Aaj Ka Mudda: 2023 विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने बाकी है। ऐसे में कांग्रेस उन सीटों को साधना चाहती है जिन पर उसकी पकड़ कमजोर है। बुंदेलखंड में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बाद अब अरुण यादव मोर्चा संभाल रहे हैं। 2 जून से वो सभी जिलों के दौरे कर ओबीसी वोटर्स को साधने में जुटेंगे लेकिन कांग्रेस की इस तैयारी पर बीजेपी हमलावर है। आज हम इसी पर चर्चा करेंगे।
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2 जून से मोर्चा संभालेंगे अरुण यादव
बुंदेलखंड मध्यप्रदेश की सियासत का वो इलाका जिसे बीजेपी का मजबूत किला माना जाता है। लंबे अरसे से यहां बीजेपी काबिज है, लेकिन कांग्रेस इस गढ़ में सेंध लगाने के पुरजोर कोशिश कर रही है। पहले दिग्विजय, फिर कमलनाथ और अब एमपी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव 2 जून से मोर्चा संभालने मैदान में उतरेंगे। मकसद साफ है लोधी, यादव और कुर्मी समाज के रूप में अरुण यादव ओबीसी वोट बैंक को साधते नजर आएंगे जिनका बुंदेलखंड में दबदबा करीब 60 फीसदी माना जाता है। तो अरूण यादव को ये जिम्मेदारी मिलना भी बहुत कुछ बयां कर रहा है।
2018 चुनाव में भी कांग्रेस ने राहुल लोधी और प्रदुम्न सिंह लोधी जैसे चेहरे मैदान में उतारे थे जिससे उसे कुछ हद तक फायदा भी मिला, लेकिन उनके बीजेपी में शामिल होने से। जहां कांग्रेस को पुराने चेहरों से जोरदार टक्कर मिलेगी तो नए चेहरे तलाशने की भी चुनौती। हालांकि, कांग्रेस की तैयारी को बुंदेलखंड से ही आने वाले नेता महज चुनावी वर्जिश बता रहे हैं।
दरअसल, बुंदेलखंड में 230 विधानसभा सीटों में से 26 सीटें आती हैं जिसमें से 14 सीटें बीजेपी तो वहीं 10 सीटें कांग्रेस और 1-1 सपा-बसपा के हाथ में हैं। वहीं 2020 उपचुनाव के बाद बीजेपी की सीटें 14 से बढ़कर 17 हो गई। इधर क्षेत्र की 4 लोकसभा सीटों पर भी बीजेपी का ही कब्जा है। यानी साफ है कि इन समीकरणों के साथ बीजेपी मजबूत स्थिति में है, लेकिन कांग्रेस भी अपनी पूरी ताकत से जुटी है और यादव वोटर्स के जरिए समीकरण अपने फेवर में करना चाहती है। अब नतीजे क्या होंगे ये तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन बुंदेलखंड में नए समीकरण और नई सियासत जरूर देखने को मिलेगी।
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