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छत्तीसगढ़ में दिव्यांगों के नाम पर 1000 करोड़ का घोटाला: CBI जांच के आदेश, पूर्व मंत्री और 7 रिटायर्ड IAS की होगी जांच

Chhattisgarh (CG) PRC Rehabilitation Center Rs 1000 Crore Scam Case: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दिव्यांगों के कल्याण के नाम पर संचालित स्टेट रिसोर्स सेंटर और फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (PRC) में हुए 1000 करोड़ के घोटाले की CBI जांच के आदेश दिए हैं।

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BP Shrivastava
CG 1000 Crore Scam

CG 1000 Crore Scam

CG 1000 Crore Scam: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दिव्यांगों के कल्याण के नाम पर संचालित स्टेट रिसोर्स सेंटर (State Resource Center) और फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (PRC) में हुए 1000 करोड़ के घोटाले की CBI जांच के आदेश दिए हैं। इसमें पूर्व मंत्री और 7 रिटायर्ड आईएएस अफसर जांच के दायरे में आए हैं।

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जस्टिस प्रार्थ प्रतीम साहू और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने कहा, यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर सिस्टमेटिक करप्शन का केस है। जिसमें फर्जी कर्मचारियों के नाम पर वेतन निकालकर सरकारी फंड की लूट की गई।

हाईकोर्ट ने यह की टिप्पणी

हाईकोर्ट ने कहा कि इतनी बड़ी वित्तीय अनियमितताओं को सिर्फ प्रशासनिक गलती बताना सही नहीं है। राज्य सरकार अपने उच्च अधिकारियों को बचाने की कोशिश कर रही है। जांच अधूरी है।

यह मामला केवल दिव्यांगों के अधिकारों से नहीं जुड़ा है, बल्कि करोड़ों रुपए की सार्वजनिक धनराशि के दुरुपयोग से भी संबंधित है। निष्पक्ष जांच के बिना दोषियों तक पहुंचना संभव नहीं है।

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डिवीजन बेंच ने सीबीआई (CBI) को पहले से दर्ज एफआईआर के आधार पर दस्तावेज जब्त करने और जांच को जल्दी पूरा करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार और उसके विभाग अब तक मामले की गहराई में जाने और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में असफल रहे हैं।

क्या है पूरा मामला ?

असल में, साल 2004 में छत्तीसगढ़ सरकार ने दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए स्टेट रिसोर्स सेंटर (ARC) नाम से एक स्वशासी संस्था की स्थापना की। इसका मकसद तकनीकी और प्रशिक्षण सहायता के जरिए दिव्यांगों का पुनर्वास करना था।

2012 में इसी के तहत फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (PRRC) की स्थापना की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य दिव्यांगों को कृत्रिम अंग और अन्य चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करना था।
जब सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मिले दस्तावेजों से यह खुलासा हुआ कि ये संस्थाएं केवल कागजों पर ही थीं और इनके जरिए सरकार से करोड़ों रुपए का अनुदान लेकर कथित गड़बड़ी की जा रही थी। शिकायतों के अनुसार, कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारी इन संस्थाओं में पदाधिकारी के रूप में शामिल थे।

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