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CG Kisan Fake Withdrawal: किसान के खाते से 7.91 लाख की फर्जी निकासी, धान खरीदी घोटाले से भी जुड़ा मामला

CG Kisan Fake Withdrawal: छत्तीसगढ़ में सहकारी बैंक घोटाला उजागर हुआ है। किसान खेमा पांडे के खाते से 7.91 लाख की फर्जी निकासी और 2880 बोरा धान गायब मिला।

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Shashank Kumar
CG Kisan Fake Withdrawal

CG Kisan Fake Withdrawal

हाइलाइट्स

  • किसान के खाते से 7.91 लाख गायब

  • 2880 बोरा धान का हिसाब नहीं

  • अफसरों की मिलीभगत पर उठे सवाल

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CG Kisan Fake Withdrawal: छत्तीसगढ़ में सहकारिता व्यवस्था (Cooperative Banking System) पर बड़ा सवाल खड़ा करने वाला मामला सामने आया है। देवभोग जिला सहकारी बैंक (District Cooperative Bank) से जुड़े दीवानमुड़ा सहकारी समिति में किसान खेमा पांडे के खाते से 7.91 लाख रुपए की फर्जी निकासी (Fraudulent Withdrawal) का मामला उजागर हुआ है। इस प्रकरण में समिति के कंप्यूटर ऑपरेटर ऋतिक निधि को बर्खास्त (Termination Action) कर दिया गया है।

लेकिन यह मामला सिर्फ एक फर्जी निकासी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें धान खरीदी (Paddy Procurement Scam) से जुड़ी गड़बड़ी भी सामने आई है। जांच में यह खुलासा हुआ है कि खरीदी केंद्र से करीब 2880 बोरा धान (जिसकी कीमत लगभग 32 लाख रुपए है) गायब पाया गया।

[caption id="attachment_892088" align="alignnone" width="1201"]CG Kisan Fake Withdrawal CG Kisan Fake Withdrawal[/caption]

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कैसे हुआ फर्जी विड्रॉल ?

किसान खेमा पांडे ने जनवरी माह में 255.20 क्विंटल धान की बिक्री की थी। इसके एवज में देवभोग सहकारी बैंक में उनके खाते में 7.91 लाख रुपए जमा भी हो गए थे। लेकिन फरवरी माह में यह रकम गोहरापदर ब्रांच से नियम विरुद्ध विड्रॉल (Illegal Withdrawal) के जरिए निकाल ली गई।

अप्रैल में जब किसान रकम निकालने बैंक पहुंचे, तब उन्हें पता चला कि उनके खाते से पैसे गायब हैं। किसान ने इसकी शिकायत कलेक्टर के जन दर्शन कार्यक्रम में की, लेकिन प्रारंभिक स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

प्रशासन कब जागा?

31 मई को जब मामला मीडिया में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ तो प्रशासन हरकत में आया। सहकारिता विभाग (Cooperation Department) ने जांच कमेटी बनाई। जांच में कंप्यूटर ऑपरेटर ऋतिक निधि ने खुद स्वीकार किया कि उसने निकासी की थी।

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हालांकि, किसानों का कहना है कि केवल ऑपरेटर पर कार्रवाई करना पर्याप्त नहीं है। क्योंकि यह रकम और धान की गड़बड़ी बिना बैंक मैनेजर और सहायक लेखाकार की मिलीभगत (Collusion in Bank Fraud) के संभव ही नहीं थी।

राशि की आंशिक वापसी कैसे हुई?

प्रशासनिक दबाव बढ़ने के बाद, गोहरापदर ब्रांच के सहायक लेखापाल दीपराज मसीह ने जून में किसान के खाते में 5.91 लाख रुपए जमा कराए। वहीं, तत्कालीन बैंक मैनेजर न्यानसिंह ठाकुर ने भी 2 लाख रुपए वापस जमा किए। इस तरह किसान के खाते में पैसा तो वापस आया, लेकिन असली सवाल यह है कि जवाबदार अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

धान खरीदी घोटाले से जुड़ा मामला

जांच रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि दीवानमुड़ा सहकारी समिति में 2880 बोरा धान का हिसाब नहीं मिल रहा। यह करीब 32 लाख रुपए का 1120 क्विंटल धान था। माना जा रहा है कि यह फर्जी निकासी (Bogus Withdrawal) भी इसी धान खरीदी घोटाले (Paddy Scam) का हिस्सा हो सकती है।

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यहां तक कि समिति कर्मचारियों का 11 माह से वेतन रोका गया है और खरीदी-रखरखाव के लिए मिले लाखों रुपए का खर्च भी अटकाया गया है। यह संकेत देता है कि नीचे से ऊपर तक गड़बड़ी फैली हुई है।

अधिकारियों का पक्ष

जिला सहकारी बैंक रायपुर की सीईओ अपेक्षा व्यास ने कहा कि मामला जिला स्तर पर नोडल और सहायक पंजीयक देख रहे हैं। रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई होगी। वहीं, नोडल अधिकारी शिवेश मिश्रा ने बताया कि फर्जी आहरण का पता चलते ही मुख्यालय के निर्देश पर जिम्मेदार मैनेजर और लेखापाल से रकम की भरपाई कराई गई। लेकिन सवाल उठ रहा है कि जब बैंक अफसरों की मिलीभगत साफ दिख रही है, तब केवल कंप्यूटर ऑपरेटर पर ही क्यों कार्रवाई की गई?

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गड़बड़ी की बड़ी परतें

इस पूरे मामले में कई सवाल अनुत्तरित हैं -

  • जब 2880 बोरा धान ही गायब हो गया, तो शॉर्टेज की भरपाई कैसे की गई?
  • किसान खेमा पांडे जैसे अन्य किसानों के नाम पर भी बोगस खरीदी-बिक्री (Bogus Transactions) कर करीब 1 करोड़ रुपए से ज्यादा की गड़बड़ी की आशंका क्यों नहीं जांची गई?
  • कर्मचारियों के वेतन और रखरखाव के खर्च रोकने की असली वजह क्या है?

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