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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पलटा सत्र न्यायालय का फैसला: अडल्ट्री केस में आरोपी को किया बरी, कहा- सजा देना कानूनन सही नहीं

Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पलटा सत्र न्यायालय का फैसला, अडल्ट्री केस में आरोपी को किया बरी, कहा- सजा देना कानूनन सही नहीं

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Harsh Verma
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Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में व्यभिचार (Adultery) के एक मामले में आरोपी को दोषमुक्त कर दिया है। यह मामला उस समय चर्चा में आया था जब एक अविवाहित महिला ने शादी के झूठे वादे पर लंबे समय तक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था।

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सत्र न्यायालय ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 497 के तहत दोषी ठहराया था, जिसे हाईकोर्ट ने अब पलट दिया है।

जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की एकलपीठ ने कहा कि IPC की धारा 497 अब कानून में असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (Joseph Shine vs Union of India) में इसे रद्द कर चुका है। इसलिए इस मामले में इस धारा के तहत सजा देना कानूनन सही नहीं है।

पीड़िता ने 2015 में दर्ज कराई थी रिपोर्ट 

पीड़िता ने 2015 में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया था कि आरोपी ने उससे गुपचुप शादी की थी और बाद में उचित रीति-रिवाज से विवाह का आश्वासन देकर बार-बार यौन संबंध बनाए। पीड़िता ने यह भी आरोप लगाया कि वह कई बार गर्भवती हुई, लेकिन आरोपी ने हर बार उसका गर्भपात करवाया।

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मुकदमे के दौरान सत्र न्यायालय ने शुरुआत में IPC की धारा 376 के तहत बलात्कार का आरोप तय किया, लेकिन सबूतों की कमी के चलते आरोपी को IPC की धारा 497 के तहत दोषी माना गया।

हाईकोर्ट ने इस निष्कर्ष पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह मामला IPC की धारा 497 के तहत नहीं आता क्योंकि यह अपराध केवल विवाहित महिला और तीसरे पुरुष के बीच के संबंधों पर लागू होता है।

न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया जिक्र

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस मामले में पीड़िता के पति ने व्यभिचार की कोई शिकायत दर्ज नहीं की। जबकि IPC की धारा 497 में अभियोजन के लिए जरूरी होता है कि महिला का पति अदालत में शिकायत करे। ऐसे में इस धारा के तहत आरोपी पर मुकदमा चलाना कानूनन सही नहीं माना जा सकता।

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न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018) का भी उल्लेख किया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित किया था।

कोर्ट ने पाया था कि यह प्रावधान महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करता है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है। इन्हीं आधारों पर हाईकोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।

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