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Bilaspur High Court: रायपुर में स्थित मेकाहारा अस्पताल के गायनिक वार्ड में यह मामला सामने आया है जहाँ दो प्रसूताओं (pregnant women) को एक ही बेड पर भर्ती कर दिया गया। यह स्थिति बीमारी या आपातकाल का मामला न हो कर स्वास्थ्य सेवा की मूलभूत जिम्मेदारी में चूक को दर्शाती है। चिकित्सा-उपचार के क्रम में बेडिंग (bed allocation) एवं मरीजों की व्यक्तिगत मर्यादा (dignity) का विशेष महत्व होता है, जिसे इस घटना ने सीधे चुनौती दी है।
न्यायिक कार्रवाई
इस प्रकरण पर Chhattisgarh High Court ने स्वतः संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस Ramesh Sinha की बेंच ने इस बात पर कड़ी नाराजगी जताई कि यदि राजधानी के प्रमुख सरकारी अस्पताल की स्थिति इतनी खराब है तो अन्य जिलों में हालात कितने भयावह हो सकते हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है और अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) को 6 नवंबर तक शपथ पत्र में जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।
स्वास्थ्य व्यवस्था पर उठे प्रश्न
- राजधानी के एक बड़े सरकारी अस्पताल में इस तरह की बेडिंग समस्या आने से यह बात साफ होती है कि बुनियादी संसाधन एवं प्रबंधन प्रणाली में गंभीर कमी है।
- जब यहाँ की स्थिति ऐसे है, तो ग्रामीण क्षेत्रों, दूरदराज अस्पतालों में मरीजों का क्या हाल होगा — यह सवाल स्वाभाविक है।
- अस्पताल में मरीज-भरती (admission) से लेकर देखभाल (care) तक के सभी चरणों में व्यवस्था और निगरानी (monitoring) की दरकार है।
क्या कहना चाहिए अस्पताल प्रशासन को?
तत्काल रूप से यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रत्येक प्रसुता को अलग बेड एवं पर्याप्त देखभाल मिले। अस्पताल के प्रसूति विभाग (maternity/pregnancy ward) में बेड-संचार (bed allocation) और मरीज-प्रवाह (patient flow) की समीक्षा-सुधार की जाए। स्वास्थ्य विभाग को यह देखें कि अस्पताल का स्टाफ-संख्या (staffing), संसाधन (resources) और बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर (infrastructure) पर्याप्त है क्या नहीं। मरीजों की गरिमा (human dignity) एवं सुरक्षा (safety) प्राथमिकता होनी चाहिए।
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