हाइलाइट्स
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दमोह सीट पर लोधी समाज का खासा प्रभाव
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बीजेपी और कांग्रेस ने लोधी प्रत्याशी को दिया टिकट
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35 साल से दमोह लोकसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा
Damoh Lok Sabha Seat: लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 8 सीटों पर चुनाव होने हैं. जिसमें दमोह लोकसभा सीट भी शामिल है. इस सीट पर 26 अप्रैल को चुनाव (Lok Sabha Chunav 2024) होने हैं. इस सीट पर अभी तक बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही मुख्य लड़ाई होती थी. हालांकि इस बार मुकाबला रोमांचक होने वाला है. दोनों पार्टियों ने लोधी समाज से आने वाले प्रत्याशियों को टिकट दिया था. इसी बीच किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर दुर्गा मौसी ने भी नामांकन भर दिया. जिससे अब मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है.
दमोह सीट की पृष्ठभूमि
बुंदेलखंड अंचल मेंं दमोह लोकसभा सीट प्रमुख है. एक समय तक इस सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. लेकिन बीते 35 साल यानि 1989 से बीजेपी यहां कब्जा जमाए हुए है. दमोह क्षेत्र दो तीर्थस्थलों की वजह से भी पहचाना जाता है. पहला बांदकपुर में शिवजी का जागेश्वरनाथ धाम और दूसरा कुंडलपुर में जैन तीर्थस्थल मौजूद है. यहां पहला चुनाव 1962 में हुआ था. तब ये सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित थी. 1967 में परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य हो गई.
दुर्गा मौसी अनौखे अंदाम में कर रहीं प्रचार
दमोह में बीजेपी और कांग्रेस के प्रत्याशियों के दुर्गा मौसी कड़ी चुनौती दे सकती हैं. वे रोज कई गांवों में घूम रही हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में किन्नर समुदाय की संख्या भी अच्छी खासी है. ऐसे में इलाके के सभी किन्नरों का भरपूर समर्थन दुर्गा मौसी को मिल रहा है. दुर्गा मौसी स्कूटी से रोज 100 किलोमीटर यात्रा कर रही हैं. जहां रात होती है वहीं विश्राम और सुबह फिर प्रचार शुरू. उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन भरा है. दुर्गा मौसी 2019 में चर्चा में आईं थी. उन्हें तब प्रयागराज कुंभ के दौरान किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर की उपाधि मिली थी. वे कटनी जिले से जनपद सदस्य भी हैं. वे सात साल तक मुडवारा तहसील के कनवारा गांव की सरपंच रहीं हैं.
विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मारी बाजी
दमोह लोकसभा सीट (Damoh Lok Sabha) में 8 विधानसभा क्षेत्र दमोह, हटा, जबेरा, पथरिया, बड़ा मलहरा, देवरी, रहली, बंडा आते हैं. यहां लगभग 19.19 लाख वोटर हैं. जिसमें से 10.05 लाख पुरुष और 9.13 लाख महिला मतदाता हैं. इस सीट पर 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बाजी मारी. यहां 8 सीटों में से सिर्फ 1 सीट मलहरा पर ही कांग्रेस ने कब्जा जमाया है.
कांग्रेस ने तरवर सिंह लोधी को दिया टिकट
दमोह सीट से कांग्रेस ने बंडा सीट से पूर्व विधायक रहे तरवर सिंह लोधी पर भरोसा जताया है. तरवर सिंह लोधी को भी दमोह के लोधी वोटर्स को साधने के लिए कांग्रेस ने दाव लगाया है. तरवर सिंह लोधी का राजनीतिक सफर सरपंच के तौर पर शुरू हुआ था. 2015 में वे जिला पंचायत सदस्य बने. इसके बाद उन्हें 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बने. तब उन्होंने बीजेपी के हरवंश राठौर को 25 हजार वोटों से हराया था. इसके बाद 2023 के चुनाव में उन्हें बीजेपी के वीरेंद्र लोधी से हार का सामना करना पड़ा. अब वे पहली बार सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं.
बीजेपी ने राहुल सिंह लोधी पर जताया भरोसा
बीजेपी ने लोधी समाज को साधने के लिए राहुल सिंह लोधी को उम्मीदवार बनाया है. वे दमोह विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं. तब वे कांग्रेस में थे. 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा था. जिसमें उन्होंने बीजेपी के जयंत मलैया को करीबी मुकाबले में 798 वोटों से हराया था.इसके बाद 2020 में वे बीजेपी में शामिल हुए. हलांकि 2023 विधानसभा में उन्हें बीजेपी ने टिकट नहीं दिया था.
जातीय समीकरण में लोधी बनाम लोधी
दमोह (Damoh Lok Sabha Seat) पर लोधी समाज के वोटर बहुसंख्यक हैं, इसी को देखते हुए कांग्रेस और बीजेपी ने Lok Sabha Chunav 2024 के लिए लोधी वोटर्स पर भरोसा जताया है. लोधी, कुर्मी वर्ग यानि ओबीसी यहां 22.4 प्रतिशत के आसपास है. इसके अलावा वैश्य, जैन यानि सवर्ण 7 प्रतिशत के आसपास हैं. जबकि ब्राहमण-राजपूत 10 प्रतिशत हैं. वहीं आदिवासी वर्ग 9.6 प्रतिशत हैं, जबकि यादव मतदाता भी 5.7 प्रतिशत हैं..
कांग्रेस के सामने वापसी की चुनौती
इस सीट (Damoh Lok Sabha Seat) पर कांग्रेस के सामने वापसी करने की चुनौती होगी. 35 साल से बीजेपी यहां काबिज है. कांग्रेस के उम्मीदवार तरवर सिंह लोधी का कहना है कि यह चुनाव दमोह की जनता के स्वाभिमान का चुनाव है. जबिक बीजेपी मोदी की गारंटी को अपना हथियार बना रही है. खास बात यह है कि बीजेपी उम्मीदवार राहुल सिंह लोधी और कांग्रेस प्रत्याशी तरवर सिंह लोधी 2018 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट से विधायक बने थे.
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इस सीट का राजनीतिक इतिहास
1962 में यहां पहली बार चुनाव हुआ था. तब कांग्रेस ने यहां कब्जा जमाया था. कांग्रेस ने पांच चुनावों 962,1967, 1971,1980 और 1984 में इस सीट पर जीत हासिल की. 1989 में बीजेपी के लोकेंद्र सिंह ने कांग्रेस से ये सीट छीन ली. तब से ये सीट बीजेपी के कब्जे में रही. 1991 से 1999 तक रामकृष्ण कुसमरिया, 2004 में चंद्रभान भैया, 2009 में शिवराज लोधी, 2014 और 2019 में प्रहलाद पटेल को यहां से जीत मिली. 2014 के चुनाव में प्रहलाद पटेल ने कांग्रेस के महेंद्र प्रताप सिंह को हराया. वहीं 2019 के चुनाव में फिर से एक बार प्रहलाद पटेल ने प्रताप सिंह लोधी को हराया.