जगदलपुर से रजत वाजपेयी की रिपोर्ट। नक्सल प्रभावित बस्तर विधानसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता हैं। राजनीति में रसूख रखने वाले कश्यप परिवार का गृह क्षेत्र होने के बावजूद यहां भाजपा कमजोर पड़ती रही है।
कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी लखेश्वर बघेल को उनकी सरलता का लाभ मिलता है, जबकि भाजपा के घोषित प्रत्याशी मनीराम कश्यप को इलाके में सक्रियता के कारण लोग पसंद करते हैं।
भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला
यही वजह है कि हर बार के चुनावों में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच ही होता है। पिछली 2 बार से यहां कांग्रेस का कब्जा है। विधानसभा में जातिगत समीकरण का प्रभाव नहीं है।
2018 में भारी बहुम के साथ जीत हासिल करने वाले लखेश्वर बघेल को कांग्रेस सरकार ने बस्तर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया है। साथ ही वह कांग्रेस के सीनियर लीडरों में भी गिने जाते हैं।
दोनों दलों के नेता कर रहे जीत का दावा
इस बार के चुनाव में भी लखेश्वर रिकॉर्ड मतों से जीत के दावे कर रहे हैं। वहीं भाजपा प्रत्याशी के समर्थक कहते हैं कि लोग फिलहाल कुछ नहीं कह रहे, लेकिन बटन दबाकर कांग्रेसियों की निष्क्रियता का जवाब देंगे। दोनों ही प्रमुख दल के संभावित प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नजर आ रहे हैं।
इन नेताओं को दी जाती है प्राथमिकता
बस्तर विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा आदिवासी वोटरों की संख्या है। यही वजह है कि इस विधानसभा सीट पर आदिवासी नेताओं को प्राथमिकता दी जाती है।
बस्तर में ऐसी है भौगोलिक स्थित
इस विधानसभा की खासियत यह है कि इसका एक बड़ा भू-भाग सीमाई प्रांत ओड़िशा से लगा हुआ है और सबसे ज्यादा एजुकेटेड लोग यहां निवास करते हैं।
दक्षिण में इंद्रावती नदी से यह विधासभा क्षेत्र लगा हुआ है, जिस वजह से कुड़कनार, कुदालगांव और चकवा के किसान इस नदी पर आश्रित हैं। सिंचाई में यहां के किसानों को काफी ज्यादा फायदा मिलता है।
उत्तर में नारंगी नदी इस विधानसभा की सरहद बनाती है। इस नदी से भी किसान अपने खेतों को सींचते हैं और खुशहाल हो रहे हैं।
परंपरागत खेती के अलावा आधुनिक और वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने के मामले में भी इस विधानसभा ने बस्तर के दूसरे इलाकों को काफी पीछे छोड़ दिया है।
इन क्षेत्रों में है पानी की किल्लत
इस विधानसभा के कुछ क्षेत्र जैसे भोंड पंचायत के ऊपरी हिस्से में पानी और बिजली की सबसे ज्यादा समस्या बनी हुई है। हालांकि यह इलाका ड्राई जोन के रूप में पहचान रखता है।
नल-जल योजना की स्वीकृति मिल जाने से लोग अब इसके पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि पीने के पानी की किल्लत दूर हो सके। बीते कई दशकों से भोंड और इसकी आसपास की पंचायतों में पानी की समस्या विकराल रही है।
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