जगदलपुर से रजत वाजपेयी की रिपोर्ट
CG News: रियासतकाल से लोकतांत्रिक परंपराओं का निर्वाह करने वाला मुरिया दरबार, जिसे बस्तर की संसद भी कहा जाता है। जनता के राज में अपनी मूल आत्मा खो चुका है।
समस्याओं को मुरिया दरबार के सामने रखते है
मुरिया दरबार बस्तर दशहरा पर्व का एक प्रमुख विधान है। इसमें बस्तर के सभी 84 परगनों के मांझी-चालकी, मुखिया, मेंबर-मेंबरिन अपने क्षेत्र की समस्याओं को शासकों के के सामने रखते हैं। राजतंत्र में राजा इनकी समस्याओं का समाधान त्वरित निर्णय लेकर यहां किया करते थे।
बस्तर की संसद
यही वजह है कि इसे बस्तर की संसद माना गया था, लेकिन यह परंपरा आज औपचारिकता बनकर रह गई है। सिरहासार भवन में 70 से अधिक मांझी-मुखिया, मेंबर -मेंबरिन में से केवल 4 मांझियों को ही कुल 13 मिनट तक बोलने का अवसर मिला। बाकी समय औपचारिकता पूरी करने में निकल गया।
मुरिया दरबार का स्वरूप भी बदला
दशहरे के लिहाज से 7 जिलों वाला बस्तर आज भी एक जिला है, लेकिन इस पर्व पर अब तंत्रवाद हावी है। बदलते वक्त के साथ मुरिया दरबार का स्वरूप भी बदल गया है। इस बार इसमें आचार संहिता का साया भी नजर आया।
इस बार तो दूर-दराज से आए पदाधिकारियों को पुलिस के जवानों ने सिरहासार भवन में घुसने तक नहीं दिया।
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