बलभद्र सिंह के बाद उनके बेटे और मप्र के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह रियासत के राजा बने।
1969 में दिग्विजय सिंह राघोगढ़ नगर पालिका के अध्यक्ष और 1977 में पहली बार विधायक बने। 1993 से 2003 तक वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। दिग्विजय के बेटे जयवर्धन 2013 से लगातार विधायक हैं।
अलीपुरा रियासत के प्रताप सिंह पहली बार चुनाव जीते
छतरपुर जिले की अलीपुरा रियासत की स्थापना 1757 में पन्ना रियासत के सरदार रहे राजा अंचल सिंह ने की थी। अंचल सिंह के वंशज मानवेंद्र सिंह और उनके बेटे कामाख्या प्रताप सिंह राजनीति में सक्रिय हैं। मानवेंद्र 1993 से 2003 तक बिजावर से कांग्रेस विधायक रहे। 2008 में महाराजपुर सीट से निर्दलीय और 2013 में भाजपा के टिकट पर विधायक रहे।
अब मानवेंद्र के बेटे कामाख्या महाराजपुर से पहली बार विधायक का चुनाव जीते हैं। 2023 के चुनाव में कामाख्या प्रताप सिंह ने 1 करोड़ 57 लाख से ज्यादा संपत्ति बताई है।
मकड़ाई रियासत के अभिजीत जीते
खंडवा जिले की इस रियासत के आखिरी राजा देवी शाह के 4 पुत्र थे। अजय, विजय, धनंजय और संजय शाह। अभिजीत सबसे बड़े बेटे अजय शाह के बेटे हैं। अभिजीत ने अपने चाचा संजय शाह को 2023 के चुनाव में 950 वोट से हराया है। इन दोनों का मुकाबला 2018 में भी हुआ था, तब अभिजीत 2213 वोट से चुनाव हार गए थे।
चुरहट राजघराने से अजय सिंह चुनाव जीत गए
सीधी जिले के चुरहट राजघराने के आखिरी महाराज राजा शिव बहादुर सिंह थे। पुत्र अर्जुन सिंह 1980 में मुख्यमंत्री बने। लगातार चुनाव जीतते रहे। 1988 में दोबारा मुख्यमंत्री बने। केंद्रीय मंत्री भी रहे। साल 2011 में राज्यसभा सदस्य रहते हुए उनका निधन हो गया था।
उनके पुत्र अजय सिंह 1985 में विधायक बने। दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे। चुरहट से 6 बार विधायक रहे हैं। दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री भी रहे हैं। 2017 से 2018 तक नेता प्रतिपक्ष रहे हैं। 2018 का चुनाव हार गए थे। इस बार जीत मिली है। इनकी कुल संपत्ति 39 करोड़ 86 लाख 37 हजार 110 रुपए है।
खिलचीपुर रियासत के प्रियव्रत 20 साल की उम्र से राजनीति
राजगढ़ जिले के खिलचीपुर राजघराने का राजनीति में दखल है। प्रियव्रत सिंह 2003 से 2013 तक लगातार 2 बार खिलचीपुर से विधायक रहे। 2018 से 2023 तक भी विधायक रहे हैं। महज 20 साल की उम्र में निर्विरोध जिला पंचायत सदस्य बन गए थे। इस बार हार का सामना करना पड़ा है। 2023 में प्रियव्रत ने कुल 10 करोड़ 52 लाख की संपत्ति बताई है।
छतरपुर रियासत के विक्रम सिंह नातीराजा 4 बार विधायक
कुंवर विक्रम सिंह नाती राजा 2003 से 2023 तक राजनगर सीट से लगातार 4 बार विधायक रहे। इनकी पत्नी कविता सिंह वर्तमान में खजुराहो नगर परिषद की अध्यक्ष हैं। विक्रम सिंह को इस चुनाव में भाजपा के अरविंद पटैरिया से हार का सामना करना पड़ा। इनकी कुल संपत्ति 9 करोड़ 7 लाख है।
चित्रकूट रियासत की तीसरी पीढ़ी के नीलांशु चतुर्वेदी विधायक
यह प्रदेश और बुंदेलखंड का एकलौता ब्राह्मण राजघराना है, जो राजनीति में सक्रिय है। आजादी के बाद से ये परिवार राजनीति से दूर हो गया था। तीसरी पीढ़ी के रूप में नीलांशु चतुर्वेदी ने 2017 में चित्रकूट से उपचुनाव जीता। 2018 में फिर चुने गए, लेकिन इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। 2023 में नीलांशु चतुर्वेदी ने 3 करोड़ 82 लाख रु. की संपत्ति बताई है।
हिंडोरिया राजघराने के कुंवर प्रद्युम्न सिंह लोधी को साध्वी ने हरा दिया
दमोह जिले की हिंडोरिया रियासत की शुरुआत महाराजा छत्रसाल के साथी रहे राजा बुद्ध सिंह लोधी ने की थी। राजा बुद्ध सिंह के वंशज प्रद्युम्न सिंह 2018 में मलहरा सीट से विधायक बने थे। 2020 में भाजपा में शामिल होकर दोबारा चुनाव जीते। भाजपा ने राज्यमंत्री का दर्जा भी दिया था। इस बार उन्हें कांग्रेस की साध्वी रामसिया भारती ने हरा दिया। इनकी कुल संपत्ति 2 करोड़ 22 लाख रुपए है।
राघोगढ़ रियासत के लक्ष्मण सिंह इस बार चाचौड़ा से हारे
लक्ष्मण सिंह, दिग्विजय सिंह के छोटे भाई है। 5 बार सांसद रहे हैं। बीजेपी के टिकट पर भी राजगढ़ लोकसभा सीट से सांसद बने। दिग्विजय सिंह के कहने पर उन्होंने कांग्रेस में वापसी की। 2018 में चाचौड़ा से विधानसभा चुनाव जीते थे। इस बार भाजपा की युवा प्रत्याशी प्रियंका मीणा ने उन्हें मात दे दी। लक्ष्मण सिंह ने चुनाव आयोग को 42 करोड़ की संपत्ति बताई है।
अमझेरा रियासत के राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव को शेखावत ने हराया
बख्तावर सिंह के वंशज राजवर्धन सिंह दत्तीगांव 2018 में कांग्रेस के टिकट पर तीसरी बार विधायक बने। कमलनाथ सरकार में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से भाजपा में आए तो दत्तीगांव भी इस्तीफा देकर भाजपा में आ गए। भाजपा के टिकट पर उपचुनाव जीते। इस बार हार का सामना करना पड़ा। इनकी कुल संपत्ति 17 करोड़ 22 लाख रुपए है।
मकड़ाई रियासत के दो वारिस सदन में, संजय शाह हारे
संजय शाह मकड़ाई रियासत के सदस्य हैं। उनके भाई विजय शाह लगातार चुनाव जीत रहे हैं। 2008 में संजय शाह को भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय चुनाव जीते। 2013 और 2018 में भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गए। 2023 में अपने सगे भतीजे अभिजीत शाह से चुनाव हार गए। संजय शाह ने 6 करोड़ 81 लाख की संपत्ति बताई है।
सिंधिया राजघराने से माया सिंह को हार का सामना करें
राजमाता विजयाराजे सिंधिया के भाई ध्यानेंद्र सिंह की पत्नी माया सिंह भी राजनीति में साल 1984 से सक्रिय हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया की मामी हैं। भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद भी रहीं। 2013 में मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए ग्वालियर पूर्व से विधायक चुने जाने के बाद शिवराज कैबिनेट में मंत्री रहीं। 2018 में इनका टिकट काट दिया गया था। इस बार चुनाव लड़ीं लेकिन हार का सामना करना पड़ा।
राजपरिवार से होना चुनाव जीतने की गारंटी नहीं
टिमरनी विधानसभा सीट से अपने ही चाचा को चुनाव हराने वाले प्रत्याशी अभिजीत शाह ने कहा, ‘लोकतंत्र में सारे संवैधानिक अधिकार जनता के पास होते हैं। जहां तक मेरी जीत में राजघराने की भूमिका की बात है, तो हम और भाजपा के उम्मीदवार एक ही घराने से आते हैं।
जिसने जनता की सेवा की, उसे उसका फल मिला। पहले भी गद्दी पर वही बैठता था, जो जनता की सेवा करता था। मुझे यह जीत अपने संघर्ष और जनता की सेवा करके मिली है। राजघराने से होने का एक फायदा ये मिलता है कि लोग आपको जानते हैं। कोई अगर ये सोचकर चुनाव लड़े कि राजघराने की वजह से वह जीत जाएगा तो लोकतंत्र में ये संभव नहीं है।’
जनता के बीच सक्रिय रहने से मिलता है वोट
अलीपुरा रियासत से आने वाले कामाख्या प्रताप सिंह ने कहा, ‘राजघराने की वजह से फायदा तो मिलता है कि लोग आपको पहचानते हैं। आपको सम्मान देते हैं लेकिन इसके भरोसे नहीं बैठा जा सकता। लोगों की उम्मीदें आपसे होती हैं लेकिन उस पर खरा भी उतरना होता है वरना इसका नुकसान होता है।
मेरी हमेशा से कोशिश रही कि मैं लोगों के सुख-दुख में उनके साथ रहूं। मैं पहली बार जीता हूं तो क्षेत्र के विकास पर मेरा पूरा फोकस रहेगा।