Chhattisgarh forest land claims: छत्तीसगढ़ में वन अधिकार कानून के तहत दायर दावों की संख्या देश में सबसे अधिक है, लेकिन उनमें से लगभग आधे दावे खारिज कर दिए गए हैं। संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, 9.47 लाख व्यक्तियों और संगठनों द्वारा अब तक दावे किए गए, जिनमें से 4.03 लाख दावे जांच के बाद अस्वीकृत (forest rights rejection data) कर दिए गए हैं।
यह स्थिति (Chhattisgarh forest land claims) राज्य में वन भूमि के दुरुपयोग और फर्जी दावों के बढ़ते मामलों की ओर इशारा करती है। बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बहुल जिलों में गैर-आदिवासी व्यापारियों द्वारा जमीन पर अवैध कब्जे (land fraud by businessmen in tribal areas) की घटनाएं सामने आ रही हैं, जो राज्य की भूमि व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रही हैं।
ग्रामसभाओं से लेकर कलेक्टर स्तर तक की जा रही जांच
वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act implementation in India) के तहत जमीन का अधिकार देने से पहले ग्रामसभा द्वारा दावा अनुमोदन जरूरी होता है। इसके बाद जिला प्रशासन उस दावे का सत्यापन करता है। लेकिन कई मामलों में पाया गया कि गैर-आदिवासी लोग, आदिवासियों के नाम पर फर्जी दावे कर रहे हैं। प्रशासन जब ऐसे दावों की तह में गया, तो उन्हें खारिज करना पड़ा।
इनमें से कई दावे जमीन पर बने पक्के ढांचे, नकली किरायानामों और फर्जी दस्तावेजों (fake land claim documents) के आधार पर किए गए थे। कलेक्टर के समक्ष संदेहास्पद मामलों में पूछताछ और भौतिक जांच के बाद निरस्तीकरण की प्रक्रिया तेज की गई है।
आदिवासियों की जमीन पर ली गई लीज, फिर किया गया कब्जा
छत्तीसगढ़ के बस्तर, कांकेर, कोरबा और सरगुजा जैसे इलाकों में कई गैर-आदिवासी व्यापारियों द्वारा लीज के बहाने आदिवासियों की जमीन पर कब्जा (tribal land lease misuse) करने के मामले सामने आए हैं। कुछ मामलों में थोड़े पैसों के बदले में जमीन ली गई, फिर वहां पक्का निर्माण कर वन भूमि अधिकार का दावा दायर किया गया।
नियमों के अनुसार, आदिवासी भूमि केवल आदिवासी व्यक्ति के नाम पर ही खरीदी या बेची जा सकती है, लेकिन इन कानूनों की अनदेखी (violation of PESA and FRA rules) कर वन भूमि पर कब्जा करने की कोशिशें लगातार बढ़ रही हैं।
संसदीय रिपोर्ट में खुलासा, छत्तीसगढ़ पहले स्थान पर
31 मई 2025 तक संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ देश में वन भूमि अधिकार दावों की संख्या में पहले स्थान पर है। यहां दायर 9.47 लाख दावों में से लगभग 42% दावे खारिज कर दिए गए हैं। ओडिशा में 7.36 लाख और मध्य प्रदेश में 6.27 लाख दावे दायर हुए हैं।
इस आंकड़े से स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ में भूमि अधिकार को लेकर जागरूकता तो है, लेकिन साथ में कानून के दुरुपयोग की घटनाएं (land misuse in tribal belts) भी बढ़ी हैं, जिन्हें रोकने के लिए सख्त जांच और निगरानी की आवश्यकता है।
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वन भूमि के असली हकदारों से छिन रहा है हक
वन भूमि अधिकार (Chhattisgarh forest land claims) के अंतर्गत वास्तविक लाभ आदिवासियों को मिलना था, लेकिन फर्जी दावों और कब्जों (fake tribal land claims) के कारण उनका अधिकार छिनता जा रहा है। यह आदिवासी समुदाय के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
राज्य सरकार को चाहिए कि वह जिलेवार स्तर पर पारदर्शी ऑडिट प्रणाली लागू करे और यह सुनिश्चित करे कि जमीन का हक सिर्फ उन्हीं को मिले, जो वास्तव में उसके हकदार हैं।
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