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ED action on IAS-IPS
ED action on IAS-IPS: छत्तीसगढ़ में हुए बहुचर्चित कोल लेवी घोटाले (coal levy scam) में प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate - ED) ने अब बड़ी प्रशासनिक कार्रवाई की सिफारिश कर दी है। ईडी ने छत्तीसगढ़ की साय सरकार को पत्र लिखकर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act, 1988) के तहत 10 वरिष्ठ IAS और IPS अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की सिफारिश की है। यह पत्र राज्य के मुख्य सचिव और आर्थिक अपराध शाखा (EOW) को भेजा गया है। इस कदम से प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है।
ईडी की जांच में हुआ खुलासा
जांच एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि 15 जुलाई 2020 को तत्कालीन खनिज निदेशक और अब निलंबित IAS अधिकारी समीर विश्नोई (Sameer Vishnoi) द्वारा एक आदेश जारी किया गया, जिसमें ऑनलाइन कोल परमिट सिस्टम को ऑफलाइन मोड में बदल दिया गया। यहीं से कथित अवैध वसूली और भ्रष्टाचार का सिलसिला शुरू हुआ।
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ED action on IAS-IPS[/caption]
ईडी के अनुसार, यह बदलाव सोची-समझी साजिश (criminal conspiracy) के तहत किया गया था, ताकि कोयला व्यवसायियों से प्रति टन के हिसाब से अवैध लेवी (illegal coal levy collection) वसूली की जा सके। आरोप है कि यह नेटवर्क प्रदेशभर में फैला हुआ था और इसमें नौकरशाहों से लेकर राजनीतिक स्तर तक मिलीभगत थी।
सूर्यकांत तिवारी इस घोटाले का मास्टरमाइंड?
ईडी की रिपोर्ट में सूर्यकांत तिवारी (Suryakant Tiwari) को पूरे घोटाले का मुख्य चेहरा बताया गया है। वह कथित तौर पर बड़े स्तर पर लेवी कलेक्शन और ट्रांजेक्शन को मैनेज कर रहा था। इस मामले में जिन अधिकारियों के नाम पहले से सामने आ चुके हैं, उनमें समीर विश्नोई, रानू साहू, सौम्या चौरसिया (पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप सचिव) और अनिल टुटेजा शामिल हैं। इन सभी के खिलाफ पहले ईओडब्ल्यू (EOW) ने एफआईआर दर्ज की थी और जनवरी 2024 में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। हालांकि, वर्तमान में इनमें से कुछ आरोपी जमानत पर रिहा होकर प्रदेश से बाहर हैं।
ED के पत्र से सियासत गरमाई
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ईडी द्वारा भेजे गए पत्र में 10 वरिष्ठ अधिकारियों के नाम स्पष्ट रूप से सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। हालांकि, ED ने पत्र में इन अफसरों की भूमिका की ओर इशारा करते हुए राज्य सरकार से आंतरिक जांच और विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है। यह पत्र सामने आने के बाद प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का नया दौर शुरू हो गया है।
भाजपा सरकार पर दबाव, क्या होगी कार्रवाई?
साय सरकार के सामने अब बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। ईडी के पत्र ने उसे राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों ही स्तरों पर जवाबदेही के कटघरे में ला खड़ा किया है। सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार इन अफसरों पर विभागीय कार्रवाई शुरू करेगी या मामला फिर से लंबी जांच और कानूनी प्रक्रिया में उलझ जाएगा?
विपक्ष का आरोप है कि भाजपा शासन आने के बाद भी भ्रष्टाचार पर ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है, और जिन अफसरों पर पहले से घोटालों में संलिप्तता के आरोप थे, उन्हें अभी भी प्रशासन में अहम जिम्मेदारी दी जा रही है। वहीं, भाजपा का कहना है कि यह कार्रवाई पिछली कांग्रेस सरकार के समय हुए घोटाले को सामने लाने का हिस्सा है, जिसमें पारदर्शिता से जांच हो रही है।\
भ्रष्टाचार की लड़ाई या राजनीतिक हथियार?
इस मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ED जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों (central investigative agencies) का इस्तेमाल भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के लिए हो रहा है या यह किसी राजनीतिक एजेंडे (political vendetta) का हिस्सा बन चुका है?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर वाकई इस घोटाले में शामिल अफसरों और नेताओं पर निष्पक्ष और पारदर्शी जांच होती है, तो यह न केवल प्रदेश की प्रशासनिक साख को मजबूत करेगा, बल्कि जनता का भरोसा भी कायम होगा। लेकिन अगर मामला केवल राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित हुआ, तो इसका असर प्रदेश की स्थिरता पर पड़ सकता है।
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