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Bastar Bheetar Raini: देशभर में जहां विजयदशमी (Vijayadashami) पर रावण दहन (Ravan Dahan) होता है, वहीं बस्तर (Bastar) इस दिन अपनी अनोखी परंपरा के लिए पहचाना जाता है। यहां रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि मां दंतेश्वरी (Maa Danteshwari) की पूजा कर विजय का उत्सव मनाया जाता है। यह परंपरा बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर और आदिवासी आस्था की मिसाल है।
शूर्पणखा से जुड़ी ऐतिहासिक मान्यता
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कहा जाता है कि बस्तर का इलाका दंडकारण्य (Dandakarnya) कभी रावण (Ravana) की बहन शूर्पणखा (Shurpanakha) का नगर माना जाता था। इस कारण यहां रावण दहन (Ravan Dahan) की परंपरा नहीं है। बस्तर के लोग विजयदशमी को शांति, सद्भावना और देवी आराधना का पर्व मानते हैं।
विजय रथ और भीतर रैनी की रस्म
इस दिन आदिवासी समुदाय हाथ से बने आठ चक्कों वाले विशालकाय विजय रथ (Victory Chariot) को खींचते हैं। रथ पर मां दंतेश्वरी का छत्र और खड़ा तलवार रखकर इसे कुम्हड़ाकोट (Kumhradakot) के जंगल तक ले जाया जाता है। रात में रथ चोरी (Rath Chori) करने की रस्म ‘भीतर रैनी’ (Bheetar Raini) कहलाती है।
600 साल पुरानी परंपरा की कहानी
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ऐतिहासिक मान्यता है कि राजशाही काल में ग्रामीण राजा से असंतुष्ट होकर रथ चुरा ले गए थे। राजा जब कुम्हड़ाकोट पहुंचे तो उन्होंने “नवा खानी” यानी नए चावल से बनी खीर (Kheer) ग्रामीणों के साथ खाई और रथ को सम्मानपूर्वक वापस लाया। यही रस्म आगे चलकर परंपरा में बदल गई और ‘भीतर रैनी’ कहलाने लगी।
जनसैलाब उमड़ पड़ा
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आज भी यह परंपरा उतनी ही धूमधाम से निभाई जाती है। हजारों लोग रथ को खींचते हुए लगभग 3 किलोमीटर लंबी परिक्रमा करते हैं। अंत में दंतेश्वरी मंदिर (Danteshwari Temple) के सामने यह ऐतिहासिक रस्म संपन्न होती है। इस बार भी गुरुवार और शुक्रवार की रात हजारों लोग उमड़े और भीतर रैनी की गवाह बने।
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