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Human Rights Day 2025
Human Rights Day 2025: देश में बढ़ती संवेदनशील घटनाओं और बदलते सामाजिक माहौल के बीच मानवाधिकारों (human rights) पर चर्चा पहले से कहीं अधिक ज़रूरी हो गई है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1948 में विश्व के 48 देशों ने जिस सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा-पत्र (Universal Declaration of Human Rights - UDHR) पर हस्ताक्षर करते हुए मानव-गरिमा, समानता और स्वतंत्रता की रक्षा का वादा किया था, उसी संकल्प को आज फिर से मज़बूती से याद करने की आवश्यकता है।
भारत ने 1948 में इस घोषणा को स्वीकार तो कर लिया, लेकिन मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए स्वतंत्र संस्था राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का गठन करने में लगभग 45 साल लग गए, और वर्ष 1993 में NHRC अस्तित्व में आया। आयोग का उद्देश्य था- देश के हर नागरिक के प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा और उल्लंघन पर निगरानी (human rights protection in India) रखना।
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देश में मानवाधिकार संकट एक चिंता
भारत में हाल के वर्षों में मॉब लिंचिंग, शेल्टर होम अत्याचार, सांप्रदायिक हिंसा, नक़ली मुठभेड़ (fake encounters), और कश्मीर तथा अन्य राज्यों में जारी टकराव जैसी घटनाओं ने मानवाधिकारों की स्थिति को सवालों के घेरे में खड़ा (Human Rights Challenges) कर दिया है।
मुज़फ़्फरपुर और देवरिया के शेल्टर होम कांड से लेकर गुजरात, दिल्ली और कश्मीर की सांप्रदायिक घटनाओं तक- हर मामले में आम नागरिकों के अधिकारों का बेहद क्रूर उल्लंघन हुआ। इसीलिए वर्तमान परिदृश्य में NHRC की भूमिका और उसकी प्रभावशीलता (NHRC effectiveness) पर राष्ट्रीय बहस होना स्वाभाविक है।
क्या है मानवाधिकार और क्यों है महत्वपूर्ण?
संक्षेप में, मानवाधिकार प्राकृतिक अधिकार हैं- ऐसे अधिकार जो किसी भी व्यक्ति से छीने नहीं जा सकते।
इनमें शामिल हैं:
जीवन का अधिकार (Right to Life)
स्वतंत्रता का अधिकार (Liberty)
बराबरी और सम्मान का अधिकार (Equality & Dignity)
राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार (Political, Social, Economic & Cultural Rights)
संविधान के कई मौलिक अधिकार (fundamental rights) भी मानवाधिकारों के दायरे में आते हैं- जैसे जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (Article 21)।
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1. जीवन का अधिकार...
जीवन का अधिकार (Right to Life) मानवाधिकारों में सबसे मूलभूत और अपरिहार्य अधिकार है, जिसे कोई भी सरकार, संस्था या व्यक्ति किसी से छीन नहीं सकता। यह अधिकार केवल जीवित रहने की अनुमति नहीं देता, बल्कि सम्मानपूर्वक, सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जीने का हक भी देता है।
आज के दौर में यह अधिकार कई समकालीन घटनाओं से लगातार जुड़ा हुआ दिखाई देता है- जैसे अस्पतालों में समय पर उपचार न मिलना, सड़क दुर्घटनाओं में घायल लोगों को तुरंत सहायता न देना, प्रदूषण और जहरीली हवा से आम नागरिकों का जीवन खतरे में पड़ना, या किसी भी सरकारी कार्रवाई में अत्याधिक बल का प्रयोग।
हर नागरिक को गुणवत्तापूर्ण जीवन का अधिकार
उदाहरण के तौर पर... सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि किसी भी नागरिक का जीवन सिर्फ जीवित रहने का अधिकार नहीं है, बल्कि “गुणवत्तापूर्ण जीवन” का अधिकार भी है। इसमें सुरक्षित परिवेश, समय पर स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ हवा-पानी और स्वतंत्रता से जीने की सुविधा शामिल है।
इसी तरह, भीड़ हिंसा (mob lynching) और कस्टोडियल डेथ जैसी घटनाओं को अदालतों ने जीवन के अधिकार का सीधा उल्लंघन माना है। दूसरे शब्दों में, जीवन का अधिकार हमारी सुरक्षा, गरिमा और स्वतंत्रता की बुनियाद है, और इसका सम्मान होना किसी भी सभ्य समाज का पहला दायित्व है। यह सभी अधिकार मानवाधिकार के अंतर्गत आते हैं।
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2. स्वतंत्रता का अधिकार...
3. बराबरी और सम्मान का अधिकार...
4. राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार...
NHRC- भारत का मानवाधिकार प्रहरी
1993 के मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत गठित NHRC, भारत की सर्वोच्च मानवाधिकार निगरानी संस्था है। इसके अध्यक्ष परंपरागत रूप से सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश होते हैं।
इसके प्रमुख कार्यों में लोकसेवकों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन की जाँच, हिरासत में मौतों (custodial deaths) पर संज्ञान, कैदियों की स्थिति का अध्ययन, मानवाधिकारों पर शोध, राज्य सरकारों को सिफारिशें और जागरूकता अभियान (human rights awareness campaigns) शामिल हैं। NHRC की रिपोर्टों के आधार पर समय-समय पर सरकार ने संशोधन भी किए हैं- जैसे बच्चों, महिलाओं, वृद्धों और LGBTQ+ समुदाय से जुड़े सुधार।
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भारत में मानवाधिकारों की स्थिति-
भारत की विविधता, आकार, औपनिवेशिक इतिहास और धार्मिक-राजनीतिक संवेदनशीलता मानवाधिकार मुद्दों को बेहद जटिल बनाती है।
सांप्रदायिक दंगे सबसे बड़ा खतरा
धर्म की स्वतंत्रता के बावजूद देश में दंगे- चाहे बाबरी मस्जिद, गुजरात, दिल्ली या कश्मीर हों- लाखों लोगों के बुनियादी अधिकारों को चोट पहुँचाते रहे हैं।
AFSPA और सुरक्षा बलों पर सवाल
पूर्वोत्तर और कश्मीर में AFSPA से जुड़े आरोप- जैसे बिना वारंट गिरफ्तारी, यातना, महिलाओं से दुर्व्यवहार- अक्सर चर्चा में रहे, जिसके चलते कई राज्यों से AFSPA धीरे-धीरे हटाया भी गया।
मानवाधिकार आयोग को मज़बूत कैसे बनाया जा सकता है?
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने NHRC को अधिक प्रभावी बनाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
इसके अनुसार शिकायतों के लिए एकसमान डिजिटल प्रारूप तैयार किया जाए, ताकि राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोगों के बीच समन्वय तेज़ हो सके।
साथ ही, आयोग में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति कर कार्रवाई को और अधिक पारदर्शी व त्वरित बनाया जाए।
गंभीर अपराधों- जैसे भीड़तंत्र (mob lynching), दंगे और मानवाधिकार उल्लंघन में सरकार और NHRC के बीच संयुक्त एक्शन मॉडल अपनाने की ज़रूरत बताई गई है, ताकि निर्णय प्रक्रिया मज़बूत हो।
ARC ने मीडिया और सिविल सोसायटी की भूमिका पर भी जोर दिया है कि वे केवल बड़ी घटनाओं ही नहीं, बल्कि आम लोगों के मानवाधिकार मुद्दों को भी गंभीरता से उठाएँ, जिससे समय रहते सुधार संभव हो सके।
मानवाधिकार दिवस 2025 पर भारत में बड़े आयोजन की तैयारियाँ
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हर वर्ष 10 दिसंबर को मनाए जाने वाले मानवाधिकार दिवस पर इस बार NHRC भारत मंडपम में विशेष समारोह आयोजित कर रहा है, जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (President Draupadi Murmu) मुख्य अतिथि और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्र मुख्य वक्ता होंगे। एनएचआरसी ने में कहा है कि इस बार सम्मेसन का विषय- ‘एवरीडे एसेंशियल्स सुनिश्चित करना: सभी के लिए सार्वजनिक सेवाएं और गरिमा’ है। जो मानवाधिकार दिवस 2025 की थीम ‘ह्यूमन राइट्स, आवर एवरीडे एसेंशियल्स’ (Human Rights, Our Everyday Essentials) के अनुरूप है।
सम्मेलन में देशभर के मानवाधिकार आयोगों के प्रतिनिधि, सिविल सोसायटी, शिक्षाविद, अधिकारी और मीडिया सदस्य शामिल होंगे। NHRC ने 9 दिसंबर सुबह 10 बजे तक ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा दी है, और चयनित प्रतिभागियों को ई-इनवाइट ईमेल से भेजा जाएगा।
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संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य- सोच बदलना
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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (Office of the United Nations High Commissioner for Human Rights- OHCHR) का स्पष्ट संदेश है- मानवाधिकार सिर्फ़ विचार नहीं, बल्कि कार्रवाई का आधार हैं। वे जीवन, गरिमा और न्याय सुनिश्चित करने वाले सार्वभौमिक सिद्धांत हैं।
OHCHR के 5 प्रमुख तथ्य दुनिया को याद दिलाते हैं कि:
मानवाधिकार सार्वभौमिक और अविच्छिन्न हैं
सभी अधिकार एक-दूसरे पर निर्भर हैं
UDHR अंतरराष्ट्रीय कानून की बुनियाद है
देशों के दायित्व और व्यक्तियों के अधिकार दोनों महत्वपूर्ण हैं
मानवाधिकार दिवस कार्रवाई का मंच है
मानवाधिकारों की रक्षा सामूहिक जिम्मेदारी
भारत जैसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र में मानवाधिकार सुरक्षा सिर्फ NHRC या अदालतों का कार्य नहीं। यह सरकार, नागरिक समाज, मीडिया, और हर नागरिक की साझा ज़िम्मेदारी है। जब तक हम गरिमा, समानता और न्याय को रोजमर्रा की ज़िंदगी में लागू नहीं करेंगे, मानवाधिकार महज़ कागज़ी अवधारणा बनकर रह जाएंगे।
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