Advertisment

CG High Court : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का अहम फैसला, 1956 से पहले निधन हुए पिता की संपत्ति पर बेटियों का हक नहीं

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मिताक्षरा कानून के तहत निर्णय दिया कि 1956 से पहले मरने वाले हिंदू पिता की संपत्ति में पुत्री को हक नहीं मिलेगा, यदि पुत्र जीवित हैं। जानिए इस अहम फैसले का पूरा सच।

author-image
Shashank Kumar
CG High Court:छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना पति को पालतू चूहा कहना मानसिक क्रूरता, पत्नी को 5 लाख गुजारा भत्ता देने का आदेश

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

CG High Court : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मिताक्षरा कानून के तहत एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि यदि किसी हिंदू पिता की मृत्यु 1956 से पहले हुई हो और उसके पुत्र जीवित हों, तो पुत्री को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलेगा। यह निर्णय मिताक्षरा विधि के तहत पुत्र की अनुपस्थिति में पुत्री के अधिकार की भी व्याख्या करता है। इस फैसले ने पुराने उत्तराधिकार कानून की गहराई से व्याख्या करते हुए बेटियों के अधिकारों को सीमित किया है।

Advertisment

मिताक्षरा कानून क्या है?

मिताक्षरा कानून प्राचीन हिंदू उत्तराधिकार प्रणाली का हिस्सा है, जो पुरुष वंश पर आधारित है। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की एकल पीठ ने कहा कि मिताक्षरा कानून के अनुसार, पुत्री को पिता की स्व-अर्जित संपत्ति में तब तक कोई हिस्सा नहीं मिलेगा जब तक पुत्र जीवित हैं। पुरुष की संपत्ति केवल उसके पुरुष वंशज को ही विरासत में मिलती है। केवल तब, जब पुत्र नहीं होते, तब अन्य उत्तराधिकारी जैसे पुत्री या पत्नी को अधिकार मिल सकता है। यह कानून 1956 में लागू हुए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम से पहले के मामलों पर लागू होता है।

मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले में भाई-बहन के बीच संपत्ति का विवाद था। उनके पिता की मृत्यु 1950-51 के आसपास हुई थी। विवाद तब उत्पन्न हुआ जब बहन ने पिता की संपत्ति में अपने हिस्से का दावा किया। इसके बाद क्षेत्राधिकारी के सामने संपत्ति के दाखिल-खारिज के आवेदन पर बहन की आपत्ति को खारिज कर दिया गया। अपीलकर्ता बहन ने सिविल कोर्ट में वाद दायर किया, लेकिन सिविल जज ने यह दावा खारिज कर दिया कि पिता की मृत्यु 1956 से पहले हुई थी, इसलिए मामला मिताक्षरा कानून के तहत आएगा और अधिनियम, 1956 के संशोधन का लाभ नहीं मिलेगा।

कोर्ट में अपील और अंतिम निर्णय

सिविल जज के फैसले के खिलाफ अपील की गई, लेकिन परिणाम में कोई बदलाव नहीं हुआ। इसके बाद मामला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट पहुंचा जहां सीपीसी की धारा 100 के तहत द्वितीय अपील दाखिल की गई। कोर्ट ने इस मामले में तीन महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न निर्धारित किए, जिनमें यह शामिल था कि क्या 1956 से पहले हुई मृत्यु के मामले में पुत्री को उत्तराधिकार मिलेगा या नहीं।

Advertisment

कोर्ट ने बहस के दौरान यह भी रेखांकित किया कि अपीलकर्ता के पिता की मृत्यु लगभग साठ वर्ष पहले हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मिताक्षरा विधि उस व्यक्ति पर लागू होती है जिसकी मृत्यु 1956 से पहले हुई हो और जो प्राचीन मिताक्षरा कानून के अंतर्गत आता हो। इसके अनुसार पुत्री का अधिकार पुत्र की अनुपस्थिति में ही माना जाएगा।

ये भी पढ़ें: Breaking News: गरीब रथ ट्रेन में भीषण आग, लुधियाना से दिल्ली जा रही ट्रेन में सुरक्षित निकाले सभी यात्री

पुत्र को मिलेगा ही संपत्ति

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मिताक्षरा कानून के तहत 1956 से पहले मृत्यु होने वाले पुरुष की पृथक संपत्ति पुत्र को ही पूरी तरह मिलती है। पुत्री या पत्नी को केवल तभी विरासत में हिस्सा मिलेगा जब पुरुष संतान न हो। साथ ही, 1929 के हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम ने पुत्र के अधिकारों को कम नहीं किया है। इसीलिए बहन के सभी दावे अस्वीकार कर दिए गए।

Advertisment

ये भी पढ़ें:  CG Weather Update: छत्तीसगढ़ में दो दिन शुष्क रहेगा मौसम, 20 अक्टूबर से बदलेगा मिजाज, गरज-चमक के साथ बारिश के आसार

CG HIGH COURT chhattisgarh high court property dispute Mitakshara Law Father's Property Daughters' Rights Death before Hindu Succession Act 1956
Advertisment
WhatsApp Icon चैनल से जुड़ें