नयी दिल्ली, 19 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के प्रावधानों में संसद में किए गए संशोधनों को उचित करार दिया।
यह फैसला उन बदलावों से संबंधित है, जो किसी कर्जदार कंपनी के खिलाफ दिवाला एवं ऋणशोधन का मामला शुरू करने के प्रावधानों में किये गये हैं। पहले चूक करने वाली रियल एस्टेट कंपनी के खिलाफ किसी एक खरीदार की शिकायत पर भी आईबीसी की कार्रवाई शुरू हो जाती थी। संसद ने इसमें बदलाव किया। अब मामला शुरू करने के लिये कम से कम एक सौ खरीदार या परियोजना के तहत आवंटन पाने वालों के दस प्रतिशत खरीदारों की सहमति की आवश्यकता होती है।
संसद के द्वारा किये गये इस बदलाव की वैधानिकता को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी थी।
न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि विधायिका के द्वारा बनाये गये किसी कानून को चुनौती देने के लिये ‘दुर्भावना’ कोई आधार नहीं है।
शीर्ष न्यायालय ने याचिका दायर करने वालों की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि रियल एस्टेट उद्योग के दबाव में आकर संसद ने आईबीसी के प्रावधानों में बदलाव किया है।
भाषा सुमन मनोहर
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