National Consumer Day 2025: हर व्यक्ति अपने जीवन में रोज किसी न किसी रूप में उपभोक्ता होता है। राशन की दुकान से लेकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, अस्पताल, बैंक, बीमा, बिजली, पानी, शिक्षा और परिवहन तक, हर जगह हम उपभोक्ता के रूप में जुड़ते हैं। लेकिन अक्सर हम अपने अधिकारों से अनजान रहते हैं और इसी अनजानपन का फायदा कई बार व्यापारी, कंपनियां और सेवा प्रदाता उठा लेते हैं। इसी स्थिति को बदलने और उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने के उद्देश्य से हर साल 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। आज हम बहुत आसान भाषा और सरल उदाहरणों के इस मुद्दे के बारे में सब कुछ समझने की कोशिश करते हैं।
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उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने के उद्देश्य से हर साल 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।
हर साल 24 दिसंबर को मनाते हैं राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस
24 दिसंबर 1986 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act) को अपनी स्वीकृति दी थी। इसी दिन से भारत में उपभोक्ता अधिकारों को कानूनी पहचान मिली। इस कानून का उद्देश्य था कि भारतीय ग्राहकों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक किया जाए और उन्हें शोषण, धोखाधड़ी और अनुचित व्यापारिक प्रथाओं से सुरक्षा दी जाए। बाद में समय-समय पर इस कानून में संशोधन किए गए, ताकि बदलते बाजार और डिजिटल युग की चुनौतियों का सामना किया जा सके।
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस क्यों जरूरी है
तेजी से बढ़ते बाजार, ऑनलाइन खरीदारी, विज्ञापनों की भरमार और जटिल सेवाओं के बीच उपभोक्ता अक्सर कमजोर स्थिति में होता है। राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि कानून उपभोक्ता के साथ खड़ा है, बशर्ते उपभोक्ता अपने अधिकारों को पहचाने और सही मंच पर अपनी बात रखे।
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क्या हैं उपभोक्ता के अधिकार
1. सुरक्षा का अधिकार-
सुरक्षा का अधिकार उपभोक्ता के सबसे बुनियादी अधिकारों में से एक है। इसके तहत उपभोक्ताओं को ऐसी वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षा पाने का अधिकार है, जो उनके स्वास्थ्य और जीवन के लिए खतरनाक हो सकती हैं। खाद्य पदार्थ, दवाइयां, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, वाहन, गैस सिलेंडर और निर्माण सामग्री जैसे उत्पादों में सुरक्षा मानकों का पालन अनिवार्य है। इस अधिकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी उत्पाद बाजार में आने से पहले तय सुरक्षा मानकों पर खरा उतरे। अगर किसी दोषपूर्ण उत्पाद से उपभोक्ता को नुकसान होता है, तो वह निर्माता या विक्रेता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
उदाहरण से समझें- मान लीजिए शंकर गैस सिलेंडर बदलवाने गया। दुकानदार ने उसे सस्ता सिलेंडर दे दिया, लेकिन उस पर न तो सील सही थी और न ही सुरक्षा कैप लगी थी। घर पहुंचते ही सिलेंडर से गैस लीक होने लगी। अगर शंकर ने यह सोचकर चुप्पी साध ली कि गलती उसकी है, तो बड़ा हादसा हो सकता था। लेकिन कानून कहता है कि ऐसा सिलेंडर बेचना ही गलत है। यहां शंकर का सुरक्षा का अधिकार लागू होता है। गैस सिलेंडर जैसी चीज अगर सुरक्षित नहीं है, तो यह सीधे जान के लिए खतरा है। शंकर को पूरा हक है कि वह उस सिलेंडर को तुरंत बदलवाए, शिकायत करे और जरूरत पड़े तो उपभोक्ता फोरम जाए।
क्या हैं उपभोक्ता के अधिकार
2. सूचना प्राप्त करने का अधिकार-
सूचना प्राप्त करने का अधिकार उपभोक्ता को सशक्त बनाता है। इसके तहत उपभोक्ता को किसी भी वस्तु या सेवा की गुणवत्ता, मात्रा, प्रभावशीलता, शुद्धता, कीमत और मानक के बारे में पूरी और सही जानकारी पाने का अधिकार है। पैकेट पर लिखी जानकारी, एमआरपी (MRP), मैन्युफैक्चरिंग, एक्सपायरी डेट, सामान, उपयोग करने का तरीका और जोखिम इसी अधिकार का हिस्सा हैं। सही जानकारी मिलने से उपभोक्ता सोच-समझकर निर्णय ले सकता है और भ्रामक विज्ञापनों या धोखाधड़ी वाली प्रथाओं से बच सकता है।
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उदाहरण से समझें- मान लीजिए शंकर प्रेशर कुकर खरीदने गया। दुकानदार ने कहा कि कुकर बहुत मजबूत है और सालों चलेगा, लेकिन डिब्बे पर यह नहीं लिखा था कि कुकर कितनी लीटर का है, कितने दबाव पर काम करता है और कितनी वारंटी है। शंकर ने सवाल किए और जानकारी मांगी। अगर दुकानदार गलत या अधूरी जानकारी देकर कुकर बेच देता और कुकर फट जाता, तो यह सीधे उपभोक्ता के सूचना प्राप्त करने के अधिकार का उल्लंघन होता। ऐसे में शंकर को पूरा हक है कि वह कुकर वापस करे और शिकायत दर्ज कराए।
3. चुनने का अधिकार-
चुनने का अधिकार उपभोक्ता को स्वतंत्रता देता है। इसका मतलब है कि उपभोक्ता को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच होनी चाहिए। किसी एक ब्रांड, सेवा या उत्पाद को जबरन थोपना इस अधिकार का उल्लंघन है। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा तभी संभव है, जब उपभोक्ता के पास विकल्प हों और वह बिना किसी दबाव या लालच के अपनी पसंद के आधार पर चुनाव कर सके। यह अधिकार बाजार में गुणवत्ता और उचित कीमत को बनाए रखने में भी मदद करता है।
उदाहरण से समझें- मान लीजिए शंकर फ्रिज खरीदने गया। दुकानदार ने सिर्फ एक ही कंपनी का फ्रिज दिखाया और कहा कि यही लेना पड़ेगा, दूसरा कोई विकल्प नहीं है। शंकर ने पूछा कि दूसरे ब्रांड क्यों नहीं दिखा रहे। अगर दुकानदार जानबूझकर बाकी विकल्प छिपाकर एक ही ब्रांड थोपता है, तो यह शंकर के चुनने के अधिकार का उल्लंघन है। शंकर को पूरा हक है कि वह अलग-अलग ब्रांड, कीमत और फीचर देखकर अपनी पसंद से फैसला करे, न कि दबाव में आकर सामान खरीदे।
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4. अपनी बात कहने का अधिकार-
उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह अपनी शिकायतें खुलकर रख सके और उसकी बात सुनी जाए। अगर किसी उत्पाद या सेवा में कमी है, तो उपभोक्ता की शिकायत को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। कंपनियों और सेवा प्रदाताओं की जिम्मेदारी है कि वे प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली रखें। यह अधिकार उपभोक्ता को यह भरोसा देता है कि उसकी आवाज बेकार नहीं जाएगी और उसे न्याय पाने का अवसर मिलेगा।
उदाहरण से समझें- मान लीजिए शंकर ने टीवी खरीदा और दो दिन में ही स्क्रीन में लाइनें आने लगीं। शंकर दुकान गया और शिकायत की, लेकिन दुकानदार ने टालने की कोशिश की। ऐसे में शंकर का अधिकार है कि उसकी बात सुनी जाए और शिकायत दर्ज की जाए। अगर उसकी शिकायत अनसुनी की जाती है, तो वह कंपनी के कस्टमर केयर या उपभोक्ता फोरम में जाकर अपनी बात रख सकता है।
5. निवारण का अधिकार-
निवारण का अधिकार उपभोक्ता को न्याय दिलाने का माध्यम है। अगर उपभोक्ता को अनुचित व्यापार प्रथाओं, धोखाधड़ी, लापरवाही या शोषण का सामना करना पड़ता है, तो वह मुआवजे की मांग कर सकता है। इसमें दोषपूर्ण वस्तु को बदलवाना, पैसे वापस लेना, सेवा में सुधार या आर्थिक क्षतिपूर्ति शामिल हो सकती है। उपभोक्ता आयोग उपभोक्ताओं को सरल, सस्ता और तुरंत न्याय प्रदान करने के लिए बनाए गए हैं, ताकि आम व्यक्ति भी अपने अधिकारों की रक्षा कर सके।
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उदाहरण से समझें- मान लीजिए शंकर ने वॉशिंग मशीन खरीदी, जो एक हफ्ते में ही खराब हो गई। दुकानदार और कंपनी ने ठीक करने से मना कर दिया। शंकर उपभोक्ता फोरम गया और शिकायत दर्ज कराई। फोरम ने मशीन बदलने या पैसे लौटाने का आदेश दिया। यह शंकर के निवारण के अधिकार का सीधा उदाहरण है, जहां उसे नुकसान का न्याय मिला।
6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार-
उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार उपभोक्ता को जागरूक और जिम्मेदार बनाता है। इसके तहत उपभोक्ताओं को वस्तुओं और सेवाओं के बारे में सही निर्णय लेने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार है। यह शिक्षा उपभोक्ता को उसके अधिकारों के साथ-साथ उसकी जिम्मेदारियों को भी समझाती है। जागरूक उपभोक्ता न केवल खुद सुरक्षित रहता है, बल्कि बाजार को भी अनुशासित करता है। स्कूलों, कॉलेजों, मीडिया और सरकारी अभियानों की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
उदाहरण से समझें- मान लीजिए शंकर ने अखबार में उपभोक्ता अधिकारों के बारे में पढ़ा कि बिल लेना जरूरी है और एक्सपायरी डेट देखनी चाहिए। अगली बार जब वह किराने की दुकान गया, तो उसने सामान लेने से पहले पैकेट पढ़ा और बिल मांगा। यह उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार है, जिससे शंकर सही फैसले लेना सीख पाया और ठगे जाने से बच गया।
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डिजिटल युग में उपभोक्ता अधिकार
आज ऑनलाइन खरीदारी, डिजिटल भुगतान और ऐप आधारित सेवाओं का दौर है। ऐसे में डेटा सुरक्षा, फर्जी रिव्यू, गलत प्रोडक्ट, रिफंड में देरी और छिपे हुए शुल्क जैसे नए मुद्दे सामने आए हैं। उपभोक्ता संरक्षण कानून डिजिटल उपभोक्ताओं को भी सुरक्षा देता है और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की जिम्मेदारी तय करता है।
उदाहरण से समझें- मान लीजिए शंकर ने मोबाइल ऐप से जूते मंगाए। तस्वीर में जूते चमड़े के दिखाए गए थे, लेकिन डिलीवरी पर नकली निकले और रिटर्न का विकल्प भी नहीं दिया गया। शंकर ऐप पर शिकायत करता है और रिफंड की मांग करता है। अगर प्लेटफॉर्म टालमटोल करता है, तो शंकर ऑनलाइन उपभोक्ता पोर्टल पर शिकायत दर्ज कर सकता है।
यहां उपभोक्ता फोरम और अदालतों के 5 बड़े और वास्तविक मामले हैं...
पहला मामला: टोयोटा इनोवा के एयरबैग न खुलने पर भारी जुर्माना
यह मामला साल 2024 के अंत में छत्तीसगढ़ से सामने आया। एक सड़क दुर्घटना में टोयोटा इनोवा कार के एयरबैग नहीं खुले, जिससे यात्रियों की जान खतरे में पड़ गई। मामले की सुनवाई के बाद उपभोक्ता फोरम ने इसे सुरक्षा में गंभीर कमी माना और कंपनी पर 61 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। फोरम ने साफ कहा कि एयरबैग जैसी सुविधा दिखावे के लिए नहीं, बल्कि जान बचाने के लिए होती है।
दूसरा मामला: सालों तक फ्लैट न मिलने पर बिल्डर को दोषी ठहराया
यह मामला 2023-24 के दौरान दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग में आया। एक उपभोक्ता ने 2007 में फ्लैट बुक कराया था, लेकिन करीब 15 साल बाद भी उसे कब्जा नहीं मिला। आयोग ने बिल्डर को सेवा में कमी का दोषी मानते हुए फ्लैट देने, 4 लाख रुपये देरी मुआवजा, 1 लाख रुपये मानसिक पीड़ा का मुआवजा और मुकदमे का खर्च देने का आदेश दिया।
तीसरा मामला: चारधाम यात्रा बुकिंग में गड़बड़ी पर एविएशन कंपनी जिम्मेदार
यह मामला 2024 में गुजरात के नवसारी उपभोक्ता फोरम के सामने आया। चारधाम यात्रा के लिए हेलिकॉप्टर सेवा बुक की गई थी, लेकिन भुगतान की गड़बड़ी के कारण यात्रा नहीं हो सकी और कंपनी ने पैसे लौटाने में आनाकानी की। फोरम ने कंपनी को 2.3 लाख रुपये ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया।
चौथा मामला: इलाज के दौरान मौत पर क्लिनिक को मुआवजा
यह मामला 2024 में बेंगलुरु से सामने आया। एक आयुर्वेदिक क्लिनिक में इलाज के दौरान महिला की करंट लगने से मौत हो गई। परिजनों ने उपभोक्ता फोरम का रुख किया। फोरम ने माना कि मरीज की सुरक्षा भी सेवा का हिस्सा है और क्लिनिक की लापरवाही साबित हुई। इसके बाद 5 लाख रुपये मुआवजा और ब्याज देने का आदेश दिया गया।
पांचवां मामला: सिर्फ 5 रुपये के विवाद पर भी मिला न्याय
यह मामला 2024 में गाजियाबाद से सामने आया। एक उपभोक्ता ने ऑनलाइन टिकट बुकिंग में सिर्फ 5 रुपये की अतिरिक्त कटौती को लेकर केस दायर किया। उपभोक्ता फोरम ने साफ कहा कि अधिकार राशि से नहीं, सिद्धांत से जुड़े होते हैं। फोरम ने कंपनी को न सिर्फ पैसे लौटाने बल्कि मुआवजा देने का भी आदेश दिया। यह फैसला बताता है कि उपभोक्ता अधिकार छोटे या बड़े नहीं होते।
ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया
सरकार ने उपभोक्ताओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की पूरी व्यवस्था विकसित की है, ताकि किसी भी व्यक्ति को न्याय पाने के लिए बार-बार दफ्तरों या अदालतों के चक्कर न लगाने पड़ें। इसके लिए केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामले विभाग (Department of Consumer Affairs) ने ई-दाखिल (E-Daakhil) नाम से एक आधिकारिक ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया है। यह पोर्टल उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत काम करता है और जिला, राज्य व राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोगों से सीधे जुड़ा हुआ है। इस वेबसाइट के माध्यम से उपभोक्ता घर बैठे ही अपनी शिकायत दर्ज कर सकता है, जरूरी दस्तावेज अपलोड कर सकता है और मामले की स्थिति भी ऑनलाइन देख सकता है।
ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने के लिए सबसे पहले उपभोक्ता को ई-दाखिल पोर्टल पर जाकर अपना पंजीकरण करना होता है। पंजीकरण के दौरान नाम, पता, मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी जैसी बुनियादी जानकारी दर्ज करनी होती है। इसके बाद लॉगिन करके शिकायत दर्ज करने का विकल्प मिलता है। यहां उपभोक्ता को यह बताना होता है कि शिकायत किस वस्तु या सेवा से संबंधित है, नुकसान किस प्रकार हुआ और वह किस तरह की राहत चाहता है। शिकायत के साथ बिल, रसीद, फोटो, वीडियो, ईमेल, चैट या अन्य डिजिटल सबूत अपलोड करने की सुविधा भी दी जाती है, जिससे मामला मजबूत बनता है।
शिकायत दर्ज होते ही उपभोक्ता को एक यूनिक शिकायत नंबर मिलता है। इसी नंबर के जरिए वह आगे चलकर अपने केस की ट्रैक कर सकता है। सुनवाई की तारीख, नोटिस, जवाब और आदेश जैसी सभी जानकारियां पोर्टल पर उपलब्ध कराई जाती हैं और ईमेल या मोबाइल पर भी सूचनाएं भेजी जाती हैं। कई मामलों में उपभोक्ता को व्यक्तिगत रूप से फोरम में उपस्थित होने की जरूरत भी नहीं पड़ती, जिससे समय और खर्च दोनों की बचत होती है।
इसके अलावा सरकार ने राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन की ऑनलाइन सुविधा भी उपलब्ध कराई है, जहां उपभोक्ता प्रारंभिक स्तर पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। कई मामलों में संबंधित कंपनी या सेवा प्रदाता से यहीं समाधान करा दिया जाता है। यदि समाधान नहीं निकलता, तो उपभोक्ता को उपभोक्ता आयोग में ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने का पूरा मार्गदर्शन दिया जाता है। इस तरह ऑनलाइन व्यवस्था ने उपभोक्ताओं के लिए न्याय तक पहुंच को आसान बना दिया है।
FAQ
अगर किसी उपभोक्ता के अधिकारों का हनन हो जाए, तो उसे सबसे पहले क्या करना चाहिए?
अगर किसी उपभोक्ता के साथ धोखाधड़ी होती है, खराब या खतरनाक सामान दिया जाता है, गलत जानकारी के आधार पर सेवा बेची जाती है, या तय शर्तों का पालन नहीं किया जाता, तो इसे उपभोक्ता अधिकारों का हनन माना जाता है। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता को सबसे पहले खरीद या सेवा से जुड़े सभी सबूत सुरक्षित रखने चाहिए। इनमें बिल, रसीद, पैकेजिंग, वारंटी कार्ड, फोटो, वीडियो, ईमेल, मैसेज, कॉल रिकॉर्ड और विज्ञापन शामिल हो सकते हैं। इसके बाद उपभोक्ता को संबंधित दुकानदार, कंपनी या सेवा प्रदाता से सीधे शिकायत करनी चाहिए। अगर मौखिक शिकायत से समाधान नहीं होता, तो लिखित शिकायत ईमेल या पत्र के माध्यम से करना जरूरी होता है, ताकि उसका रिकॉर्ड मौजूद रहे। जब इन प्रयासों के बावजूद समस्या का समाधान न हो, तब उपभोक्ता उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करा सकता है।
उपभोक्ता अपनी शिकायत कहां दर्ज करा सकता है और इसके कितने स्तर होते हैं?
भारत में उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत तीन स्तर की न्यायिक व्यवस्था बनाई गई है। पहला स्तर जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग होता है, जहां एक करोड़ रुपये तक के दावे वाले मामलों की सुनवाई होती है। यह आयोग जिला स्तर पर कार्य करता है और आम उपभोक्ताओं के लिए सबसे सुलभ मंच माना जाता है। दूसरा स्तर राज्य उपभोक्ता आयोग होता है, जहां एक करोड़ से अधिक और दस करोड़ रुपये तक के मामलों की सुनवाई होती है। इसके अलावा जिला आयोग के फैसलों के खिलाफ अपील भी यहीं की जाती है। तीसरा और सर्वोच्च स्तर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग होता है, जहां दस करोड़ रुपये से अधिक के दावे या राज्य आयोग के फैसलों के खिलाफ अपील सुनी जाती है। यदि उपभोक्ता को राष्ट्रीय आयोग के निर्णय से भी संतोष नहीं होता, तो वह सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है। भारत में उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत तीन स्तर की न्यायिक व्यवस्था बनाई गई है। पहला स्तर जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग होता है, जहां एक करोड़ रुपये तक के दावे वाले मामलों की सुनवाई होती है। यह आयोग जिला स्तर पर कार्य करता है और आम उपभोक्ताओं के लिए सबसे सुलभ मंच माना जाता है। दूसरा स्तर राज्य उपभोक्ता आयोग होता है, जहां एक करोड़ से अधिक और दस करोड़ रुपये तक के मामलों की सुनवाई होती है। इसके अलावा जिला आयोग के फैसलों के खिलाफ अपील भी यहीं की जाती है। तीसरा और सर्वोच्च स्तर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग होता है, जहां दस करोड़ रुपये से अधिक के दावे या राज्य आयोग के फैसलों के खिलाफ अपील सुनी जाती है। यदि उपभोक्ता को राष्ट्रीय आयोग के निर्णय से भी संतोष नहीं होता, तो वह सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है।
उपभोक्ताओं को सरकार की ओर से किस तरह की सहायता मिलती है?
सरकार उपभोक्ता संरक्षण को मजबूत बनाने के लिए कई स्तरों पर सहायता प्रदान करती है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं को कानूनी सुरक्षा देता है और उन्हें मुआवजा, रिफंड और सेवा सुधार का अधिकार देता है। इसके अलावा सरकार ने ई-दाखिल (E-Daakhil) पोर्टल शुरू किया है, जिसके माध्यम से उपभोक्ता ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं। राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन भी सरकार द्वारा संचालित की जाती है, जहां उपभोक्ता अपनी समस्या दर्ज कराकर शुरुआती स्तर पर समाधान पा सकते हैं। कई राज्यों में मुफ्त कानूनी सहायता और परामर्श की सुविधा भी दी जाती है। इसके साथ ही सरकार स्कूलों, कॉलेजों और मीडिया के माध्यम से उपभोक्ता जागरूकता कार्यक्रम चलाती है, ताकि लोग अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझ सकें।
उपभोक्ता फोरम में शिकायत करने पर उपभोक्ता को क्या-क्या राहत मिल सकती है?
जब कोई उपभोक्ता उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराता है और उसका पक्ष सही पाया जाता है, तो फोरम कई तरह की राहत दे सकता है। इसमें आर्थिक मुआवजा शामिल हो सकता है, जिससे उपभोक्ता को हुए नुकसान की भरपाई की जा सके। फोरम खराब या दोषपूर्ण वस्तु को बदलने, सेवा में सुधार करने या पूरी राशि वापस करने का आदेश भी दे सकता है। इसके अलावा दोषी विक्रेता या निर्माता पर जुर्माना लगाया जा सकता है। कुछ मामलों में फोरम भविष्य में ऐसी गलती न हो, इसके लिए निर्देश भी जारी करता है। उपभोक्ता फोरम की प्रक्रिया सरल और अपेक्षाकृत तेज होती है, जिससे आम उपभोक्ता को लंबे समय तक कानूनी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ती।
क्या उपभोक्ता फोरम में शिकायत करने के लिए वकील जरूरी होता है?
उपभोक्ता फोरम की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां शिकायत दर्ज करने के लिए वकील रखना अनिवार्य नहीं है। उपभोक्ता खुद अपनी शिकायत लिख सकता है, दस्तावेज प्रस्तुत कर सकता है और अपनी बात रख सकता है। यह व्यवस्था खास तौर पर आम लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, ताकि वे बिना ज्यादा खर्च और जटिल प्रक्रिया के न्याय पा सकें। हालांकि बड़े या तकनीकी मामलों में उपभोक्ता अपनी सुविधा के अनुसार वकील की मदद ले सकता है। ई-दाखिल पोर्टल के जरिए घर बैठे शिकायत दर्ज करने की सुविधा ने इस प्रक्रिया को और आसान बना दिया है।