CM Dwarka Prasad Mishra : मध्यप्रदेश की राजनीति के ऐसे कई किस्से हैं जिन्हे सुनना आज भी लोग पसंद करते है। प्रदेश की राजनीति के किस्से देशभर में काफी पढ़े और सुनाए जाते है। ऐसा ही एक किस्सा आपको बताने जा रहे है। मध्यप्रदेश के पांचवें और छठे मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) रहे। द्वारका प्रसाद मिश्र राजधानी के मुख्यमंत्री निवास को अशुभ मानते थे। मध्यप्रदेश में दूसरा आम चुनाव साल 1962 में हुआ था। इन चुनावों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस को 288 सीटों में से मात्र 142 सीटें ही प्राप्त हुई थी। उस दौरान कैलाश नाश काटजू के चुनाव हार जाने पर 18 महीनों के लिए दूसरी बार खंडवा के भगवंतराव मंडलोई मुख्यमंत्री बने।
सीएम बनने के बाद मंडलोई ने सरकार तो चलाई लेकिन उन्हें कुछ काम से बाहर जाने के चलते सीएम पद की कमान काटजू को देने की तैयारी की जा रही थी। उसी समय राजनीति का चाण्क्य कहे जाने वाले द्वारका प्रसाद मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) ने ऐसी बिसात बिछाई कि वह साल 1963 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। द्व्रारका प्रसाद मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) पहले 30 सितंबर 1963 से 8 मार्च 1967 तक और फिर 8 मार्च 1967 से 12 मार्च 1969 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है।
किराए के मकान में रहे सीएम
द्वारका प्रसाद मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) देश के पहले और आखिरी मुख्यमंत्री रहे जो किराए के मकान में रहे। सीएम द्वारका प्रसाद मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) निशात मंजिल में श्यामला हिल्स पर रहते थें। द्वारका प्रसाद मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) से पहले जो सीएम रहे वह आईना बंगले में रहे जो आजकल व्हीआईपी गेस्ट हाउस है। बताया जाता है कि आईना बंगले को अशुभ माना जाता था। क्योंकि इससे पहले जो भी सीएम रहे, वह ज्यादा दिन सीएम नहीं रहे सके थे। मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) ने नेहरू विरोध के चलते 1951 में कांग्रेस छोड़ दी थी 12 साल पार्टी से बाहर रहने के बाद जब वे वापस लौटे तो मुख्यमंत्री बने। हालांकि कांग्रेस छोड़ने के बाद द्व्रारका प्रसाद मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) ने भारतीय लोग कांग्रेस नाम की एक पार्टी भी बनाई थी और चुनाव भी लड़ा लेकिन उनकी पार्टी चुनाव हार गई थी।
हसीना कांड में आया था नाम
द्वारका प्रसाद मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) के राजनैतिक जीवन में कभी कोई भ्रष्ट्राचार का आरोप नहीं लगा पर जब-जब वे किसी महत्वपूर्ण पद पर आसीन होने को होते या कोई चुनाव लड़ते तब एक विवाद जरूर सामने आता था। यह विवाद मध्यप्रदेश के राजनैतिक इतिहास में हसीना कांड के नाम से जाना जाता है। बात सितंबर 1939 की है और किस्सा यह है कि द्वारका प्रसाद मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) का एक ड्राईवर था नाना नायडू। यह ड्राइवर थोड़ा बदमाश प्रवृत्ति का था, लेकिन मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) के खूब मुंह लगा था। अक्सर जब भी मिश्र को कोई महत्वपूर्ण कार्य होता तो इसी ड्राइवर को उसमें लगाया जाता था। एक दिन जबलपुर की बात है कि एक मुस्लिम महिला रोते-रोते पुलिस अधीक्षक के पास पहुंची और शिकायत की कि उसकी जवान बेटी 15 दिन से घर से गायब है। जैसे ही यह खबर अखबारों को मिली वैसे ही यह बड़ा मामला बन गया, क्योंकि उस महिला ने मिश्र के ड्राइवर पर अपहरण का संदेह जताया था। मामला मीडिया में भी काफी छाया रहा मामले को तूल देकर मिश्र (CM Dwarka Prasad Mishra) के खिलाफ वातावरण तैयार कर दिया। जब मामला बहुत बढ़ा तो ड्राइवर नाना नायडू ने पुलिस के सामने लड़की के साथ सरेंडर कर दिया और बताया कि वह दोनों शादीशुदा हैं।