नई दिल्ली। शुक्रवार को चैत्ररात्रि का सातवां दिन है। Chaitra navratri 2022 day 7 इस दिन मां के सातवें रूप यानि मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। धर्म शास्त्र अनुसार मां कालरात्रि को देवी पार्वती के तुल्य माना जाता है। मां कालरात्रि के नाम का शाब्दिक अर्थ अंधेरे को ख़त्म करने वाली मां से है। ऐसे में इस बार चैत्र नवरात्रि 2022 में सप्तमी पर मां कालरात्रि का पूजन करना बेहद शुभ माना जाता है। इस बार चैत्र नवरात्रि का दिन 8 अप्रैल को पड़ रहा है।
इस स्थिति में जरूर करें मां का पूजन —
अगर आप दुश्मनों से घिर जाएं, शत्रुओं का भय सताए तो आपको माता कालरात्रि की पूजा अवश्य करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इनके पूजन से शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है।
शनि ग्रह की नियंत्रक देवी कालरात्रि —
ज्योतिषीय मान्यता अनुसार देवी कालरात्रि को शनि ग्रह को नियंत्रित करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। इनके पूजन से शनि के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
माता कालरात्रि का स्वरूप
जैसा कि मां के नाम से भी स्पष्ट है कि मैया कालरात्रि हैं। इनके नाम की तरह ही इनके शरीर का वर्ण भी काला है। इनके केश हमेशा खुले होते हैं। गले में माला धारण करती हैं। साथ ही ब्रहृमांण के समान दिखने वाले नेत्र मां के क्रोध को स्पष्ट दर्शाते हैं। इन नेत्रों से बिजली के समान किरणें निकलती रहती हैं। वहीं मां की नासिका के श्वास—प्रश्वास से अग्नि के समान भयंकर ज्वालाएं निकलती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये अपने दाहिने हाथ ( जो ऊपर की ओर उठा हुआ है) की वरमुद्रा से सभी को आशीर्वाद देती हैं। जबकि दाहिनी ओर का निचला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और बाईं ओर निचले हाथ में खड्ग (कटार) है।
इसलिए मां का नाम शुभंकारी भी है —
आपको बता दें धार्मिक मान्यता अनुसार मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक होने के बावजूद ये सदैव शुभ फल भी देती है। जिसके चलते इन्हें ‘शुभंकारी’ भी कहते है। ज्योतिषार्चों की मानें तो भक्तों को इनसे भयभीत अथवा आतंकित नहीं होना चाहिए।
पौराणिक मान्यताएं —
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुंभ और निशुंभ नामक दो दानवों ने देवलोक में तबाही मचा रखी थी। इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्रदेव की हार के पश्चात देवलोक पर दानवों का राज हो गया। तब समस्त देव अपना लोक वापस पाने की इच्छा लिए मां पार्वती के पास गए। जिस समय देवताओं ने देवी को अपनी व्यथा सुनाई। फिर देवी ने उनकी सहायता के लिए चण्डी को भेजा था।
जब देवी चण्डी दानवों से युद्ध के लिए गईं, तो दानवों ने उनसे लड़ने के लिए चण्ड-मुण्ड को भेजा। तब देवी ने मां कालरात्रि को उत्पन्न किया और देवी कालरात्रि ने उनका वध कर दिया। इसी कारण उनका एक नाम चामुण्डा भी पड़ा। इसके बाद उनसे लड़ने के लिए रक्तबीज नामक राक्षस आया। जो अपने शरीर को विशालकाय बनाने में सक्षम था और उसके रक्त (खून) के जमीन पर गिरने से भी एक नया दानव (रक्तबीज) पैदा हो रहा था। तब देवी ने उसे मारकर उसका रक्त पीने का विचार किया, ताकि न उसका खून ज़मीन पर गिरे और न ही कोई दूसरा पैदा हो। हालांकि कई धार्मिक पुस्तकों में माता कालरात्रि को लेकर बहुत सारे संदर्भ मिलते हैं। मां कालरात्रि के इस स्वरूप का वर्णन मां दुर्गा सप्तशति में भी वर्णित हैं।
पूजा विधि —
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार कालरात्रि का यह रूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाला है। तांत्रिक पूजा व साधना के लिए मां कालरात्रि का पूजन किया जाता है। इस दिन से भक्तों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है। सप्तमी की रात्रि को ‘सिद्धियों’ की रात भी कहा जाता है। इस दिन जो साधक कुण्डलिनी जागरण के लिए साधना में लगे होते हैं, वे इस दिन सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं। ध्यान रहें देवी की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए।
भोग: मां कालरात्रि को शहद का भोग लगाएं।
नोट : इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित है। बंसल न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता। अमल में लाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।