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20 डॉक्टर्स को MPMC का नोटिस: दवा कंपनी के खर्चे पर फैमिली फॉरेन ट्रिप के मामले में 10 साल बाद भी एक्शन नहीं

Chhindwara Coldrif Death Case: 20 डॉक्टर्स को MPMC का नोटिस, दवा कंपनी के खर्चे पर फैमिली फॉरेन ट्रिप के मामले में 10 साल बाद भी एक्शन नहीं chhindwara coldrif death doctors Praveen Soni MPMC notice 20 doctors families italy trip mp hindi News bps

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BP Shrivastava
Chhindwara Coldrif Death Case

Chhindwara Coldrif Death Case

हाइलाइट्स

  • छिंदवाड़ा में कफ सिरप से बच्चों की मौत 
  • डॉक्टर और फार्मा कंपनी में गठजोड़
  • 10 साल बाद एमपी मेडिकल काउंसिल सक्रि
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Chhindwara Coldrif Death Case: छिंदवाड़ा में जानलेवा कफ सिरप कोल्ड्रिफ पीने से 25 बच्चों की मौत हो चुकी है। श्रीसन फार्मा की इस दवा को परासिया के डॉ. प्रवीण सोनी पिछले 10 सालों से प्रिस्क्राइब कर रहे थे। दवा कंपनी और डॉ. प्रवीण सोनी के बीच एक अघोषित करार था, हालांकि डॉ. सोनी ने इससे इनकार कर रहे हैं।

दवा कंपनियों और डॉक्टरों के बीच गठजोड़ की यह सिर्फ एक बानगी है। एक ऐसा ही चौंकाने वाला मामला 10 साल से मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल की फाइलों में धूल खा रहा है, जिसमें प्रदेश के 14 जिलों के 20 बड़े और प्रतिष्ठित प्राइवेट डॉक्टर एक फार्मा कंपनी के खर्च पर सपरिवार इटली की सैर कर आए थे। इसके एवज में इन डॉक्टरों ने इस कंपनी की दवाएं मरीजों को प्रिस्क्राइब की थीं।

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10 साल पहले शिकायत... अब तक कार्रवाई नहीं

इस मामले की शिकायत 10 साल पहले हुई थी, लेकिन मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल (Madhya Pradesh Medical Council) की सुस्ती और लापरवाही के चलते वह आज भी इन डॉक्टरों को लेटर लिखकर यात्रा की टिकट और बैंक डिटेल मांग रही है। जबकि नियमों के मुताबिक, काउंसिल को किसी भी शिकायत का निपटारा अधिकतम 6 महीने में कर देना चाहिए।

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10 साल की लंबे समय के बाद, जब शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की चेतावनी दी, तब जाकर काउंसिल ने सख्ती दिखाते हुए 30 सितंबर 2025 को इन डॉक्टरों को नोटिस भेजकर पूछा है कि उनके खिलाफ एक्शन क्यों न लिया जाए ?

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10 साल पहले विदेश यात्रा, आज तक सिर्फ नोटिस

इस पूरे मामले की जड़ें एक दशक पहले की हैं। रायपुर के व्हिसल ब्लोअर और सामाजिक कार्यकर्ता विकास तिवारी ने 28 अगस्त 2015 को मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में उन्होंने सबूतों के साथ दावा किया कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुल 28 प्राइवेट डॉक्टर 13 जुलाई से 21 जुलाई 2014 तक इटली के वेनिस और पोर्टोरोज जैसे शहरों में घूमने गए थे।

यह कोई सामान्य छुट्टी नहीं थी। यह एक ‘स्पॉन्सर्ड’ यात्रा थी, जिसका पूरा खर्च मुंबई की बड़ी फार्मा कंपनी यूएसवी लिमिटेड ने उठाया। विकास तिवारी ने अपनी शिकायत में कहा कि यह यात्रा इन डॉक्टरों को इनाम के तौर पर दी गई थी, क्योंकि वे मरीजों को इस कंपनी की दवाएं प्रिस्क्राइब करते थे, जिससे कंपनी को भारी मुनाफा हो रहा था। यह सीधे तौर पर मेडिकल एथिक्स का उल्लंघन था।

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14 शहरों के 20 डॉक्टर्स को नोटिस

शहरडॉक्टर का नाम
इंदौरडॉ. ए.बी. पटेल
इंदौरडॉ. उमेश मसंद
इटारसीडॉ. कन्हैयालाल जैसवानी
दमोहडॉ. दर्शनमल संगतानी
कटनीडॉ. प्रवीण वैश्य
रीवाडॉ. राजेश सिंघल
सतनाडॉ. सुशील कुमार श्रीवास्तव
सतनाडॉ. राजेश जैन
नरसिंहपुरडॉ. सचिंद्र मोदी
नरसिंहपुरडॉ. गिरीश चरण दुबे
खरगोनडॉ. रवि महाजन
धारडॉ. विष्णु कुमार पाटीदार
मंदसौरडॉ. विजय शंकर मिश्रा
जबलपुरडॉ. नरेश कुमार बंसल
जबलपुरडॉ. विजय चावला
जबलपुरडॉ. अजय भण्डारी
ग्वालियरडॉ. राजेश्वर सिंह जादौन
शुजालपुरडॉ. एस.एन. गुप्ता
नीमचडॉ. प्रकाश चंद्र पटेल
नीमचडॉ. रश्मि पटेल

MP में सिर्फ नोटिस, छत्तीसगढ़ में एक्शन

यह मामला दो राज्यों की मेडिकल काउंसिल्स की कार्यप्रणाली के अंतर को भी उजागर करता है। शिकायतकर्ता विकास तिवारी बताते हैं, “मैंने इसी विदेश यात्रा पर गए छत्तीसगढ़ के दो डॉक्टरों के खिलाफ छत्तीसगढ़ मेडिकल काउंसिल में शिकायत दर्ज कराई। वहां तुरंत कार्रवाई हुई।

काउंसिल ने न केवल डॉक्टरों को नोटिस जारी किया, बल्कि यात्रा का खर्च उठाने वाली फार्मा कंपनी को भी नोटिस भेजकर जवाब मांगा। महज 4 महीने में जांच पूरी कर दोनों डॉक्टरों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए।”

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इसके विपरीत, मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल ने 10 साल में इन 20 डॉक्टरों के खिलाफ केवल चार नोटिस ही भेजे हैं।

शिकायतकर्ता ने कहा- हाईकोर्ट तक जाऊंगा

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काउंसिल की कार्रवाई इतनी लचर रही कि 10 साल में वह इन डॉक्टरों के पासपोर्ट, बैंक विवरण और पिछले तीन साल के वित्तीय रिकॉर्ड तक नहीं मंगवा पाई। हद तो तब हो गई जब काउंसिल ने मामले की पुष्टि के लिए शिकायतकर्ता विकास तिवारी से ही डॉक्टरों की यात्रा की पूरी जानकारी मांग ली, जबकि छत्तीसगढ़ काउंसिल ने खुद कंपनी से जानकारी प्राप्त कर ली थी।

विकास तिवारी कहते हैं, “जब 10 साल बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो मैंने काउंसिल को पत्र लिखकर चेतावनी दी कि यदि अब भी कोई कदम नहीं उठाया गया, तो मैं इस मामले को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करूंगा। मेरी चेतावनी के बाद ही काउंसिल ने आखिरकार अंतिम नोटिस जारी किया है।”

सिर्फ डॉक्टर नहीं, फार्मा कंपनी पर भी कार्रवाई हो

विकास तिवारी के मुताबिक, ऐसे मामलों में केवल डॉक्टरों को दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं है। सरकार के Uniform Code for Pharmaceutical Marketing Practices (UCPMP), 2024 के तहत फार्मा कंपनियों पर भी कार्रवाई की जा सकती है। इस नियम के अंतर्गत अनैतिक मार्केटिंग करने वाली कंपनियों का लाइसेंस निलंबित किया जा सकता है।

इसके अलावा, ऐसी कंपनियों के नाम सार्वजनिक करके उन्हें ब्लैकलिस्ट भी किया जा सकता है। विकास तिवारी का कहना है कि यह मामला स्वास्थ्य सेवा के उस काले पक्ष को उजागर करता है, जहां मरीजों की सेहत और जेब दोनों पर डॉक्टरों और दवा कंपनियों का गठजोड़ डाका डाल रहा है।

क्या है नियम..

सरकारी डॉक्टरः यदि कोई सरकारी डॉक्टर फार्मा कंपनी से लाभ लेता है, तो उस पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत 3 से 7 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है।

प्राइवेट डॉक्टरः प्राइवेट डॉक्टर NMC (पूर्व में MCI) के 'Professional Conduct, Etiquette and Ethics Regulations, 2002' की धारा 6.8 का उल्लंघन करते हैं तो राज्य मेडिकल काउंसिल उनका रजिस्ट्रेशन कैंसिल कर सकती है।
फार्मा कंपनी: कंपनी पर Uniform Code for Pharmaceutical Marketing Practices (UCPMP), 2024 के तहत कार्रवाई हो सकती है, जिसमें लाइसेंस सस्पेंड करना भी शामिल है।

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