Advertisment

CG High Court : पामगढ़ शराब भट्ठी कांड में 21 साल बाद 14 आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा- 'सिर्फ भीड़ में होना, अपराध नहीं'

CG High Court; छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 21 साल पुराने पामगढ़ शराब भट्ठी कांड में 14 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। कोर्ट ने साक्ष्य को अपर्याप्त माना।

author-image
Shashank Kumar
CG High Court

CG High Court

हाइलाइट्स 

  • 21 साल बाद मिला इंसाफ

  • सबूतों की कमी से बरी

  • कोर्ट ने रद्द की उम्रकैद

CG High Court : छत्तीसगढ़ की न्यायपालिका में एक अहम मोड़ आया है, जब राज्य के हाईकोर्ट ने 21 साल पुराने पामगढ़ शराब भट्ठी हत्याकांड में सभी 14 आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने इस निर्णय में कहा कि “सिर्फ किसी भीड़ में मौजूद होना, किसी व्यक्ति को दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।”

Advertisment

2004 के इस चर्चित मामले में, सेशन कोर्ट ने सभी 14 लोगों को आजीवन कारावास (उम्रकैद) की सजा दी थी। लेकिन अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने फैसले को पलटते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष “न तो आरोपियों की भूमिका साबित कर सका, न ही उनकी पहचान”।

पामगढ़ में शिक्षक की मौत के बाद भड़की हिंसा 

मामला 9 दिसंबर 2004 का है, जब पामगढ़ के चांदीपारा में आयोजित राउत मड़ई मेले के दौरान एक स्थानीय शिक्षक महेश खरे उर्फ गुरुजी की संदिग्ध हालातों में मौत हो गई थी। यह घटना पूरे क्षेत्र में तनाव फैला गई और अगले ही दिन गुस्साई भीड़ ने पामगढ़ शराब भट्ठी पर हमला कर दिया।

इस हिंसा के दौरान भीड़ ने शराब दुकान में तोड़फोड़, आगजनी और डिस्टिलरी मैनेजर भोला गुप्ता की पिटाई कर दी थी, जिससे उनकी मौत हो गई। इस मामले में पुलिस ने 14 लोगों को आरोपी बनाकर गिरफ्त में लिया और ट्रायल के बाद सेशन कोर्ट ने सभी को आजीवन कारावास की सजा सुना दी।

Advertisment

हाईकोर्ट ने पलटा फैसला 

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने इस मामले में दिए गए निचली अदालत के फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “अभियोजन पक्ष आरोपियों की भूमिका, उपस्थिति और उनकी पहचान को अदालत में ठोस रूप से सिद्ध नहीं कर सका। अधिकांश गवाह शत्रुतापूर्ण हो गए और किसी ने भी आरोपियों की घटना स्थल पर स्पष्ट पहचान नहीं की।”

इतना ही नहीं, एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लैब) रिपोर्ट में भी उन डंडों और कपड़ों पर मिले खून के नमूनों का मृतक के डीएनए से मेल नहीं हुआ, जो घटना स्थल से जब्त किए गए थे। कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को सिर्फ इस आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता कि वह किसी हिंसक भीड़ का हिस्सा था, जब तक यह सिद्ध न हो कि उसने हिंसा में सक्रिय भागीदारी की थी।

ये भी पढ़ें:  बंसल न्यूज की खबर का बड़ा असर: मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के PA पर FIR, कांग्रेस ने उठाए तीखे सवाल, जानें पूरा मामला

Advertisment

'संदेह का लाभ' देकर कोर्ट ने सभी 14 लोगों को किया बरी 

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि न्याय की मूल भावना यही है कि जब तक संदेह के परे आरोप सिद्ध न हो, किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए अदालत ने सभी 14 आरोपियों को “संदेह का लाभ” देते हुए बाइज्जत बरी कर दिया।

इस फैसले से उन परिवारों को राहत मिली है जो बीते दो दशकों से कानूनी लड़ाई में उलझे हुए थे। वहीं, यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था के उस स्तंभ को भी मजबूत करता है जो कहता है कि “100 दोषी बच जाएं चलेगा, पर एक निर्दोष को सजा न मिले।”

न्यायिक प्रक्रिया की गति पर भी उठे सवाल 

हालांकि इस फैसले के साथ ही न्यायिक प्रक्रिया की धीमी रफ्तार भी सवालों के घेरे में है। एक ऐसा मामला, जिसमें 14 लोगों को 21 साल तक कानूनी अनिश्चितता और मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ा- यह स्पष्ट करता है कि “न्याय में देरी, न्याय से इनकार” के सिद्धांत को और गंभीरता से लेने की जरूरत है।

Advertisment

ये भी पढ़ें:  CG Viral Video: एक वृक्ष सौ पुत्र समाना.. 20 साल पुराने पीपल पेड़ के कटने से फूट-फूटकर रो पड़ी माई, देखें वायरल वीडियो

CG HIGH COURT mob lynching case Chhattisgarh High Court verdict Pamgarh liquor distillery case 14 accused acquitted liquor shop murder case court cancels sentence 21-year-old case
Advertisment
WhatsApp Icon चैनल से जुड़ें