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Damoh: ड्यूटी के वक्त गंवाया हाथ, दोगुने जज़्बे के साथ ड्यूटी पर लौटे ASI, जानें MP के इस जांबाज जवान की कहानी

Damoh Policeman Bravery: दमोह जिले के बांदकपुर चौकी में पदस्थ एएसआई राजेंद्र मिश्रा का किस्सा ऐसा ही है, जो हर किसी को प्रेरित कर रहा है।

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Shashank Kumar
Damoh Policeman Bravery

दमोह से मनीष सोनी की रिपोर्ट..

Damoh Policeman Bravery: जिंदगी के हर मोड़ पर संघर्ष की कहानियां मिलती हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने साहस और दृढ़ निश्चय से मिसाल कायम करते हैं। दमोह जिले के बांदकपुर चौकी में पदस्थ एएसआई राजेंद्र मिश्रा का किस्सा ऐसा ही है, जो हर किसी को प्रेरित कर रहा है।  

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10 नवंबर को एक हादसा हुआ, जब दो लोग ट्रेन से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गए। सूचना मिलते ही राजेंद्र मिश्रा (ASI Rajendra Mishra) अपनी मोटरसाइकिल लेकर घटनास्थल पर पहुंचे। डायल 100 भी उनकी मदद के लिए पहुंची। घटना स्थल पर पता चला कि ट्रेन से गिरने वाले दोनों युवकों की मौत हो चुकी है।

गंवाया अपना हाथ, लेकिन ड्यूटी को दी प्राथमिकता

इसके बाद एएसआई मिश्रा डायल 100 (dial 100) के ड्राइवर के साथ शवों को रेस्क्यू करने लगे। तभी इसी दौरान, अचानक एक और तेज रफ्तार ट्रेन दूसरी लाइन पर आ गई। दोनों पुलिसकर्मियों ने ट्रेन को आते हुए नहीं देखा और ट्रेन की चपेट में आ गए। इस घटना में राजेंद्र मिश्रा अपनी ड्यूटी को प्राथमिकता देते हुए बायां हाथ गंवा दिया।

घायल अवस्था में उन्हें जिला अस्पताल लाया गया और फिर जबलपुर रेफर किया गया। डेढ़ महीने के इलाज के बाद, वे पूरी ऊर्जा और आत्मविश्वास के साथ अपने शहर लौटे हैं। इस दुर्घटना (Damoh Policeman Bravery) के बावजूद उनका साहस कम नहीं हुआ है और उसी जोश के साथ ड्यूटी करने के लिए तैयार हैं। 

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मां-बाप को नहीं दी जानकारी 

राजेंद्र मिश्रा की यह कहानी और भी दिल को छू लेने वाली हो जाती है, जब पता चलता है कि उन्होंने इस घटना की जानकारी अपने माता-पिता को नहीं दी। एएसआई ने भावुक होकर कहा, 'मेरे माता-पिता यह पीड़ा सहन नहीं कर पाएंगे। उनके लिए मैं वही हूं, जैसा पहले था।'

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संघर्ष और साहस की मिसाल

अपने कठिन समय में, राजेंद्र मिश्रा को विभाग और परिवार का भरपूर सहयोग मिला। लेकिन यह उनकी आत्मशक्ति थी, जिसने उन्हें फिर से खड़ा किया। उनकी यह कर्तव्यनिष्ठा (Damoh Policeman Bravery) और समर्पण आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा है।  

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नया साल नई शुरुआत का प्रतीक है, और राजेंद्र मिश्रा (ASI Rajendra Mishra) इसे अपने कर्तव्य पथ पर लौटने की एक नई सुबह मानते हैं। उनकी बहादुरी और समर्पण इस बात का उदाहरण है कि सच्चे योद्धा कभी हार नहीं मानते।  

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