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पॉक्सो मामलों में भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि: छत्तीसगढ़ बना देश में नंबर वन, 189 प्रतिशत मामलों का समाधान

भारत ने पॉक्सो मामलों में बच्चों को न्याय दिलाने की दिशा में बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है। पहली बार एक साल में दर्ज मामलों से अधिक पॉक्सो मामलों का निपटारा हुआ है। छत्तीसगढ़ इस सूची में शीर्ष पर रहा

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Harsh Verma
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इमेज AI से जनरेट किया गया है।

Chhattisgarh POCSO Cases: भारत की न्यायिक व्यवस्था ने बच्चों के यौन शोषण से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण मोड़ हासिल किया है। पहली बार ऐसा हुआ है जब एक वर्ष में दर्ज होने वाले पॉक्सो मामलों से अधिक मामलों का निपटारा किया गया है। यह उपलब्धि ऐसे समय में सामने आई है, जब भारतीय न्याय प्रणाली को अक्सर “तारीख पर तारीख” और लंबित मुकदमों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता रहा है।

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छत्तीसगढ़ बना देश में अग्रणी राज्य

पॉक्सो मामलों के निपटारे में छत्तीसगढ़ देशभर में सबसे आगे रहा है। वर्ष 2025 में राज्य में पॉक्सो कानून के तहत कुल 1416 मामले दर्ज हुए, जबकि अदालतों ने 2678 मामलों का निपटारा किया। यह निपटान दर 189 प्रतिशत रही, जो देश में सबसे अधिक है। इनमें पिछले कई वर्षों से लंबित मामलों का बड़ा हिस्सा भी शामिल है, जिससे न्याय की प्रतीक्षा कर रहे पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों को राहत मिली है।

सी-लैब फॉर चिल्ड्रन की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

POCSO मामलों के निर्णय में चुनौतियाँ: कानूनी पेशेवरों की अंतर्दृष्टि -  कानून लेख

सेंटर फॉर लीगल एक्शन एंड बिहेवियर चेंज (सी-लैब) फॉर चिल्ड्रन की रिपोर्ट “पेंडेंसी टू प्रोटेक्शन: अचीविंग द टिपिंग पॉइंट टू जस्टिस फॉर चाइल्ड विक्टिम्स ऑफ सेक्सुअल एब्यूज” के अनुसार, वर्ष 2025 में देशभर में बच्चों के यौन शोषण से जुड़े 80,320 मामले दर्ज हुए। वहीं अदालतों ने 87,754 मामलों का निपटारा किया। इससे देश की कुल निपटान दर 109 प्रतिशत तक पहुंच गई है।

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रिपोर्ट की एक और अहम बात यह है कि छत्तीसगढ़ के अलावा देश के 24 राज्यों में भी पॉक्सो मामलों की निपटान दर 100 प्रतिशत से अधिक रही है। यह संकेत देता है कि कई राज्यों में न्यायिक प्रक्रिया ने गति पकड़ी है और लंबित मामलों को तेजी से निपटाने की कोशिश की जा रही है।

2023 तक 2.62 लाख मामले थे लंबित

If not a single new case is added, POCSO cases will be settled in Rajasthan  courts by 2033.

भारत में 2023 तक पॉक्सो के 2,62,089 मामले लंबित थे। इतने बड़े आंकड़े ने न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए थे। लेकिन अब रिपोर्ट बताती है कि देश एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है, जहां अदालतें सिर्फ नए मामलों से निपटने के बजाय पुराने और लंबित मामलों को भी सक्रिय रूप से कम कर रही हैं।

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि यदि सभी लंबित पॉक्सो मामलों को चार वर्षों के भीतर समाप्त करना है, तो देशभर में 600 अतिरिक्त ई-पॉक्सो अदालतों की स्थापना जरूरी है। इसके लिए लगभग 1,977 करोड़ रुपये के बजट की आवश्यकता बताई गई है, जिसमें निर्भया फंड का उपयोग भी किया जा सकता है।

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क्रमांकविवरणआंकड़ा / जानकारी
1भारत में 2023 तक लंबित कुल पॉक्सो मामले2,62,089 मामले
2न्याय व्यवस्था की स्थितिलंबित मामलों के कारण गंभीर दबाव
3वर्तमान ट्रेंडनए मामलों के साथ-साथ पुराने मामलों का भी निपटारा
4लंबित सभी मामलों के निपटारे की समयसीमा (सुझावित)4 वर्ष
5अतिरिक्त ई-पॉक्सो अदालतों की आवश्यकता600 अदालतें
6अनुमानित कुल बजट आवश्यकता₹1,977 करोड़
7संभावित फंडिंग स्रोतनिर्भया फंड

गंभीर चिंताओं की ओर भी इशारा

हालांकि उपलब्धियां उत्साहजनक हैं, लेकिन रिपोर्ट कुछ गंभीर चिंताओं की ओर भी ध्यान दिलाती है। राज्यों के बीच निपटान दर में असमानता, दोष सिद्धि दर में निरंतरता की कमी और लगभग 50 प्रतिशत मामलों का दो साल तक लंबित रहना बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं।

छत्तीसगढ़ में लंबित मामलों की स्थिति

छत्तीसगढ़ के आंकड़े बताते हैं कि 3 प्रतिशत मामले 6 से 10 साल से, 6 प्रतिशत 5 साल से, 14 प्रतिशत 4 साल से और 34 प्रतिशत 3 साल से लंबित हैं। शेष 43 प्रतिशत मामले दो साल से लंबित हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि कई मामलों में प्रक्रिया की शुरुआती अवस्था से ही देरी शुरू हो जाती है, जिससे न्याय मिलने में वर्षों लग जाते हैं।

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