हाइलाइट्स
- चरण सिंह वास्तव में ‘धरतीपुत्र’ कहे जाने के अधिकारी थे
- वकालत के पेशे में आने से पहले वे इंजीनियर बनना चाहते थे
- कॉलेज में केवल 30 सीटें थीं और उनका चयन 29वें स्थान पर हो गया था
Chaudhary Charan Singh: देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जीवन संघर्ष, मेहनत और संकल्प की मिसाल रहा है। साधारण कृषक परिवार में जन्म लेकर भारत की सत्ता के सर्वोच्च पद तक पहुंचने वाले चरण सिंह वास्तव में ‘धरतीपुत्र’ कहे जाने के अधिकारी थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि वकालत के पेशे में आने से पहले वे इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन एक विषय में कम अंक आने के कारण उनका यह सपना अधूरा रह गया।
आईआईटी रुड़की में नहीं मिल पाया दाखिला
बीएससी के दूसरे वर्ष में पढ़ाई के दौरान चौधरी चरण सिंह ने रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज (जो आज भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी IIT के नाम से जाना जाता है) में दाखिले के लिए परीक्षा दी थी। कॉलेज में केवल 30 सीटें थीं और उनका चयन 29वें स्थान पर हो गया था, लेकिन ड्राइंग विषय में न्यूनतम 50 प्रतिशत अंक अनिवार्य थे, जो वह हासिल नहीं कर पाए। परिणामस्वरूप उनसे कम कुल अंक लाने वाले एक अन्य छात्र को दाखिला मिल गया।
असफलता ने बनाए आत्ममंथनशील
यह जीवन की वह असफलता थी, जिसने चौधरी चरण सिंह को अंतर्मुखी बनाया और उनमें चिंतनशीलता को और अधिक प्रबल किया। उनके भाषणों में तथ्यों और आंकड़ों की गहराई होती थी और उनका हर कथन ठोस आधार पर आधारित होता था।
शुरुआती शिक्षा से लेकर एमए तक का सफर
चौधरी चरण सिंह की प्रारंभिक शिक्षा मेरठ के जानी गांव की प्राथमिक पाठशाला में हुई। इसके बाद वह सिवाल स्कूल में पढ़ने गए, जो उनके गांव से ढाई मील दूर था। 9-10 वर्ष की उम्र में वे अकेले घोड़े की सवारी कर स्कूल जाया करते थे। मेरठ के जीआईसी से विज्ञान विषय में हाईस्कूल की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ पास करने के बाद उन्होंने 1919 में आगरा कॉलेज में एमएससी में प्रवेश लिया।
पढ़ाई के लिए मिला वजीफा
पिता मीर सिंह ने उनकी पढ़ाई का खर्च तो उठाया, लेकिन रहने और अन्य व्यवस्था के लिए संसाधन नहीं थे। ऐसे में मेरठ के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. भूपाल सिंह ने उन्हें 10 रुपये मासिक वजीफा देना शुरू किया और एक साल की रकम अग्रिम दे दी, जिससे उनकी शिक्षा बाधित नहीं हुई।
गरीबों के लिए हमेशा लड़ते रहे
पूर्व विधायक चौधरी नरेंद्र सिंह, जो 40 वर्षों तक चरण सिंह के निकट रहे, बताते हैं कि उन्होंने हमेशा समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की चिंता की। खुद संघर्ष झेलने के कारण वे पिछड़ों और कमजोर वर्गों की आवाज बन गए। मंडल कमीशन की नियुक्ति उनकी सोच का क्रांतिकारी उदाहरण थी।
Lucknow Mandi Parishad: मंडी परिषद के पूर्व वित्त नियंत्रक निजलिंगप्पा पर उपलोकायुक्त का शिकंजा,नोटिस का कोई जवाब नहीं
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