वाशिंगटन। कोरोना वायरस के कारण जान गंवाने वाले लोगों की संख्या सोमवार को 50 लाख के पार चली गई। कोविड-19 महामारी ने दो वर्ष से भी कम समय में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की जान ली है और संक्रामक रोग ने न सिर्फ गरीब देशों को प्रभावित नहीं किया है, बल्कि समृद्ध राष्ट्रों में भी तबाही मचाई है जहां स्वास्थ्य देखभाल की उत्तम व्यवस्था है।
सबसे ज्यादा मृतक अमेरिका में
अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और ब्राजील उच्च मध्य वर्गी य उच्च आय वाले देश हैं और इनमें विश्व की जनसंख्या का आठवां हिस्सा रहता है लेकिन कोविड से हुई मौतों में से आधी इन्हीं देशों में हुई हैं। अमेरिका में सबसे ज्यादा 740,000 से अधिक जाने गई हैं। मृतक संख्या का संकलन जॉन होपकिन्स विश्वविद्यालय ने किया है। ‘पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ओसलो’ के मुताबिक, 1950 से लेकर अबतक हुए युद्ध में करीब इतने ही लोगों की मौत हुई है जितने इस महामारी से मरे हैं। कोविड-19 विश्व भर में हृदयाघात और मस्तिष्काघात के बाद मौत की तीसरी प्रमुख वजह है। मृतकों का यह आंकड़ा निश्चित रूप से कम गिना गया है क्योंकि सीमित संख्या में लोगों की जांच हुई है और लोगों की बिना उपचार के घर पर ही मौत हुई है, खासकर, भारत जैसे दुनिया के अल्प विकसित हिस्सों में।
उच्च आय वाले देश भी बुरी तरह से प्रभावित
वायरस अब रूस, यूक्रेन और पूर्वी यूरोप के अन्य हिस्सों में फैल रहा है, जहां अफवाह और सरकार में विश्वास की कमी की वजह से टीकाकरण प्रभावित हुआ है। यूक्रेन में सिर्फ 17 प्रतिशत वयस्क जनसंख्या का पूर्ण टीकाकरण हुआ है जबकि अर्मेनीया में यह संख्या सात प्रतिशत है। कोलंबिया विश्वविद्यालय में वैश्विक स्वास्थ्य केंद्र आईसीएपी की निदेशक डॉ वफा अल सद्र ने कहा कि इस महामारी ने उच्च आय वाले देशों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि समृद्ध देशों में लंबी जीवन प्रत्याशा होती है जिस वजह से आबादी में वृद्धों, कैंसर पीड़ितों की संख्या अधिक होती है और इन्हें कोविड-19 होने का अधिक खतरा है। अल सद्र ने कहा कि गरीब देशों की आबादी में बच्चों, किशोरों और युवाओं का हिस्सा अधिक होता है और उनके कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार पड़ने की संभावना कम रहती है।
अब मृतकों की संख्या कम
बहरहाल, मई की शुरुआत में भारत में कोरोना वायरस के मामले चरम पर थे, लेकिन देश में अब मृतक संख्या कम रिपोर्ट हो रही है। यह दर रूस, अमेरिका और ब्रिटेन से कम भी है, लेकिन उसके आंकड़ों पर अनिश्चितता है। समृद्ध देशों में संक्रमण और मौत के मामलों को देखा गया तो यह गरीब इलाकों से अधिक थे। समृद्धि ने वैश्विक टीकाकरण अभियान में भी अहम भूमिका निभाई है और अमीर देशों पर आरोप लगा है कि उन्होंने टीके की आपूर्ति बाधित की है। अमेरिका और अन्य देश टीके की वर्धक खुराकें अपनी आबादी को दे रहे हैं जबकि अफ्रीका में लाखों लोगों को टीके की पहली खुराक तक नसीब नहीं हुई है। हालांकि समृद्ध देशों ने दुनियाभर में टीके भेजे हैं।अफ्रीका की 1.3 अरब की आबादी में से सिर्फ पांच प्रतिशत का पूर्ण टीकाकरण हुआ है।भारत के एक गांव में रहने वाली 32 वर्षीय रीना केसरवानी दो बच्चों की मां हैं। उनके पति आनंद बाबू केसरवानी का 38 वर्ष की उम्र में इस साल की शुरुआत में कोविड के कारण निधन हो गया। वह अब अपने पति की हार्डवेयर के सामान की दुकान चलाती हैं। उन्होंने कहा, “ अब कौन है? जिम्मेदारी अब मुझपर है। कोविड ने मेरी जिंदगी बदल दी।” एपी नोमान माधवमाधव