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खाद की किल्लत के बीच डिप्टी CM की सलाह: डीएपी की जगह NPK करें यूज, किसान बोले- ये डेढ़ से दो गुना महंगा पड़ता है

Madhya Pradesh Deputy CM Rajendra Shukla Update बुधवार को अल्प प्रवास में जबलपुर पहुंचे डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला ने कहा कि, जिस तरह फसलों के लिए डीएपी काम करती है, उसी तरह से एनपीके भी है,

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Rohit Sahu
खाद की किल्लत के बीच डिप्टी CM की सलाह: डीएपी की जगह NPK करें यूज, किसान बोले- ये डेढ़ से दो गुना महंगा पड़ता है

MP DAP Shortage: डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला ने जबलपुर में कहा कि एनपीके उर्वरक डीएपी की तरह फसलों के लिए उपयोगी है। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे डीएपी के पीछे परेशान न हों और एनपीके का उपयोग करें, क्योंकि सरकार के पास इसकी पर्याप्त मात्रा है और डबल लॉक केंद्रों से इसे लिया जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि एनपीके ग्रेड (NPK Khaad) के उर्वरक डीएपी से सस्ते और अच्छे हैं।

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हालांकि किसानों की कुछ अलग राय है। किसानों का दावा है कि ये फसलों में डीएपी से अधिक लगता है, इसलिए एनपीके का उपयोग किसान के लिए एक महंगा सौदा है। यही कारण है कि किसान लाइनों में लगकर डीएपी ले रहा है।

एक दो दिन में आएगी नई खेप

डिप्टी सीएम (Deputy CM Rajendra Shukla) ने कहा कि किसान सुबह से खाद वितरण केंद्रों पर खड़े होकर डीएपी उर्वरक की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सरकार समस्या का समाधान करने में जुटी है। डिप्टी सीएम ने आश्वासन दिया है कि एक-दो दिन में डीएपी की नई खेप आने वाली है।

DAP की जगह NPK यूज करने की सलाह

डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला ने किसानों से अपील की है कि वे डीएपी के साथ-साथ एनपीके खाद का भी उपयोग करें। एनपीके डीएपी की तरह फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मददगार है, इसलिए किसान परेशान न हों और इसका उपयोग करें।

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डीएपी और एनपीके क्या हैं

डीएपी में नाइट्रोजन (18%) और फास्फोरस (46%) होता है। यह फसल की बुवाई के समय बेसल डोज में दिया जाता है। नाइट्रोजन पत्तियों और तनों को हरा-भरा रखता है। फास्फोरस जड़ों को मजबूत बनाता है और फूल-फल लगने में मदद करता है। गेहूं, धान, मक्का जैसी फसलों के लिए उपयुक्त है। वहीं एनपीके में (नाइट्रोजन, फास्फोरस, के साथ पोटैशियम भी पाया जाता है। इसे फसलों के लिए डीएपी से ज्यादा लाभदायक माना जाता है। पोटैशियम पौधे को रोगों से लड़ने और सूखे का सामना करने में मदद करता है।

डेढ़ से दो गुना तक खपत ज्यादा

किसान नेता केदार सिरोही ने बताया कि फसल के लिए नाइट्रोजन और फास्फोरस सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। डीएपी की तुलना में ये एनपीके में कम होते हैं। यही कारण है कि एनपीके की बोरी भले ही डीएपी से 100-50 रुपये कम हो, लेकिन खपत बढ़ने से ये एक महंगा सौदा ही है।

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मान लीजिए एक एकड़ गेहूं में डीएपी दो बोरी लगनी है तो एनपीके तीन से चार बोरी लगेगी। इससे किसान को आर्थिक नुकसान होगा। वहीं इसकी गुणवत्ता की भी गारंटी नहीं होती है।

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किसान खाद के लिए परेशान

किसानों के लिए डीएपी खाद एमपी के आधे जिलों में उपलब्ध (Fertilizers In Madhya Pradesh) नहीं हो पा रहा है। कई जगह किसान घंटों लाइन में लगने के बाद भी खाद नहीं ले पा रहे हैं। बता दें गेहूं, सरसों और आलू की बुआई का सीजन होने के कारण किसानों को खाद की तत्काल आवश्यकता है। खाद वितरण समिति से पर्याप्त मात्रा में खाद नहीं मिल पा रही है। किसानों का आरोप है कि समिति के बाबू खाद की कालाबाजारी कर रहे हैं। अन्य दुकानों में खाद की कालाबाजारी हो रही है, जहां 1340 रुपये की खाद 1700-2000 रुपये में बेची जा रही है।

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