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Chhatarpur Principal Case: सिनेमा और वेब सीरीज में अपराध की चमकदार पैकेजिंग समाज के लिए घातक

Chhatarpur Principal Case: बचपन में यदि सुरक्षित, समझदार और प्रेमपूर्ण माहौल नहीं मिलता तो बच्चे अपनी भावनाओं को समझना और संभालना नहीं सीख पाते। किशोर असली जीवन की कठिनाइयों से जूझने के बजाय हिंसा और अपराध को आसान रास्ता मानने लगते हैं।

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Rahul Garhwal
Chhatarpur Principal Case Mental Condition of Children Doctor Satyakant Trivedi

Chhatarpur Principal Case: मैं एक मनोचिकित्सक हूं और एक नागरिक होने के नाते जब छतरपुर की इस दर्दनाक घटना पर विचार करता हूं, जिसमें एक छात्र ने अपने प्राचार्य की गोली मारकर जान ले ली, तो समझ में आता है कि इसके पीछे गहरे सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारण काम कर रहे हैं।

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यह सिर्फ एक बच्चे की निजी विफलता नहीं, बल्कि उस माहौल का संकेत है जहां वेब सीरीज और सिनेमा के माध्यम से अपराध को आकर्षक रूप में पेश किया जा रहा है। इस माहौल में सही-गलत का अंतर धुंधला पड़ जाता है और किशोर असली जीवन की कठिनाइयों से जूझने के बजाय हिंसा और अपराध को आसान रास्ता मानने लगते हैं।

भ्रामक छवियों को वास्तविक समझने लगते हैं बच्चे

बचपन में यदि सुरक्षित, समझदार और प्रेमपूर्ण माहौल नहीं मिलता तो बच्चे अपनी भावनाओं को समझना और संभालना नहीं सीख पाते। गुस्सा, निराशा और हताशा जैसे भाव, जब समय रहते सही मार्गदर्शन नहीं पाते तो किशोर गलत फैसलों की ओर बढ़ सकते हैं। किशोरावस्था वैसे भी पहचान, आदर्श और सम्मान की तलाश का दौर है। ऐसे में परदे पर अपराधियों को नायक की तरह देखने से उन्हें लगता है कि हिंसा या छल-कपट से भी आगे बढ़ा जा सकता है। यदि उन्हें भावनात्मक संतुलन व मूल्य आधारित दिशा-निर्देश न मिले, तो वे इन भ्रामक छवियों को वास्तविक समझने लगते हैं।

बच्चों को भावनात्मक प्रबंधन सिखाना जरूरी

मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे अवसाद, बेचैनी, अत्यधिक क्रोध या ध्यान की कमी, यदि समय पर समझी और सुलझाई न जाएं तो किशोर नशे या गलत आदतों की ओर खिंच सकते हैं। नशे में सही-गलत का बोध और कमजोर हो जाता है जिससे अपराध या आत्मघाती प्रवृत्तियों की आशंका बढ़ जाती है। इस स्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि बच्चों को भावनात्मक प्रबंधन सिखाया जाए, उनका मन टटोला जाए और उन्हें बताया जाए कि हर मुश्किल भावनाओं से निपटने के स्वस्थ तरीके मौजूद हैं।

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परिवार, शिक्षक, परामर्शदाता और समुदाय के लोग मिलकर खुली बातचीत, परामर्श सत्र और मानवीय संवेदनाओं के आदान-प्रदान के माध्यम से उनका साथ दे सकते हैं।

परदे पर अपराध की चमकदार पैकेजिंग

यह घटना सिर्फ एक बच्चा या एक परिवार की समस्या नहीं, बल्कि हमारे सामूहिक परिवेश का चित्र है। जहां परदे पर अपराध को चमकदार पैकेज में लपेटकर परोसा जा रहा है। वहां बच्चों को असली दुनिया का फर्क समझाना, उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाना और नैतिक मूल्यों से परिचित कराना बेहद जरूरी हो जाता है। इसी समग्र दृष्टिकोण से हम न केवल अपराध और हिंसा पर अंकुश लगा सकते हैं, बल्कि आत्मघाती प्रवृत्तियों को भी रोकने में कामयाब हो सकते हैं।

इस घटना से मिलने वाली 5 सीख

1. बच्चों को भावनाओं को समझना और नियंत्रित करना सिखाना बेहद आवश्यक।

2. सही-गलत की पहचान और नैतिक मूल्यों पर जोर दें।

3. इस बात का बोध कराना कि परदे पर दिखाई जाने वाली हिंसा और अपराध को वे कल्पना समझें, हकीकत नहीं।

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4. मानसिक दबाव के लक्षण जल्दी पहचानें और समय पर सहयोग दें।

5. परिवार, शिक्षकों और समुदाय के साथ खुला संवाद बनाए रखें।

लेखक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी (साइकाइट्रिस्ट एंड साइकोलॉजिकल एनालिस्ट)महत्वपूर्ण समसामायिक विषयों पर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार प्रकट करते हैं।

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