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जगदलपुर पेशाब कांड: हाईकोर्ट ने मुख्य आरोपी नितिन साहू और आयुष सिंह राजपूत को दी अग्रिम जमानत, जानें क्या है पूरा मामला?

Jagdalpur Peshab Kand: जगदलपुर पेशाब कांड, हाईकोर्ट ने मुख्य आरोपी नितिन साहू और आयुष सिंह राजपूत को दी अग्रिम जमानत, जानें क्या है पूरा मामला?

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Harsh Verma
Chhattisgarh Sharab Ghotala 2025 Vijay Bhatia, Bilaspur High Court

Chhattisgarh Bilaspur High Court

Jagdalpur Peshab Kand: जगदलपुर (Jagdalpur) का चर्चित ‘पेशाब कांड’ (Peshab Kand) एक बार फिर सुर्खियों में है। यह मामला न सिर्फ छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) बल्कि पूरे देश में गहरी संवेदनाओं को झकझोर चुका है। पीड़ित ड्राइवर कुर्सिद अहमद (Kursid Ahmed) लंबे समय से न्याय की मांग कर रहे हैं। अब इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) का बड़ा फैसला सामने आया है।

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हाईकोर्ट का फैसला

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 28 अगस्त 2025 को मुख्य आरोपी नितिन साहू (Nitin Sahu) और आयुष सिंह राजपूत (Ayush Singh Rajput) को अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) दे दी है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह विवाद दरअसल ट्रक किराए की रकम 52,800 रुपये से जुड़ा है। चूंकि जांच और ट्रायल (Trial) में समय लगेगा और दोनों आरोपियों का अब तक कोई आपराधिक रिकॉर्ड सामने नहीं आया है, इसलिए उन्हें अग्रिम जमानत दी जा रही है।

कोर्ट की शर्तें

  • आरोपी गवाहों को किसी भी तरह से धमकाएंगे नहीं।
  • ट्रायल को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेंगे।
  • हर पेशी पर कोर्ट में मौजूद रहेंगे।
  • भविष्य में किसी भी तरह के अपराध में शामिल नहीं होंगे।
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पीड़ित की पीड़ा और समाज के सवाल

पीड़ित कुर्सिद अहमद ने आरोप लगाया था कि कबाड़ी संचालक और उसके साथियों ने उन्हें फार्महाउस में बंधक बनाकर घंटों पीटा, बेल्ट से घायल किया, निर्वस्त्र कर अपमानित किया और उन पर पेशाब कर दिया। इस घटना का वीडियो वायरल (Viral Video) होने के बाद पूरे राज्य में आक्रोश फैला था।

अब हाईकोर्ट के फैसले के बाद कई सवाल उठ रहे हैं—

क्या पीड़ित को न्याय मिलेगा या आरोपी जमानत का फायदा उठाकर गवाहों को प्रभावित करेंगे?

क्या पीड़ित की आवाज़ दब जाएगी?

क्या इंसाफ की राह और लंबी हो जाएगी?

न्याय और मानवाधिकार का सवाल

जगदलपुर का यह मामला सिर्फ एक आपराधिक विवाद नहीं है, बल्कि यह न्याय और मानवाधिकार (Human Rights) की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। समाज में न्याय की उम्मीदें अब भी कायम हैं, लेकिन पीड़ित के लिए यह संघर्ष लंबा और कठिन होता जा रहा है।

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