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छत्तीसगढ़ में कोयला और कस्टम मीलिंग घोटाला: आरोपियों का नहीं होगा नार्को टेस्ट, EOW के आवेदन को कोर्ट ने किया खारिज

Coal And Custom Milling Scam: छत्तीसगढ़ में कोयला और कस्टम मीलिंग घोटाला, आरोपियों का नहीं होगा नार्को टेस्ट

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Harsh Verma
छत्तीसगढ़ में कोयला और कस्टम मीलिंग घोटाला: आरोपियों का नहीं होगा नार्को टेस्ट, EOW के आवेदन को कोर्ट ने किया खारिज

Coal And Custom Milling Scam: छत्तीसगढ़ में कोयला और कस्टम मीलिंग घोटाले से जुड़े गिरफ्तार आरोपियों के मामले में एक महत्वपूर्ण अपडेट सामने आया है। ACB/EOW की विशेष अदालत ने मामले में आरोपी सूर्यकांत तिवारी, रजनीकांत तिवारी, निखिल चंद्राकर और कस्टम मीलिंग के आरोपी रोशन चंद्राकर का नार्को टेस्ट कराने के लिए EOW द्वारा दायर आवेदन को खारिज कर दिया है।

नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट कराने की मांगी थी अनुमति
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जानकारी के अनुसार, EOW ने इन आरोपियों का नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट कराने की अनुमति के लिए अदालत में आवेदन प्रस्तुत किया था। इसके खिलाफ बचाव पक्ष ने अदालत में आपत्ति दर्ज कराई थी। आज दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद अदालत ने EOW के नार्को टेस्ट के आवेदन को खारिज कर दिया।

क्या है कोयला घोटाला मामला?

छत्तीसगढ़ में 500 करोड़ रुपये के कथित कोयला घोटाले में लेवी वसूली का मामला ईडी की जांच में सामने आया था। आरोप है कि कोयला परिवहन के दौरान व्यापारियों से वसूली के लिए ऑनलाइन मिलने वाले परमिट को ऑफलाइन कर दिया गया था।

इसके लिए खनिज विभाग के तत्कालीन संचालक आईएएस समीर बिश्नोई ने 15 जुलाई 2020 को आदेश जारी किया था, जिसके तहत एक सिंडिकेट बनाकर वसूली की जाती थी। इस पूरे मामले का मास्टरमाइंड कोयला व्यापारी सूर्यकांत तिवारी को माना जाता है।

कस्टम मिलिंग घोटाला क्या है?

ईडी ने कस्टम मिलिंग घोटाले में मार्कफेड के पूर्व MD मनोज सोनी समेत 5 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है। आरोप है कि इस मामले में 140 करोड़ रुपये की अवैध वसूली की गई है, जिसमें सरकारी अधिकारियों से लेकर मिलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी भी शामिल हैं।

इस घोटाले में विभिन्न चावल मिलर्स द्वारा नागरिक आपूर्ति निगम और एफसीआई में कस्टम मिलिंग का चावल जमा किया जाता है। इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार करके प्रति क्विंटल के हिसाब से अवैध राशि वसूली गई।

जांच में यह पाया गया कि एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष रोशन चंद्राकर लेवी वसूलते थे और अधिकारियों को जानकारी देते थे। अगर किसी से राशि नहीं मिलती, तो उनका भुगतान रोक दिया जाता था।

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