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Bilaspur High Court: हाईकोर्ट ने सहायक आरक्षक और DSF जवानों की सुविधाओं संबंधी याचिका खारिज की, कहा- यह सर्विस मैटर

Bilaspur High Court: हाईकोर्ट ने सहायक आरक्षक और DSF जवानों की सुविधाओं संबंधी याचिका खारिज की, कहा- यह सर्विस मैटर

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Harsh Verma
Chhattisgarh Sharab Ghotala 2025 Vijay Bhatia, Bilaspur High Court

Chhattisgarh Bilaspur High Court

Bilaspur High Court: बिलासपुर (Bilaspur) स्थित छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने संयुक्त पुलिस कर्मचारी एवं परिवार कल्याण संघ की याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में सहायक आरक्षकों (Assistant Constables) और डिस्ट्रिक्ट स्ट्राइक फोर्स (DSF) के जवानों के लिए पुलिस कांस्टेबल (Police Constables) के बराबर सुविधाओं की मांग की गई थी।

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डिवीजन बेंच (Division Bench) ने सुनवाई के बाद साफ किया कि यह मामला जनहित याचिका (Public Interest Litigation - PIL) के अंतर्गत नहीं आता। कोर्ट का कहना है कि यह पूरी तरह सर्विस मैटर (Service Matter) है और इसे उसी रूप में देखा जाना चाहिए।

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सहायक आरक्षकों की मांग

याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार के मंत्रिमंडल (Cabinet) के निर्णय के बाद सहायक आरक्षक के पद को समाप्त कर डीएसएफ बनाने की अनुशंसा की गई थी। इसके तहत लगभग 2700 सहायक आरक्षकों को डीएसएफ में शामिल कर लिया गया, लेकिन शेष हजारों जवान अब भी इस फैसले की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

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उनका कहना था कि उन्हें डीएसएफ का दर्जा और उसी अनुरूप वेतन (Salary) तथा सुविधाएं मिलनी चाहिए थीं। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि डीएसएफ में शामिल किए गए जवानों को जिला पुलिस बल (District Police Force) के समान सुविधाएं और परिजनों को अनुकम्पा नियुक्ति (Compassionate Appointment) नहीं दी जा रही है।

गोपनीय सैनिकों का भी जिक्र

याचिका में यह भी मुद्दा उठाया गया कि गोपनीय सैनिक (Secret Soldiers) कई वर्षों से जोखिम उठाकर सेवा दे रहे हैं। बावजूद इसके उन्हें अब तक पुलिस आरक्षक (Constable) का दर्जा नहीं दिया गया है। यह स्थिति उनके साथ अन्यायपूर्ण है।

कोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने इन सभी दलीलों पर विचार करने के बाद स्पष्ट किया कि यह मामला नीतिगत और प्रशासनिक फैसलों से जुड़ा है। इसलिए इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं को उचित विधिक प्रक्रिया अपनाने की सलाह दी।

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इस फैसले के बाद बस्तर (Bastar) और अन्य जिलों के हजारों सहायक आरक्षकों और डीएसएफ जवानों में निराशा देखने को मिल रही है। उनका कहना है कि लंबे समय से वे समान सुविधाओं की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब कोर्ट के इस आदेश के बाद उनकी लड़ाई और लंबी हो सकती है।

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