Chipko Movement in Bhopal: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में चिपको आंदोलन शुरू हो गया है। शिवाजी नगर और तुलसीनगर में पेड़ों के काटने के फरमान के बाद से लोगों में सरकार के खिलाफ जबरदस्त नाराजी है। इसी को लेकर आंदोलन (Chipko Movement in Bhopal) के दूसरे दिन गुरुवार, 13 जून को लोग सड़क पर उतर गए।
महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं और भावुक होकर दुलारने लगीं। महिलाओं का कहना है कि बुजुर्गों ने पेड़ लगाए हैं, वर्षों से इन पेड़ों से बच्चों की तरह पाला है। अब इन्हें कैसे कट जाने दें।
यहां बता दें, भोपाल में मंत्री और विधायकों के बंगले बनाने के लिए शिवाजी नगर और तुलसीनगर में 29 हजार से ज्यादा पेड़ काटने की जानकारी सामने आई है। इसी के बाद से प्रकृति प्रेमियों में आक्रोश है और आंदोलन शुरू (Chipko Movement in Bhopal) हो गया है।
पेड़ काटे गए तो होगा उग्र प्रदर्शन
इस आंदोलन की शुरुआत बुधवार को 5 नंबर स्टॉप पर बड़े स्तर पर प्रदर्शन के साथ हुई।
पूर्व मंत्री पीसी शर्मा, पर्यावरणविद् सुभाष सी. पांडे, लोकसभा चुनाव के कांग्रेस कैंडिडेट रहे अरुण श्रीवास्तव, नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष शबिस्ता जकी, पार्षद योगेंद्र सिंह गुड्डू चौहान, पूर्व पार्षद अमित शर्मा, पर्यावरण मित्र राशिद नूर ने कहा था कि पेड़ काटे जाते हैं तो उग्र प्रदर्शन करेंगे।
फिर चाहे सरकार उन्हें जेल में ही क्यों ना बंद कर दें। प्लान को सरकार मंजूर ना करें। यह चरणवद्ध आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक की सरकार प्लान के रद्द करने की बात नहीं कहती है।
‘कलखेड़ा भेजना है तो मंत्री-विधायकों को भेजें’
शिवाजी नगर रहने वाली विद्या पाटिल ने कहा कि ये पेड़ बुजुर्गों ने लगाए हैं, हमने इन्हें बच्चों की तरह पाला।
अब इन्हें कैसे कटने दें? हमें कहा जा रहा है कि आपको कलखेड़ा भेजा जाएगा। यदि भेजना ही है तो मंत्री-विधायकों को भेजें।
इसी क्षेत्र की सुखबाला ने कहा कि ये पेड़ हमारे परिवार का हिस्सा हैं। इनके साथ ही हम भी बड़े हुए हैं, लेकिन अब इन्हें काटने का फरमान आया है।
पेड़ हमारी ऑक्सीजन बैंक, ये काटे गए तो विरोध करेंगे
रूपाली शर्मा ने कहा, तुलसीनगर और शिवाजी नगर में शहर की सबसे ज्यादा हरियाली है।
उसी को काटने की अब बात हो रही है। सरकारी बंगले बनाए जाएंगे। यह फरमान गलत है।
सरकार एक बार फिर से सोंचे। ये पेड़ कतई ना कटें, क्योंकि ये हमारी ऑक्सीजन बैंक है। यदि पेड़ काटे जाते हैं तो सड़क पर उतरकर उग्र प्रदर्शन करेंगे।
कोरोना में इन पेड़ों ही लोगों को बचाया
एडवोकेट विजय सिरवैया ने कहा, हरियाली कट जाएगी तो भोपाल का टेम्प्रेचर बढ़ जाएगा, इसलिए सरकार इन्हें ना काटे।
कोरोना के दौरान पेड़ों की ऑक्सीजन के दौरान ही इंसान बचे हैं। पेड़ काटना अपराध है। कानून में इसे बड़ा अपराध माना गया है।
14 जून को शिवाजी नगर में प्रदर्शन
भोजपाल जन कल्याण एवं विकास परिषद ने भी पेड़ों के काटने के विरोध के लिए तैयार है।
इसे लेकर परिषद की बैठक भी हो चुकी है। पर्यावरणविद् उमाशंकर तिवारी ने बताया, 29 हजार पेड़ों को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे।
ये पेड़ 50 से 70 साल तक पुराने हैं। 14 जून को शाम 7 बजे नूतन कॉलेज के सामने शिवाजी नगर में पेड़ों का पूजन रक्षा सूत्र बांधकर पेड़ों की रक्षा का वचन दोहराएंगे।
साथ ही पेड़ों की रक्षा के लिए शहर के सांसद, विधायक और अधिकारियों से चर्चा करेंगे और जरूरत पड़ी तो कोर्ट भी जाएंगे।
सीएम मोहन यादव ने कहा- किसी पेड़ की अकाल मृत्यु नहीं होने दी जाएगी
पूरे मामले पर सीएम मोहन यादव ने मंत्रालय में मीडिया से चर्चा में कहा कि पर्यावरण के प्रति राज्य सरकार गंभीर है। पेड़ों के कटने से जुड़ी योजना का क्रियान्वयन प्रारंभ ही नहीं है।
किसी पेड़ की अकाल मृत्यु नहीं होने दी जाएगी। किसी योजना के लिए या निर्माण के लिए पेड़ हटाना ही पड़ा तो वैज्ञानिक ढंग से उसे शिफ्ट करने और अन्यत्र ट्रांसप्लांट पर विचार किया जा सकता है।
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चिपको आंदोलन क्या है?
- यह एक अहिंसक आंदोलन था जो वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली जिले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ था।
- इस आंदोलन का नाम ‘चिपको’ ‘वृक्षों के आलिंगन’ के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया और कटने से बचाने के लिए उनके चारों ओर मानवीय घेरा बनाया गया।
- जंगलों को संरक्षित करने के लिए महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिए इस आंदोलन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इसके अलावा इससे समाज में अपनी स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आया।इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना और यह समझाना था कैसे जमीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
- इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।
- सुंदरलाल बहुगुणा ने हिमालय की ढलानों पर वृक्षों की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत की।
- 1970 के दशक में चिपको आंदोलन के बाद उन्होंने विश्व में यह संदेश दिया कि पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी तंत्र अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उनका विचार था कि पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को एक साथ चलना चाहिए।
- भागीरथी नदी पर टिहरी बांध के खिलाफ अभियान चलाया। उन्होंने आजादी के बाद भारत में 56 दिनों से अधिक का उपवास किया।
- पूरे हिमालयी क्षेत्र पर ध्यान आकर्षित करने के लिए 1980 के दशक की शुरुआत में 4,800 किलोमीटर की कश्मीर से कोहिमा तक की पदयात्रा की।
- उन्हें वर्ष 2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।