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CG High Court: श्मशान घाटों की बदहाली पर हाईकोर्ट की सख्ती, अंतिम विदाई का सम्मान जरूरी, राज्य सरकार को सुधार के निर्देश

CG High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने श्मशान घाटों की बदहाली पर चिंता जताई है और राज्य सरकार को अंतिम संस्कार के सम्मान के लिए व्यापक सुधार के निर्देश दिए हैं।

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Shashank Kumar
CG High Court

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हाइलाइट्स 

  • हाईकोर्ट ने श्मशान घाट सुधार दिए निर्देश

  • अंतिम संस्कार सम्मान संविधानिक अधिकार

  • पंचायत और सरकार को कड़ा आदेश

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CG High Court: छत्तीसगढ़ में श्मशान घाटों (cremation grounds) की दुर्दशा पर हाईकोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21 – Right to Life and Dignity) के तहत अंतिम संस्कार का अधिकार भी एक सम्मानजनक जीवन का विस्तार माना गया है। हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि मृत्यु के बाद भी व्यक्ति को सम्मान के साथ विदाई मिलनी चाहिए, और इसके लिए स्वच्छ व सुरक्षित श्मशान घाट आवश्यक हैं।

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अंतिम संस्कार भी एक मौलिक अधिकार

राज्य के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में श्मशान घाटों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस डिवीजन बेंच ने इस संवेदनशील मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि अंतिम संस्कार केवल एक धार्मिक या सामाजिक कर्तव्य नहीं, बल्कि मृत व्यक्ति और उसके परिजनों का संवैधानिक अधिकार (constitutional right) है। ऐसे स्थानों पर गंदगी, बदबू, बुनियादी सुविधाओं की कमी और असुरक्षित माहौल सरकार की संविधान के प्रति जवाबदेही पर सवाल खड़ा करता है।

[caption id="attachment_905252" align="alignnone" width="1108"]CG High Court श्मशान घाटों की बदहाली[/caption]

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मुक्तिधाम की हालत देख भड़के चीफ जस्टिस

इस मामले में विशेष बात यह रही कि चीफ जस्टिस स्वयं बिलासपुर जिले के रहंगी ग्राम पंचायत स्थित एक मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुंचे थे, जहां की जर्जर स्थिति देख उन्होंने अदालत की अवकाश अवधि में ही इस मुद्दे को उठाया। न सिर्फ वहां की अस्वच्छता, बल्कि सड़क मार्ग की दुर्दशा, सुरक्षा की कमी, और मूलभूत सुविधाओं का अभाव देख अदालत ने इसे सीधे तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करार दिया। मुक्तिधाम में चारदीवारी नहीं, कोई स्पष्ट परिधि नहीं, खाइयों से भरा रास्ता, बारिश में जलभराव, और झाड़ियों में सांपों व कीड़ों का खतरा — ये सब गंभीर चिंताओं को जन्म देते हैं।

मुक्तिधाम में शराब की बोतलें, पॉलीथिन, कूड़ा- कचरा

मुक्तिधाम में दाह संस्कार के बाद छोड़े गए कपड़े, प्लास्टिक बैग, शराब की बोतलें और अन्य कचरे ने पवित्र स्थल की गरिमा को पूरी तरह धूमिल कर दिया है। बैठने की व्यवस्था, शेड, शौचालय, प्रकाश व्यवस्था, और यहां तक कि सहायता के लिए कोई कर्मचारी या संपर्क नंबर भी उपलब्ध नहीं है। यह सब कुछ एक सभ्य समाज के लिए शर्मनाक स्थिति दर्शाता है।

राज्य सरकार को दिए गए अहम निर्देश

कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देशित किया है कि वह हर जिले के अंत्येष्टि स्थलों की स्थिति की तत्काल समीक्षा करे और व्यापक सुधार अभियान (cleanliness and infrastructure improvement drive) शुरू करे।

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[caption id="attachment_905255" align="alignnone" width="1116"]CG High Court मुक्तिधाम में कूड़ा- कचरा[/caption]

कोर्ट के आदेशानुसार:

  • नगर निगम और ग्राम पंचायतें सफाई व्यवस्था तत्काल सुधारें।
  • सभी श्मशान घाटों की स्थिति की निगरानी के लिए कमेटी गठित की जाए।
  • प्रत्येक स्थल पर शिकायत दर्ज करने की सुविधा (grievance redressal mechanism) और हेल्पलाइन नंबर प्रदर्शित हों।
  • अधिकारियों के संपर्क नंबर, शेड, टॉयलेट, डस्टबिन जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
  • हर श्मशान घाट पर दाह/दफन रजिस्टर रखा जाए- चाहे डिजिटल हो या मैनुअल।
  • राज्य सरकार सभी श्मशान घाटों के उन्नयन के लिए एक रोडमैप और न्यूनतम दिशानिर्देश (minimum standard guidelines) तय करे।

सचिव, मुख्य सचिव और कलेक्टर को तलब

कोर्ट ने राज्य सरकार के पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग के सचिव, राज्य के मुख्य सचिव, और बिलासपुर कलेक्टर को व्यक्तिगत शपथपत्र (affidavit) दाखिल करने को कहा है। इसके साथ ही पंचायत विभाग को इस मामले में नवीन पक्षकार (respondent) बनाया गया है, ताकि इस मुद्दे पर जवाबदेही तय की जा सके।

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क्या कहता है संविधान?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Article 21) न सिर्फ जीवन का अधिकार देता है, बल्कि जीवन के हर पहलू में गरिमा बनाए रखने की गारंटी देता है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट पहले भी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि मृत्यु के बाद सम्मानजनक अंतिम संस्कार इस अनुच्छेद का हिस्सा है। इसीलिए कोर्ट का कहना है कि श्मशान घाट की बदहाली सिर्फ एक स्थानीय समस्या नहीं, बल्कि यह संविधान के उल्लंघन का मामला है।

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