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CGMSC Scam: छत्तीसगढ़ के मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (ईओडब्ल्यू) और एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने राज्य सरकार से दो आईएएस अधिकारियों और छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन (सीजीएमएससी) के छह अधिकारियों के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी है।
यह जांच 400 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले से संबंधित है। हाल ही में, ईओडब्ल्यू-एसीबी ने मोक्षित कारपोरेशन के ठिकानों पर छापेमारी की थी, जो सीजीएमएससी के सप्लायर हैं, और शशांक चोपड़ा, मोक्षित कारपोरेशन के निदेशक, को गिरफ्तार किया था।
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ईओडब्ल्यू-एसीबी ने मोक्षित कॉरपोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा किया था गिरफ्तार[/caption]
छापे में कई महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद हुए, जिनकी जांच के बाद यह संभावना जताई जा रही है कि कुछ अधिकारी घोटाले में शामिल हो सकते हैं। इसके कारण, ईओडब्ल्यू-एसीबी ने अपनी जांच का दायरा बढ़ाने के लिए राज्य सरकार से अनुमति मांगी है।
भीम सिंह और चंद्रकांत वर्मा के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी
जिन दो आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी गई है, उनमें भीम सिंह और चंद्रकांत वर्मा के नाम शामिल हैं। भीम सिंह पूर्व में स्वास्थ्य संचालक और चंद्रकांत वर्मा सीजीएमएससी के एमडी के रूप में कार्यरत थे।
इसके अलावा, सीजीएमएससी के विभिन्न अन्य अधिकारियों पर भी जांच की जा सकती है। ईओडब्ल्यू-एसीबी की एफआईआर में यह भी बताया गया है कि सीजीएमएससी ने शासन की अनुमति के बिना लगभग 411 करोड़ रुपये की खरीदी की। इसमें से रीएजेंट्स को बिना वास्तविक आवश्यकता के और बिना प्रशासनिक अनुमोदन के खरीदा गया।
अधिक कीमत पर खरीदी गई EDTA ट्यूब
जांच में यह सामने आया कि मोक्षित कारपोरेशन से खरीदी गई EDTA ट्यूब की कीमत 2352 रुपये प्रति यूनिट थी, जबकि अन्य संस्थाएं इसे केवल 8.50 रुपये प्रति यूनिट में खरीद रही थीं।
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EDTA ट्यूब[/caption]
इसके अलावा, सीजीएमएससी ने बिना किसी मांग के 300 करोड़ रुपये के रीएजेंट्स को 200 से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भेज दिया, जहां उन उपकरणों का उपयोग ही नहीं हो सकता था।
इसके अलावा, इन रिएजेंट्स की एक्सपायरी डेट भी बहुत कम थी, और इन्हें सुरक्षित रखने के लिए 600 फ्रिज खरीदने की प्रक्रिया शुरू की गई।
5 लाख रुपये की मशीन 17 लाख में खरीदने का आरोप
एफआईआर के अनुसार, सीजीएमएससी ने मोक्षित कारपोरेशन से 17 लाख रुपये में सीबीसी मशीन खरीदी, जबकि इसी मशीन को निर्माता कंपनियां खुले बाजार में 5 लाख रुपये में बेचती हैं। यह भी सामने आया कि मोक्षित कारपोरेशन ने केमिकल्स और रिएजेंट्स को अधिकतम खुदरा मूल्य से भी अधिक कीमत पर बेचा और शासन के साथ लगभग 750 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की।
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