Advertisment

दबाव वाली संपत्ति के समाधान के लिये नये विकल्प को लेकर परिस्थितियां अनुकूल लगती हैं: आईबीबीआई प्रमुख

author-image
Bhasha
भारत ने 2015-20 के दौरान व्यापार को आसान बनाने के लिए कई कदम उठाए: डब्ल्यूटीओ

नयी दिल्ली, तीन जनवरी (भाषा) भारतीय ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) के चेयरपर्सन एमएस साहू ने कहा है कि दबाव वाली संपत्ति के समाधान के लिये नये विकल्पों के प्रयोग को लेकर परिस्थितियां अनुकूल जान पड़ती हैं। अब बाजार अदालत की निगरानी में चलने वाले दिवाला प्रक्रिया और अदालत के दायरे से बाहर की प्रक्रिया के बीच के एक नये विकल्प को लेकर उम्मीद कर रहा है।

Advertisment

ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला संहिता (आईबीसी) दबाव वाली संपत्तियों के मामले में बाजार आधारित और समयबद्ध तरीके से समाधान में मदद कर रहा है। और अब एक पहले से तैयार (प्री-पैक) रूपरेखा भी काम हो रहा है।

साहू ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘चूंकि ऋण शोधन प्रक्रिया से जुड़े कुछ कार्य औपचारिक प्रक्रिया शुरू होने से पहले पूरे कर लिये जाते हैं तथा औपचारिक प्रक्रिया के कुछ मामलों से बचा जा रहा है, ऐसे में प्री-पैक समाधान से लागत और समय दोनों की बचत होती है।’’

आईबीसी को क्रियान्वित कर रहे आईबीबीआई ने संबंधित पक्षों की कठिनाइयों को दूर करने के लिये कई कदम उठाये हैं।

Advertisment

उन्होंने कहा कि ज्यादातर देशों में कोविड-19 संकट जैसी आपात स्थिति के कारण कई व्यवहारिक कारोबार एक साथ विफल हुए और अपने पैरों में पर खड़े नहीं रह पाये। ऋण शोधन व्यवस्था को इस तरह की स्थिति से उत्पन्न हालात से निपटने के लिये तैयार नहीं किया गया था। साथ ही उन्हें संकट से बचाने के लिये समाधान आवेदनों की उपलब्धता को लेकर भी चिंता है।

साहू ने कहा, ‘‘इस स्थिति ने पहले से तैयार रूपरेखा की जरूरत को रेखांकित किया है। यह व्यवस्था कामकाज को कम-से-कम प्रभावित करते हुए तेजी से मामले पर विचार करती है, यह लागत प्रभावी और दबाव वाली संपत्ति के समाधान में उपयुक्त है।’’

ई-मेल के जरिये दिये साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि चीजों से सीखने और परिवेश के परिपक्व होने तथा कर्जदाता एवं कर्जदार के बीच निष्पक्ष संबंध के साथ ऐसा जान पड़ता है कि दबाव वाली संपत्ति के समाधान के लिये नये विकल्पों का उपयोग करने को जमीन तैयार है।

Advertisment

साहू ने कहा, ‘‘बाजार ऐसे समाधान रूपरेखा की वकालत और उम्मीद कर रहा है जो अदालत की निगरानी में ऋण शोधन रूपरेखा और अदालत के बाहर पुनर्गठन योजनाओं के बीच की ‘हाइब्रिड’ (मिली-जुली) रूपरेखा हो... इस व्यवस्था में सबसे लोकप्रिय पहले से तैयार रूपरेखा है।’’

आमतौर पर, प्री-पैक प्रक्रियाओं में कर्जदाता, शेयरधारक और मौजूदा प्रबंधन/प्रवर्तक एक साथ आकलन कर संभावित खरीदार की तलाश कर सकते है। उसके बाद, वे मामले को मंजूरी के लिये राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के पास ले जाने से पहले समाधान योजना पर बातचीत कर सकते हैं।

एक दिसंबर 2016 से पिछले साल सितंबर तक आईबीसी के तहत कुल 4,008 कंपनी ऋण शोधन समाधान प्रक्रियाएं (सीआईआरपी)शुरू हुई। आईबीबीआई के आंकड़े के अनुसार इनमें से 473 मामले अपील, समीक्षा या निपटान के तहत बंद कर दिये गये जबकि 291 मामलों को वापस ले लिया गया। वहीं, 1,025 मामलों में परिसमापन के आदेश दिये गये और 277 में समाधान योजना को मंजूरी दी गयी।

Advertisment

सीआईआरपी एक दिसंबर, 2016 से प्रभाव में आया।

कोविड-19 महामारी के कारण सरकार ने आईबीसी के तहत पिछले साल 25 मार्च से किसी नये मामले को लाने की कार्यवाही को निलंबित किया हुआ है। पिछले महीने निलंबन की इस अवधि को मार्च तक बढ़ा दिया गया है।

भाषा

रमण महाबीर

महाबीर

Advertisment
WhatsApp Icon चैनल से जुड़ें