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रायपुर के मेकाहारा में HIV पीड़िता की पहचान उजागर करने पर HC सख्त: पीड़िता को 2 लाख मुआवजा देने और कार्रवाई के निर्देश

Chhattisgarh High Court: रायपुर के मेकाहारा में HIV पीड़िता की पहचान उजागर करने पर HC सख्त, पीड़िता को 2 लाख मुआवजा देने और कार्रवाई के निर्देश

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Harsh Verma
Chhattisgarh Sharab Ghotala 2025 Vijay Bhatia, Bilaspur High Court

Chhattisgarh Bilaspur High Court

Chhattisgarh High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में एचआईवी संक्रमित महिला की पहचान उजागर करने की घटना पर कड़ी नाराजगी जताई है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा (Chief Justice Ramesh Sinha) की बेंच ने राज्य सरकार से जवाब मांगा और कहा कि यह कृत्य न केवल अमानवीय बल्कि भारतीय संविधान (Indian Constitution) के अनुच्छेद 21 में दिए गए गरिमा और निजता के अधिकार (Right to Privacy and Dignity) का गंभीर उल्लंघन है।

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अदालत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की चिकित्सीय जानकारी गोपनीय (Confidential) होती है और उसे सार्वजनिक करना न केवल असंवेदनशीलता है बल्कि यह भविष्य में उस व्यक्ति और उसके परिवार के साथ भेदभाव (Discrimination) की जड़ बन सकती है।

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राज्य सरकार को दिया मुआवजा और कार्रवाई का आदेश

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सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत सिंह (Additional Advocate General Yashwant Singh) ने बताया कि एचआईवी पीड़ितों की पहचान उजागर न करने का नियम पहले से मौजूद है और सभी चिकित्सा संस्थानों (Medical Institutions) को इसका पालन करने के निर्देश हैं। लेकिन अस्पताल कर्मियों की लापरवाही के कारण यह गंभीर गलती हुई।

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कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए पीड़िता को 2 लाख रुपये मुआवजा (Compensation) देने का आदेश दिया और कहा कि दोषियों पर विभागीय कार्रवाई (Departmental Action) की जाए। अदालत ने जांच पूरी कर रिपोर्ट पेश करने के निर्देश देते हुए याचिका को निराकृत कर दिया।

नवजात शिशु के पास लगाया गया था पोस्टर, पिता हुआ भावुक

घटना के मुताबिक रायपुर के डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल (Dr. Bhimrao Ambedkar Hospital) में एक नवजात शिशु के पास एक पोस्टर लगाया गया था, जिसमें लिखा था – “बच्चे की मां एचआईवी पॉजिटिव है”। यह पोस्टर गायनेकोलॉजी वार्ड (Gynecology Ward) में भर्ती मां और नर्सरी वार्ड (Nursery Ward) में रखे नवजात शिशु के बीच लगाया गया था।

जब बच्चे का पिता अपने नवजात को देखने पहुंचा, तो उसने यह पोस्टर देखा और भावुक होकर रो पड़ा। मामला सामने आने के बाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान (Suo Moto Cognizance) लिया और कहा कि यह “अत्यंत अमानवीय, असंवेदनशील और निंदनीय आचरण” है।

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कोर्ट ने कहा कि इस तरह की घटनाएं न केवल संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं बल्कि समाज में एचआईवी संक्रमित लोगों के प्रति भेदभाव को भी बढ़ावा देती हैं। अदालत ने चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोहराई गईं तो जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई (Strict Legal Action) की जाएगी।

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