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Chhattisgarh Bilaspur High Court
Chhattisgarh High Court: बिलासपुर हाईकोर्ट (Bilaspur High Court) ने राज्य सरकार द्वारा जारी उस आदेश पर सख्त नाराजगी जताई है, जिसमें सीबीएसई (CBSE) स्कूलों के बच्चों को ब्लॉक, जिला और राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं (Sports Competitions) से बाहर कर दिया गया है।
सोमवार को चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा (Chief Justice Ramesh Sinha) और जस्टिस बी.डी. गुरु (Justice B.D. Guru) की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई की और सीबीएसई व स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (School Games Federation of India - SGFI) से चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
चार लाख छात्रों पर असर
राज्य सरकार के इस आदेश से प्रदेश के करीब 600 सीबीएसई स्कूलों में पढ़ने वाले 4 लाख से ज्यादा छात्र प्रभावित हो रहे हैं। एक छात्रा द्वारा इस फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने इसे गंभीर मामला मानते हुए स्वतः संज्ञान भी लिया।
पहले भी हुआ था विवाद
शैक्षणिक सत्र 2023-24 में भी इसी तरह का आदेश जारी हुआ था, लेकिन तब प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन (Private School Management Association) के विरोध के बाद शिक्षा विभाग (Education Department) ने आदेश वापस ले लिया था। इसके बावजूद इस साल फिर से वही स्थिति सामने आई है, जिससे छात्रों और अभिभावकों में आक्रोश है।
शासन की दलील और कोर्ट का रुख
लोक शिक्षण संचालनालय (Directorate of Public Instruction) की ओर से दाखिल नोटिफिकेशन में कहा गया कि सीबीएसई का अलग इंफ्रास्ट्रक्चर है, इसलिए उन्हें राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में शामिल नहीं किया जा सकता।
वहीं, शासन के अधिवक्ता ने कोर्ट में दलील दी कि जैसे राज्य बोर्ड (State Board) के छात्रों को सीबीएसई की प्रतियोगिताओं में शामिल नहीं किया जाता, वैसे ही प्रदेश स्तरीय शालेय खेलों में केवल राज्य बोर्ड के छात्रों को ही मौका मिलना चाहिए। उनका कहना था कि एक छात्र दो जगह प्रतियोगिताओं में शामिल नहीं हो सकता।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद SGFI और CBSE को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई एक महीने बाद होगी।
छात्रों और अभिभावकों में चिंता
इस फैसले से प्रभावित छात्र और उनके अभिभावक चिंतित हैं। उनका कहना है कि खेलों में प्रतिभा केवल बोर्ड देखकर तय नहीं होती। यदि छात्रों को इस तरह अलग किया जाएगा तो यह न केवल बच्चों के भविष्य के साथ अन्याय होगा बल्कि खेलों की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी।
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