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CG Ramavatar Jaggi Murder Case: गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच जस्टिस विक्रम नाथ (Justice Vikram Nath), जस्टिस संजय करोल (Justice Sanjay Karol) और जस्टिस संदीप मेहता (Justice Sandeep Mehta) ने रामअवतार जग्गी हत्याकांड में बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने सीबीआई (CBI) की अपील को स्वीकार कर लिया और मामला दोबारा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) में भेजने का निर्देश दिया, ताकि केस की मेरिट पर विस्तार से सुनवाई हो सके।
इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और मृतक के बेटे सतीश जग्गी की याचिकाएं खारिज कर दीं। अदालत ने कहा कि जब जांच केंद्रीय एजेंसी सीबीआई करती है, तो अपील का अधिकार राज्य सरकार के पास नहीं होता, बल्कि केंद्र सरकार के पास होता है। इसलिए राज्य सरकार की अपील अमान्य थी।
2003 में रायपुर में गोली मारकर हुई थी हत्या
4 जून 2003 की रात रायपुर (Raipur) में एनसीपी (NCP) नेता रामअवतार जग्गी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पहले जांच राज्य पुलिस ने की, लेकिन बाद में आरोप लगा कि जांच निष्पक्ष नहीं है। इसके बाद केस की जांच सीबीआई (CBI) को सौंप दी गई।
सीबीआई ने अपनी जांच रिपोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी (Ajit Jogi) के बेटे अमित जोगी (Amit Jogi) समेत कई अन्य पर हत्या और साजिश का आरोप लगाया। हालांकि, 31 मई 2007 को रायपुर की विशेष अदालत (Special Court Raipur) ने सबूतों के अभाव में अमित जोगी को बरी कर दिया, जबकि 28 अन्य आरोपियों को दोषी ठहराया गया।
हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर खारिज की थी अपील
राज्य सरकार, पीड़ित परिवार और सीबीआई — तीनों ने ही विशेष अदालत के फैसले के खिलाफ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अपील की थी। लेकिन हाईकोर्ट ने इन्हें तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया था। इसके बाद सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
सुप्रीम कोर्ट ने अब स्पष्ट किया कि भले ही सीबीआई की अपील में देरी हुई, लेकिन इतने गंभीर आपराधिक मामले को केवल तकनीकी कारणों से खत्म नहीं किया जा सकता। इसलिए कोर्ट ने सीबीआई की देरी को माफ करते हुए मामले को फिर से हाईकोर्ट में भेज दिया है।
पीड़ित को अपील का अधिकार 2009 के बाद मिला
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सतीश जग्गी की अपील इसलिए खारिज की गई क्योंकि उनके पिता की हत्या 2003 में हुई थी, और उस समय धारा 372 (Section 372 CrPC) लागू नहीं थी। यह धारा, जो पीड़ित को अपील का अधिकार देती है, वर्ष 2009 में लागू हुई थी।
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