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बिलासपुर HC का फैसला: किशोर की परवरिश करने नई कस्टडी व्यवस्था तय, अलग रह रहे माता-पिता के बीच बच्चे के समय को ऐसे बांटा

Bilaspur High Court: बिलासपुर HC का फैसला, किशोर की परवरिश करने नई कस्टडी व्यवस्था तय, अलग रह रहे माता-पिता के बीच बच्चे के समय को ऐसे बांटा

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Harsh Verma
Chhattisgarh Sharab Ghotala 2025 Vijay Bhatia, Bilaspur High Court

Chhattisgarh Bilaspur High Court

Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पर एक महत्वपूर्ण और मानवीय फैसला सुनाते हुए एक नई संतुलित पैरेंटिंग व्यवस्था तय की है। अलग रह रहे दंपती के 15 वर्षीय बेटे की जिंदगी में स्थिरता और संतुलन बनाए रखने के लिए हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस ए. के. प्रसाद ने नया फार्मूला लागू करने का आदेश दिया है। कोर्ट का यह निर्णय न केवल माता-पिता के अधिकारों को संतुलित करता है, बल्कि किशोर की भावनाओं और मानसिक विकास को भी प्राथमिकता देता है।

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कैसे बांटा जाएगा बच्चे का समय?

कोर्ट ने तय किया है कि बच्चा सोमवार से शनिवार सुबह तक अपनी मां के साथ रहेगा, जहां वह अभी तक निवास कर रहा है। शनिवार की सुबह स्कूल से छुट्टी के बाद उसका पिता उसे घर ले जाएगा और सोमवार सुबह तक बेटा अपने पिता के पास रहेगा।

यह व्यवस्था बच्चे की दिनचर्या और पढ़ाई को बिना बाधित किए दोनों माता-पिता को उसके जीवन में बराबर का भावनात्मक स्थान देती है।

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लंबी छुट्टियों और त्योहारों में भी पिता को मिलेगा समय

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि लंबी छुट्टियों—जैसे कि दशहरा, दीपावली, गर्मी या सर्दी की छुट्टियों—के दौरान बच्चा 5 से 10 दिन अपने पिता के साथ रहेगा। इसके अलावा त्योहारों में भी पिता को प्राथमिकता के साथ समय देने का आदेश जारी किया गया है, ताकि पिता-पुत्र का संबंध कमजोर न पड़े।

मामला कैसे पहुंचा हाईकोर्ट तक?

यह मामला रायपुर के एक दंपती से जुड़ा है, जिनकी शादी वर्ष 2009 में हुई थी। साल 2010 में उनका बेटा हुआ। कुछ साल बाद दोनों के बीच मतभेद बढ़े और वे अलग हो गए। बच्चा अपनी मां के साथ रहने लगा।

साल 2018 में पिता ने परिवार न्यायालय में बच्चे की कस्टडी के लिए आवेदन दिया, लेकिन फैमिली कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद पिता ने फैसला हाईकोर्ट में चुनौती दी।

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कोर्ट ने बच्चे की इच्छा और भविष्य को केंद्र में रखा

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने बच्चे की इच्छा को महत्वपूर्ण माना। कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चा अब 15 साल का है और अपनी पसंद-नापसंद को समझने की उम्र में है। इसलिए उसकी भावनाओं और मानसिक स्थिति का सम्मान किया जाना जरूरी है।

दोनों पक्षों की सहमति और बच्चे के कल्याण को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने नई कस्टडी व्यवस्था को लागू करने का निर्णय दिया।

इस फैसले को संतुलित पैरेंटिंग (Balanced Parenting) का मजबूत उदाहरण माना जा रहा है, जो बच्चों की परवरिश को माता-पिता के विवाद से अलग रखकर उनके भविष्य को प्राथमिकता देता है।

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