CG High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक बार फिर सरकारी विभागों की सुस्त कार्यप्रणाली और लालफीताशाही पर कड़ा रुख अपनाया है। महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से एक सेवानिवृत्त महिला कर्मचारी के खिलाफ की गई अपील को कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि विभागों में ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ काम करने की जरूरत है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की खंडपीठ ने कहा कि सरकारी दफ्तरों में फाइलें महीनों और वर्षों तक लंबित रहना प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम है, और यह जनता के अधिकारों के साथ अन्याय है। कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसी देरी को अब "सामान्य प्रक्रिया" कहकर माफ नहीं किया जाएगा।
107 दिन की देरी पर कोर्ट ने जताई नाराजगी
इस मामले में विभाग ने हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश के 107 दिन बाद अपील दायर की थी। विभाग ने अपनी सफाई में फाइल प्रक्रिया, आदेश जारी होने में देरी और अन्य औपचारिकताओं का हवाला दिया। राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार एक बड़ा संगठन है, जहां प्रक्रियागत देरी स्वाभाविक है।
लेकिन बेंच ने इस तर्क को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि “देरी के लिए साधारण स्पष्टीकरण अब स्वीकार नहीं होगा। सरकारी अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन समयबद्ध और जिम्मेदारीपूर्वक करें।” कोर्ट ने यह भी कहा कि "देरी की माफी कोई अधिकार नहीं, बल्कि अपवाद है"- इसे विभाग अपनी लापरवाही के बचाव के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते।
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‘कानून सबके लिए समान’- कोर्ट की सख्त टिप्पणी
हाईकोर्ट ने कहा कि सभी सरकारी निकायों और संस्थाओं को यह समझना होगा कि उनके कर्तव्यों का पालन पूर्ण लगन, ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ किया जाना चाहिए। कानून सभी के लिए समान है- इसे कुछ लोगों या विभागों के हित में तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता।
इस सख्त टिप्पणी के बाद एक बार फिर सरकारी विभागों की कार्यसंस्कृति पर सवाल उठे हैं। कोर्ट के इस रुख को प्रशासनिक जवाबदेही और शासन में पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाला कदम माना जा रहा है।
ये भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में चिकित्सा विभाग में 1009 नई भर्तियों की मंजूरी: राज्य सरकार का बड़ा फैसला- नए मेडिकल कॉलेजों को सीधा लाभ
CG: सरकारी विभागों की कार्यशैली पर HC सख्त, कहा- ईमानदारी और प्रतिबद्धता से करें काम, रिटायर्ड कर्मी के खिलाफ अपील खारिज
CG High Court : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ की गई देरी से अपील खारिज कर दी।
CG High Court
CG High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक बार फिर सरकारी विभागों की सुस्त कार्यप्रणाली और लालफीताशाही पर कड़ा रुख अपनाया है। महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से एक सेवानिवृत्त महिला कर्मचारी के खिलाफ की गई अपील को कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि विभागों में ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ काम करने की जरूरत है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की खंडपीठ ने कहा कि सरकारी दफ्तरों में फाइलें महीनों और वर्षों तक लंबित रहना प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम है, और यह जनता के अधिकारों के साथ अन्याय है। कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसी देरी को अब "सामान्य प्रक्रिया" कहकर माफ नहीं किया जाएगा।
107 दिन की देरी पर कोर्ट ने जताई नाराजगी
इस मामले में विभाग ने हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश के 107 दिन बाद अपील दायर की थी। विभाग ने अपनी सफाई में फाइल प्रक्रिया, आदेश जारी होने में देरी और अन्य औपचारिकताओं का हवाला दिया। राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार एक बड़ा संगठन है, जहां प्रक्रियागत देरी स्वाभाविक है।
लेकिन बेंच ने इस तर्क को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि “देरी के लिए साधारण स्पष्टीकरण अब स्वीकार नहीं होगा। सरकारी अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन समयबद्ध और जिम्मेदारीपूर्वक करें।” कोर्ट ने यह भी कहा कि "देरी की माफी कोई अधिकार नहीं, बल्कि अपवाद है"- इसे विभाग अपनी लापरवाही के बचाव के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते।
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‘कानून सबके लिए समान’- कोर्ट की सख्त टिप्पणी
हाईकोर्ट ने कहा कि सभी सरकारी निकायों और संस्थाओं को यह समझना होगा कि उनके कर्तव्यों का पालन पूर्ण लगन, ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ किया जाना चाहिए। कानून सभी के लिए समान है- इसे कुछ लोगों या विभागों के हित में तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता।
इस सख्त टिप्पणी के बाद एक बार फिर सरकारी विभागों की कार्यसंस्कृति पर सवाल उठे हैं। कोर्ट के इस रुख को प्रशासनिक जवाबदेही और शासन में पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाला कदम माना जा रहा है।
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