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CG Naxalites Surender: तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में चल रहे सुरक्षा अभियानों के बीच माओवादी संगठन को एक बड़ा झटका लगा है। तीन वरिष्ठ नक्सली नेताओं कुकंती वैंकटैया उर्फ रमेश उर्फ विकास, मोमिलिडला वेंकटराज उर्फ राजू उर्फ चंदू और तोडेम गंगा सोनू उर्फ सोनी ने आत्मसमर्पण कर दिया है।
इन तीनों ने तेलंगाना पुलिस (Telangana Police) के सामने आत्मसमर्पण किया। बताया जा रहा है कि ये लंबे समय से संगठन की हिंसक विचारधारा से परेशान थे और सामान्य जीवन की ओर लौटने की इच्छा रखते थे।
तीन दशक से अधिक समय तक सक्रिय रहे माओवादी
कुकंती वैंकटैया (Kukunti Venkataiah) दक्षिण बस्तर डिवीजन (South Bastar Division) का डिवीसीएम (DVCM) और वरिष्ठ माओवादी नेता रहा है। वह करीब 36 वर्षों से संगठन में सक्रिय था और कई बड़े नक्सली हमलों की रणनीति में शामिल रहा।
वहीं मोमिलिडला वेंकटराज (Momilidla Venkataraj) डिवीसीएम और एसीसीएम (ACCM) सदस्य रहा है, जो पिछले 35 वर्षों से भूमिगत जीवन जी रहा था।
तोडेम गंगा सोनू (Toddem Ganga Sonu) एससीएम (SCM) सदस्य और जनता सरकार प्रभारी रही, जो 21 वर्षों से माओवादी संगठन (Maoist Organization) से जुड़ी थी।
इन तीनों ने अपने आत्मसमर्पण के जरिए संगठन को यह संदेश दिया है कि अब हिंसा नहीं, बल्कि विकास और शांति ही स्थायी रास्ता है।
पुलिस के प्रयासों से बढ़ा विश्वास
सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि आत्मसमर्पण की यह सफलता तेलंगाना और छत्तीसगढ़ पुलिस (Chhattisgarh Police) के समन्वित अभियानों और पुनर्वास नीति (Rehabilitation Policy) में बढ़ते विश्वास का परिणाम है।
तेलंगाना पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, इन माओवादियों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए राज्य सरकार पुनर्वास योजना के तहत मदद देगी। इसमें आवास, रोजगार और शिक्षा जैसी सुविधाएं प्रदान की जाएंगी ताकि वे सामान्य जीवन जी सकें।
छत्तीसगढ़ में भी इसी मॉडल पर पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों नक्सलियों ने हथियार छोड़े हैं। अब यह आत्मसमर्पण अभियान नक्सली संगठन के शीर्ष नेतृत्व तक असर डाल रहा है।
आत्मसमर्पण से बदलता माओवादी नक्शा
विश्लेषकों का कहना है कि वरिष्ठ नेताओं के आत्मसमर्पण से संगठन की कार्यप्रणाली और मनोबल दोनों पर असर पड़ेगा। दक्षिण बस्तर और तेलंगाना की सीमा पर सक्रिय नक्सली समूह अब कमजोर स्थिति में पहुंच गए हैं।
यह आत्मसमर्पण इस बात का संकेत है कि पुलिस और प्रशासन की “ऑपरेशन शांति” (Operation Shanti) जैसी रणनीतियाँ असर दिखा रही हैं और संगठन के भीतर असंतोष गहराता जा रहा है।
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