Parashuram Dwadashi 2023: परशुराम द्वादशी व्रत जगत पालक भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह शुभ व्रत बहुत ही फलदायी है, जिसे करने से निस्संतान दंपतियों को ओजस्वी और वीर संतान की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पृथ्वी पर अन्याय, अत्याचार, अधर्म और पाप में अतिशय वृद्धि हो गई थी, तब भगवान विष्णु ने दुष्टों का विनाश कर धर्म को संतुलित करने लिए भगवान परशुराम के रूप में अवतार लिया था।
कब मनाया जाता है परशुराम द्वादशी
श्रीहरि भगवान विष्णु ने मानव रूप में ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के यहां जन्म लिया था। उनका नाम राम रखा गया। वे त्रेतायुगी भगवान राम से पहले अवतार लिए थे। उनका प्रिय अस्त्र फरसा यानी परशु होने के कारण वे परशुराम कहलाए।
परशुराम द्वादशी व्रत (Parashuram Dwadashi Vrat) बैसाख महीने में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। यह मोहिनी एकादशी के अगले दिन पड़ता है, जिस दिन इस एकादशी का पारण होता है। साल 2023 में परशुराम द्वादशी व्रत आज यानी 2 मई को है।
परशुराम द्वादशी व्रत के लाभ
परशुराम द्वादशी (Parashuram Dwadashi) एक बहुत ही दुर्लभ व्रत है। यह उन जातकों (लोगों) के लिए विशेष पुण्यमयी और लाभकारी है, जो निस्संतान हैं। उचित विधि-विधान से परशुराम द्वादशी का व्रत करने से जातक को न केवल वीर और बुद्धिमान संतान की प्राप्ति होती है, बल्कि खुद जातक को ‘चक्रवर्ती भोगम’ यानी एक सम्राट को उपलब्ध वैभव और सुख प्राप्त होता है। वे धरती पर सम्पूर्ण ऐश्वर्य को भोगकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
कहते हैं, राजा दशरथ और वासुदेव जी ये व्रत किया था। इस व्रत को करने के कारण ही उनको श्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे अद्वितीय संतान रत्न की प्राप्ति हुई थी।
परशुराम द्वादशी की पूजा विधि
— सर्वप्रथम परशुराम द्वादशी (Parashuram Dwadashi) व्रत को करने के लिए सुबह में स्नान-ध्यान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है।
— पूजा या आराधना स्थल पर भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर सनातन विधि-विधान और पूर्ण भक्ति-भाव से पूजा-अर्चना की जाती है।
— इस व्रत निराहार रहकर करना चाहिए। दिन भर के उपवास के बाद संध्या में भगवान परशुराम की आरती और भोग के बाद जातक को फलाहार करना चाहिए।
— द्वादशी तिथि के अगले दिन यानी त्रयोदशी तिथि को भगवान परशुराम का विधि-विधान से पूजा करने के बाद भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस दौरान तन, मन और चित्त में लोभ, ईर्ष्या और क्रोध जैसे विकारों को नहीं लाना चाहिए।
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